scorecardresearch
Sunday, 3 November, 2024
होमदेशवैज्ञानिकों ने चार राज्यों में धान की स्टंटिंग की जांच के बाद कहा—‘फिलहाल चिंतित होने की जरूरत नहीं’

वैज्ञानिकों ने चार राज्यों में धान की स्टंटिंग की जांच के बाद कहा—‘फिलहाल चिंतित होने की जरूरत नहीं’

बड़े पैमाने पर चावल उत्पादन करने वाले पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड जैसे राज्यों में एक रहस्यमय बीमारी चिंता का कारण बन गई है. विशेषज्ञ संभावित कारणों का पता लगाने के लिए इनके डीएनए, आरएनए सीक्वेंसिंग टेस्ट के पक्ष में हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: उत्तर भारत के हरित क्रांति वाले राज्यों में धान की फसल एक अज्ञात बीमारी की चपेट में आ गई है, जिसका पूरे फसल उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

इस महीने की शुरूआत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों ने धान की फसल में स्टंटिंग (यानी पौधों के बौने रह जाने की स्थिति) की सूचना दी थी.

दिप्रिंट ने इस बाबत जिन कृषि वैज्ञानिकों से बात की, उनका कहना था कि स्थिति अभी चिंताजनक नहीं है, लेकिन इस पर पूरी नजर रखने की जरूरत है.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), दिल्ली के निदेशक ए.के. सिंह ने कहा कि यह रोग या तो बैक्टीरिया (फाइटोप्लाज्मा) या वायरस (जैसे टुंग्रो और ग्रास स्टंट वायरस, जो दोनों धान की खड़ी फसल को प्रभावित करते हैं) के कारण हो सकता है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें डीएनए और आरएनए सीक्वेंसिंग टेस्ट के जरिये एक-एक कर इस बीमारी के संभावित कारणों का पता लगाना होगा. लेकिन किसानों को सतर्कता बरतनी होगी. पौधों को चूस लेने वाले प्लैथॉपर जैसे कीट रोग के वाहक हो सकते हैं और स्वस्थ पौधों को भी अपनी चपेट में ले सकते हैं. इसलिए, इन कीटों को रासायनिक तत्वों के इस्तेमाल से नियंत्रित करना होगा.’

पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना के शोध निदेशक अजमेर सिंह दत्त ने कहा कि अब तक ऐसी घटनाएं कम ही है, लेकिन कई राज्यों में यह बीमारी सामने आई है.

दत्त ने कहा, ‘हमारा आकलन है कि नुकसान बहुत ज्यादा नहीं होगा और हम पिछले दो हफ्तों से इसके सटीक कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.’

रहस्यमय बीमारी को लेकर चिंता का एक कारण यह भी है क्योंकि प्रभावित फसल सबसे ज्यादा चावल उत्पादन वाले राज्यों में है. पूरे देश में 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में पंजाब में धान की पैदावार 4.5 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक होती है.


यह भी पढ़ेंः गर्मियों तक ‘दुनिया का पेट भरने’ के इच्छुक भारत को सर्दियों में आयात करना पड़ सकता है गेहूं


चिंता क्यों

आईसीएआर निदेशक ए.के. सिंह के मुताबिक, इस बीमारी से कुछ क्षेत्रों में फसल क्षेत्र के 5-6 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक क्षति होती है.

रोगग्रस्त पौधों की जड़ें प्रभावित होती हैं, जिससे फसल को मिट्टी से पोषक तत्व पूरी तरह नहीं मिल पाते. फसल पूरी तरह विकसित न होने की समस्या गंभीर हैं क्योंकि प्रभावित पौधे सामान्य ऊंचाई की तुलना में एक-चौथाई ही रह जाते हैं.

आईसीएआर निदेशक ने कहा, ‘अधिक से अधिक उपज क्षति एक से दो प्रतिशत तक सीमित होने की संभावना है, क्योंकि धान के स्वस्थ पौधों में अधिक अनाज वाले गुच्छों की क्षमता होती है, जिसे टिलरिंग भी जाना जाता है.’ उन्होंने इसे इस तरह समझाया कि जब एक धान के पौधे को बढ़ने के लिए अधिक जगह मिलती है, तो इसमें अधिक अनाज वाली शाखाएं विकसित होती है. इसका मतलब है कि उससे उपज ज्यादा होगी और इससे बीमारी के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई में मदद मिल सकती है.

मौजूदा खरीफ सीजन में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों में सूखे के कारण फसल उत्पादन घटने और निर्यात के प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है.

चावल का उत्पादन घटने की आशंका ऐसे समय में जताई जा रही जबकि मार्च और अप्रैल में फसल कटाई से पहले बेतहाशा गर्मी के कारण गेहूं की फसल भी प्रभावित हुई थी.

मार्च-अप्रैल में खेती के वक्त हीट वेव के चलते चावल का उत्पादन घटने के बाद गेहूं के उत्पादन में भी कमी होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः खेतों में पड़ी दरारें और दुखदायी हैं खरपतवार: चावल की फसल बचाने के लिए सूखे से जूझते यूपी के किसान


 

share & View comments