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Sunday, 28 April, 2024
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‘हरियाणा के स्कूलों में बिजली, शौचालय और पानी तक की व्यवस्था नहीं’: HC ने खट्टर सरकार को लगाई फटकार

उच्च न्यायालय के आदेश ने कांग्रेस को राज्य की बीजेपी सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है. कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा का कहना है कि HC ने वही उजागर कर दिया जो लोग पहले से ही जानते थे - खट्टर सरकार पूरी तरह से 'नॉन-परफॉर्मर' है.

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गुरुग्राम: सरकारी स्कूलों में खराब सुविधाओं के संबंध में 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाने और प्रमुख सचिव और माध्यमिक शिक्षा निदेशक को तलब करने के एक अदालत के आदेश ने हरियाणा में विपक्ष को मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है.

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय को दिए एक हलफनामे में, सरकार ने बताया कि हरियाणा में 14,281 स्कूल हैं जिनमें 95,363 उपलब्ध और निर्माणाधीन कक्षाएं और 42,945 अन्य कमरे हैं. स्कूलों को 947.60 करोड़ रुपये की आवश्यकता वाले 8,240 अतिरिक्त कक्षाओं और 703.75 करोड़ रुपये की आवश्यकता वाले 5,630 अन्य कमरों की जरूरत है.

इसमें कहा गया है कि 321 स्कूलों में चारदीवारी नहीं है जिसके लिए 86.54 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, 131 स्कूलों में चालू पेयजल की सुविधाएं नहीं हैं जिसके लिए 92 लाख रुपये की आवश्यकता होगी. 1,047 स्कूल में लड़कों का शौचालय नहीं है जबकि 538 स्कूलों में लड़कियों के लिए नहीं है, जिसके लिए 25.44 करोड़ रुपये और 15.60 करोड़ रुपये की जरूरत है. 236 स्कूलों को बिजली कनेक्शन देने के लिए 4.18 करोड़ रुपये के बजट की जरूरत है.

कैथल के रहने वाले एक व्यक्ति द्वारा सरकारी स्कूलों में खराब सुविधाओं को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि “सरकार की असंवेदनशीलता स्पष्ट है क्योंकि सरकारी स्कूल कमरे, बिजली, शौचालय के साथ-साथ पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं”.

न्यायमूर्ति विनोद एस भारद्वाज ने 23 नवंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि 538 लड़कियों के स्कूलों में शौचालयों का न होना जमीनी स्तर पर दुर्दशा और वास्तविक स्थिति को उजागर करती है.

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न्यायमूर्ति भारद्वाज ने कहा कि किसी भी ठोस कार्य योजना की अनुपस्थिति केवल यह दर्शाती है कि अधिकारियों द्वारा योजना की पूरी कमी है. उन्होंने कहा कि दो वरिष्ठ अधिकारियों से पूर्ण कार्य योजना के साथ आने का अनुरोध करने के बाद भी यह नहीं बदला.

एचसी ने कहा कि आठ-नौ महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ है.

पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने दिप्रिंट को बताया कि अदालत ने उस बात को उजागर कर दिया है जो हरियाणा में लोग पहले से ही जानते थे कि मनोहर लाल खट्टर सरकार पूरी तरह से ‘नॉन-परफॉर्मर’ थी.

उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में शिक्षा में निवेश को सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत होना अनिवार्य है, लेकिन हरियाणा इससे बहुत कम खर्च कर रहा है.

2023-24 के लिए हरियाणा के बजट दस्तावेज़ के अनुसार, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) स्थिर मूल्य (2011-12) पर 60,8420 करोड़ रुपये और मौजूदा कीमतों पर 9,94,154 करोड़ रुपये था. शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति के लिए कुल आवंटन 20,339.84 करोड़ रुपये था, जिसमें से 19,286.94 करोड़ रुपये राजस्व व्यय (वेतन) पर था और केवल 1,052.90 करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय (बुनियादी ढांचे के विकास) पर था.

PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, 2023-24 के बजट में हरियाणा ने अपने कुल व्यय का 14 प्रतिशत शिक्षा के लिए आवंटित किया, जो राज्यों द्वारा शिक्षा के लिए औसत आवंटन (14.8 प्रतिशत) से कम है.

इसमें कहा गया है कि 2022-23 के बजट में, हरियाणा ने 2022-23 में शिक्षा के लिए अपने कुल व्यय का 14.2 प्रतिशत आवंटित किया. इसमें कहा गया है कि यह सभी राज्यों द्वारा शिक्षा के लिए औसत आवंटन (15.2 प्रतिशत) से कम है.

हुड्डा ने आरोप लगाया कि जब वह 2005 से 2014 तक सत्ता में थे, तो उन्होंने नए स्कूल और विश्वविद्यालय बनाने पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन खट्टर सरकार के पिछले नौ सालों में कुछ नहीं हुआ.

कांग्रेस महासचिव कुमारी शैलजा ने सोमवार को दिप्रिंट से कहा कि अदालत के आदेश से पता चलता है कि सरकार के नारे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ केवल दीवारों पर लिखे थे. उन्होंने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि सैकड़ों स्कूलों में लड़कियों के लिए चारदीवारी और शौचालय भी नहीं हैं.

हरियाणा सरकार के मीडिया सचिव प्रवीण अत्रे ने कहा कि सीएम खट्टर ने रविवार को स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय में उद्धृत डेटा पुराना था और अगली सुनवाई के दौरान नया डेटा अदालत के सामने रखा जाएगा.


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कोर्ट ने क्या पाया

बड़ी संख्या में विसंगतियों और अधिकारियों की निष्क्रियता देखने के बाद, अदालत ने 31 अक्टूबर को जारी एक आदेश के माध्यम से माध्यमिक शिक्षा महानिदेशक से एक हलफनामा मांगा था.

पिछले साल 25 नवंबर को एक हलफनामा दायर किया गया था जिसमें पता चला था कि केंद्रीय निधि में से 1,176.38 करोड़ रुपये का 10 सालों के दौरान उपयोग नहीं किया जा सका, जबकि राज्य द्वारा 13,420.97 करोड़ रुपये का बजट आवंटन उसी अवधि के लिए अप्रयुक्त रहा.

बाद में वित्तीय वर्ष 2012-2013 से 2022-2023 के लिए बजट आवंटन, व्यय और अतिरिक्त/सरेंडर किए गए स्कूल बजट से संबंधित विवरण देते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया गया था.

अदालत ने कहा, “राज्य योजनाओं के तहत 6,794.07 करोड़ रुपये और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत 3,881.92 करोड़ रुपये का सरेंडर किया गया है, जिससे कुल सरेंडर राशि रु. 10,675.99 करोड़ रुपये थी.”

उच्च न्यायालय ने कहा, “निदेशक द्वारा दायर किया गया हलफनामा आंकड़ों की बाजीगरी से ज्यादा कुछ नहीं है, जिसमें उन मुख्य मुद्दों को संबोधित करने की कोई प्रतिबद्धता नहीं है जो हलफनामे के सामने स्पष्ट हैं. स्कूलों में शौचालय, बिजली कनेक्शन और पीने के पानी की सुविधाएं कब उपलब्ध कराई जाएंगी, इसपर पूरी तरह से चुप्पी साधी गई. इस तथ्य के अलावा अतिरिक्त कक्षा और अन्य कमरे की आवश्यकताओं का मूल्यांकन स्वयं प्रतिवादी द्वारा 13,000 से अधिक बार किया गया है.”

इसमें कहा गया है, “निदेशालय और प्रमुख सचिव द्वारा विभाग के मामलों की चल रही स्थिति में सुधार और सक्रिय दृष्टि और नेतृत्व के लिए बहुत गुंजाइश है, एक गुणवत्ता में गंभीर कमी पाई गई है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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