आगरा/लखनऊ : 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से पहले संगीता दिल्ली के सरिता विहार में मजदूरी करती थीं. गर्भवती (4 माह) संगीता ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे इस हालत में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर मध्य प्रदेश स्थित अपने शहर टीकमगढ़ जाना होगा. अभी कुछ दिनों पहले ही वो घर से होली मनाकर दिल्ली वापस लौटी थीं. उनके मां-बाप ने उसे अपने गांव जतारा में रुक जाने की सलाह दी थी, पर संगीता को लगा कि दिल्ली में पति के साथ मिलकर कुछ इंतज़ाम कर लेगी और आने वाले बच्चे के लिए और पैसे जोड़ लेगी.
आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के बाहर रविवार 29 मार्च को बैठी संगीता ये शिकायत कर रही थीं कि वापस लौटने के दौरान उसे चिकित्सीय सहायता देने से मना कर दिया गया.
दिप्रिंट से बातचीत में संगीता ने बताया कि जब उसने दर्द निवारक दवा और बाम की मांग की, तो उसे यह कहकर मना कर दिया गया कि ये सिर्फ कोरोनावायरस के मरीज़ों के लिए हैं. हम भी तो कोरोनावायरस की ही वजह से भूख और दर्द से मरे जा रहे हैं, हमें दवा क्यों नहीं दे सकते.
संगीता ने शिकायती स्वर में कहा ‘मैंने दिन- रात मज़दूरी और घरेलू काम करके अपने आने वाले बच्चे की ज़रूरतों के लिए 10,000 रुपये बचाए थे. पर आज एक प्राइवेट बस में चढ़ते वक्त वो सब चोरी हो गए क्योंकि मैं धीरे चढ़ रही थी.’
संगीता के साथ मध्य प्रदेश अपने घर की ओर लौटते उसी के घर के पास रहने वाले करीब 15 लोग और थे. 52 वर्षीय नेत राम सिंह, जो समूह में सबसे बड़े हैं, ने बताया कि संगीता अपने पैसे चोरी हुए जानकर रोने लगी. सिंह ने बताया, ‘तब हमने इसे अपने साथ शामिल कर लिया. हम खाना-पीना सब साथ मिल कर करेंगे. आखिर हम सब एक दुःख के मारे हुए हैं.’ सिंह ने ये भी बताया कि संगीता के पीठ और पेट में दर्द है क्योंकि वो 4 से ज्यादा दिनों से कई सौ किलोमीटर चलती आ रही हैं.
पर वो इकलौती गर्भवती महिला नहीं है जिसे इस तरह लॉकडाउन घोषित होने के कारण अन्य मज़दूरों की तरह अपने घरों की ओर पैदल निकलना पड़ा. पैरों में छाले लिए हुए अन्य गर्भवती महिलाओं ने भी मदद की गुहार लगायी, पर कोई सहायता नहीं मिली.
दिल्ली के संगम विहार में नालियां साफ़ करने वाली भगवती देवी भी लॉकडाउन के बाद मध्य प्रदेश स्थित अपने घर की ओर निकलीं. पैर के चार छालों को दिखाते हुए वो कहती हैं, ‘सरकार अमीर लोगों को लाने के लिए हवाई जहाज भेज सकती है, पर हम गरीबों के लिए कुछ नहीं किया गया. अगर सरकार चाहती ही थी कि हम घर लौट जाएं, तो कम से कम हमें चप्पल ही बांट देते.’
दिप्रिंट को आगरा-लखनऊ और आगरा-ग्वालियर नेशनल हाइवे पर पैदल चलते 10 या उससे ज्यादा मज़दूरों के हर समूह में कम से कम कुछ गर्भवती महिलाएं ज़रूर दिखीं.
इन्हीं में से एक उत्तर प्रदेश के बहराइच की पुष्पा भी हैं जिसकी डिलीवरी की तारीख 12-15 अप्रैल के बीच बताई गयी थी. अपने सूजे हुए पैर और खून से सनी उंगली दिखाते हुए पुष्प कहती हैं, ‘अगर सरकार हमें अपने हाल पे छोड़ देना चाहती थी, तो कोई दिक्कत नहीं. हम वो भी कर लेते. पर कम से कम हमें आवाजाही का साधन तो दो जिससे हम अपने घरों को पहुंच सकें. मैं कल रात से अब तक तीन बार उलटी कर चुकी हूं.’
दर्द निवारक दवाएं और भांग का सेवन
पैसे से तंगहाल कई मजदूर अब अपने दर्द को कम करने के लिए दर्द निवारक दवाओं और भांग का सहारा ले रहे हैं, ताकि खाना खरीदने के लिए पैसे बचा सकें.
गया निवासी संतोष रोहतक से चलते हुए 30 मार्च को कानपुर की बाहरी सीमा के पास आ पहुंचे. उन्होंने निसिप टेबलेट्स का एक पत्ता दिखाया और बताया की वो पैरों के दर्द को कम करने के लिए दिन में दो बार इसे लेते हैं.संतोष ने बताया, ‘हमें और जल्दी चलना होगा क्योंकि पैसा ख़त्म हो रहा है. पैसा गया तो भूख से मर जायेंगे. हमारे समूह में कुछ लोग तो दर्द कम करने के लिए गांजा भी ले रहे हैं.’
इन्ही में कुछ ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों की दवाई के लिए पैसे बचाने ख़ातिर अपने दर्द को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. राजेश दिल्ली के सुल्तानपुर से अपने बच्चे और बीवी को एक रेहड़ी पर खींचते हुए लेकर आ रहे हैं.
31 मार्च को लखनऊ के परिवर्तन चौक पर बैठे हुए राजेश ने बताया की उनके 2 साल के बेटे आर्यांश को बुखार है और चेहरा मच्छरों के काटने के निशान से भरा है. ‘मेरे हाथ और पैरो पर छाले पड़ चुके हैं पर मेरे पास सिर्फ सौ रुपये बचे हैं. मैं उसे अपने बेटे की दवाई खरीदने के लिए बचाए रखना चाहता हूं.’
भारी किराया वसूल रही राजकीय बसें
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राज्य में वापस लाने के लिए राजकीय बसें मुहैया करवाई हैं, पर मजदूरों का कहना है कि उन्हें सामान्य से तीन से चार गुना किराया देना पड़ रहा है या अपनी जान जोखिम में डाल कर बसों या ट्रकों की छत पर सवारी करनी पड़ रही है.
29 मार्च को आगरा से झांसी जाने की कोशिश कर रहे सुनील ने बताया कि उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बस ने टिकट के लिए उनसे 230 की बजाय 850 रुपये मांगे. उसने कहा, ‘मेरे पास उतने पैसे नहीं थे तो मैं उतर गया. बाद में एक आलू के ट्रक वाला मुझे 500 रुपये में ले जाने के लिए राज़ी हो गया.’
उत्तर प्रदेश में बस के ऊपर बैठे प्रवासी मज़दूर । फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट
हालांकि कई समाजसेवी संस्थाएं मज़दूरों की सहायता के लिए कई जगहों पर मुफ्त पानी और खाना बांट रहीं हैं.
अपने वाहन से खाने-पानी का सामान मुफ्त में बांट रहे चूड़ा मणि नामक एक ट्रक चालक ने दिप्रिंट को बताया कि वो यह काम पिछले कुछ दिनों से कर रहे हैं और आगे भी करेंगे. उन्होंने कहा, ‘भले ही हमारा बिजनेस भी घाटे में चल रहा हो, पर सरकारी योजनाओं की कमियों के चलते इन मज़दूरों की तो पूरी ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी.’
पुलिस बहकाती, परेशान करती रही
जहां एक ओर आगरा की सीमा के बाहरी तरफ की सड़कों पर हजारों चलते हुए मजदूरों पर नज़र पड़ती है, शहर की ‘वीआईपी सड़कें’- यानी कि ताजमहल और ज़िला मजिस्ट्रेट के निवास के पास की सड़कें सुनसान हैं. इस ओर पुलिस का कड़ा पहरा है, और सिर्फ सफाई वाहन और आवारा पशु ही सड़कों पर नज़र आते हैं.
मज़दूरों का ये भी कहना है की पुलिस ने उन्हें अपने रास्तों से बहकाने की कोशिश की.
जयपुर में सामान ढोने का काम करने वाले आरिफ ने 30 मार्च को बताया कि उन्हें लखनऊ जाना था, पर पुलिस वापस उन्हें ग्वालियर का रास्ता बताती रही. ‘इतना ज्यादा चल-चल कर मेरे पैर पर छाले पड़ गए हैं.’ दिल्ली के तिमारपुर से गोंडा जा रही नफीसा ने भी दावा किया कि पुलिस ने उन्हें परेशान किया. ‘पुलिस ने हमारी बस को रुकवा कर हमें नीचे उतारा और लखनऊ तक पैदल जाने को कहा. आगरा के एक चेकपॉइंट पर एक पुलिस वाले ने मेरे बच्चों और मां को लाठी से पीटा. मुझे उन्हें हाथ में पत्थर लेकर डराना पड़ा क्योंकि मेरे बेटे की हथेली से खून बहने लगा था.’
30 मार्च को लखनऊ के अवध शिल्प ग्राम शेल्टर कैंप में लाये गए अजय ने भी बताया कि कैसे कानपुर चेकपॉइंट पर एक पुलिस वाले को उसे पैदल जाने देने के लिए 400 रुपये देने पड़े.
‘मेरी जेब में बस 200 रुपये बचे हैं. और अंधेरा होने से पहले मैं अपने घर बहराइच पहुंचना चाहता हूं ताकि और पुलिस वालों को पैसे न देने पड़ें.’ ऐसा करते हुए सरकारी रहने की व्यवस्था और खाना छोड़ने का भी उसे गम नहीं. अजय को लगता है कि वो पुलिस से दूर रहकर ही सुरक्षित है.
आगरा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि आला अधिकारियों से ये आदेश मिला था कि इन प्रवासियों की शहर में अवाजाही कम की जाये. इसीलिए इन्हें हाइवे की तरफ भेजा जा रहा था.
विदेश से लौटे लोग भी नाखुश
सरकारी इंतज़ाम से विदेश से लौटे वो लोग भी खुश नहीं जिन्हें क्वारेंटाइन करने को कहा गया है. हालांकि इनकी कहानी मजदूरों से बिलकुल अलग है.
आगरा के जिला अस्पताल के चीफ सुपरिटेंडेंट सतीश कुमार वर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि जिला प्रशासन ने 200 पलंग वाले एक आयुर्वेदिक अस्पताल को आइसोलेशन के लिए तैयार रखा है. ‘हमें उड्डयन मंत्रालय से विदेश से लौटे इन लोगों की सूची दी जा रही है.’
सात लोगों के साथ दुबई से 15 मार्च को लौटे उमेश जैन ने अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा, ‘हम अपने पासपोर्ट जमा करने के लिए भी तैयार हैं. पर हमारी शर्त ये है कि हमें अपने वाहनों से क्वारेंटाइन सेंटर ले जाया जाये. ये हमें एम्बुलेंस में ले जा रहे हैं जहां हमें एकदम एक दूसरे से सटा कर बैठाया जाता है.’
इस पर सतीश कुमार वर्मा ने जवाब दिया कि वे निजी वाहनों से क्वारेंटाइन सेंटर ले जाने का आदेश नहीं दे सकते हैं क्योंकि वाहनों को ले जाने के पहले और बाद में सैनीटाइज़ करना पड़ेगा.
जो वापस नहीं गए, वो भी दुखी
लेकिन सिर्फ शहर छोड़ने वाले मज़दूर ही इन समस्याओं से दो-चार नहीं हो रहे, जो शहर में रह रहे हैं, वो भी परेशान हैं. लखनऊ की अमीनाबाद मार्केट में 31 मार्च को रिक्शा चालक प्रकाश सिंह ने बताया कि चार महीने पहले हजरतगंज में उनका एक्सीडेंट हो गया था. ‘मेरे चेहरे का बायां हिस्सा बुरी तरह से घायल हो गया था, पर अब मुझे सरकारी अस्पताल से दवाई नहीं मिल रही है क्योंकि वो हमें अन्दर घुसने तक नहीं दे रहे हैं. मुझे अस्थमा भी है, पर मैं अब काम नहीं कर सकता क्योंकि प्राइवेट दुकानों पर इन्हेलर बहुत महंगा मिलता है.’
सरकार का जवाब
दिप्रिंट ने उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह से मज़दूरों के आरोपों के बारे में 31 मार्च को बातचीत की.
सिंह ने बताया कि ये दिक्कतें इसलिए आ रही हैं क्योंकि करीब 2 लाख मज़दूर एकदम से अपने घरों की ओर लौटने लगे और प्रशासन को शुरुआती दिनों में इसे काबू करने में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा.
सिंह ने कहा ‘भोजन और चिकित्सा व्यवस्था के सारे इंतज़ाम हर जिले में किये गए हैं. शुरू के दिनों में मज़दूरों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसलिए आदेश हर चेक पॉइंट पर लागू नहीं किये जा सके. पर अब हालात काबू में हैं. हम वापस लौटे हर प्रवासी मज़दूर पर निगरानी रखे हुए हैं.’
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