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Monday, 23 December, 2024
होमदेश‘विरोध करने का इरादा नहीं’ — 4 साल पहले CAA के खिलाफ शाहीन बाग गरजा था, अब वहां बेचैनी भरी शांति है

‘विरोध करने का इरादा नहीं’ — 4 साल पहले CAA के खिलाफ शाहीन बाग गरजा था, अब वहां बेचैनी भरी शांति है

जामिया मिलिया इस्लामिया में स्टूडेंट्स विवादास्पद कानून के लागू होने के खिलाफ अपना आंदोलन आगे ले जाने की बात कर रहे हैं. सरकार की घोषणा के बाद से कैंपस में भारी पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात है.

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नई दिल्ली:  मोदी सरकार के नागरिकता (संशोधन) कानून लागू करने के ऐलान के बाद दिल्ली के शाहीन बाग में बेचैनी है.

दक्षिण दिल्ली के इस इलाके की महिलाएं व्यथित हैं, उनका कहना है कि यह कदम एक “चुनावी पैंतरेबाज़ी”, “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति” है, लेकिन अपनी नाराज़गी के बावजूद इस बार उनका विरोध करने का इरादा नहीं है.

चार साल पहले, 15 दिसंबर 2019 को वही शाहीन बाग संसद में सीएए के पारित होने पर उग्र विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया था — यह आंदोलन इतना शक्तिशाली था कि इसने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं. महिलाओं के नेतृत्व में यह चार महीने तक चला, यहां तक कि महामारी के शुरुआत होने के दौरान भी जारी रहा, जब तक कि बढ़ते कोविड मामलों के बीच राष्ट्रीय राजधानी में धारा 144 लागू होने के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने अंततः विरोध स्थल को खाली नहीं करवा दिया.

शाहीन बाग निवासी 56 वर्षीय मेकअप आर्टिस्ट हिना अहमद ने कहा, “हम सरकार को अपनी चिंताएं व्यक्त करने के लिए 2019 में इकट्ठा हुए थे, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी. अगर यह सरकार नहीं सुनती है, तो हमारा विरोध करने का कोई इरादा नहीं है.”

जामिया मिलिया इस्लामिया में स्टूडेंट्स विवादास्पद कानून के लागू होने के खिलाफ अपना आंदोलन आगे ले जाने की बात कर रहे हैं. सरकार की घोषणा के बाद से कैंपस में भारी पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात है, जो कुछ स्टूडेंट्स द्वारा विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर बढ़ा दी गई. इसके पहले 2019 में कैंपस में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बीच पुलिस ने कथित तौर पर यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में घुसकर स्टूडेंट्स पर अंधाधुंध लाठीचार्ज किया था, जिसके चार साल बाद ऐसा दोबारा हुआ है.

सरकार की घोषणा के बाद, पूर्वी दिल्ली में कुछ जगहों पर पुलिस ने 43 हॉटस्पॉट की पहचान की और गश्त की.

शाहीन कौसर, जो सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया की उपाध्यक्ष हैं, शाहीन बाग आंदोलन का हिस्सा थीं. 2020 में विरोध प्रदर्शन खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा. उनकी थ्योरी कहती है कि मोदी सरकार के पास कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है जिसे वे आगामी लोकसभा चुनावों के लिए चर्चा का केंद्र बना सके, यही वजह है कि उसने सीएए लागू करने का फैसला किया. हालांकि, वे इस बात पर ज़ोर देती हैं कि इस बार विरोध प्रदर्शन की कोई योजना नहीं है.

कौसर बताती हैं, “संविधान के अनुसार, यह किया जाना चाहिए था. ये सब वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा रहा है. भाजपा सरकार देश के हालात खराब करना चाहती है. हमारा विरोध शांतिपूर्ण होगा क्योंकि शांति बनाए रखना नागरिक समाज की भी जिम्मेदारी है. कोई अदालत का दरवाज़ा खटखटाकर भी विरोध कर सकता है.”

हालांकि, कौसर की अदालत जाने की भी कोई योजना नहीं है.

हालांकि, जामिया में स्टूडेंट्स ने 2019 के आंदोलन को आगे बढ़ाने के अपने इरादे व्यक्त किए हैं. एक स्टूडेंट और अखिल भारतीय क्रांतिकारी छात्र संगठन (एआईआरएसओ) के सदस्य निरंजन के अनुसार, सरकार का यह कदम “भारत को फासीवादी हिंदू राष्ट्र में बदलने का बेताब कोशिश” है.

उनके अनुसार, असली मुद्दा सिर्फ नियमों की सामग्री नहीं, बल्कि सीएए का कार्यान्वयन है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह “स्वाभाविक रूप से अन्यायपूर्ण, भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी” है. उनके लिए इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा चुनावी बांड डेटा पेश करने से ठीक एक दिन पहले लागू किया गया था.

निरंजन ने कहा, “यह कानून मुसलमानों को नागरिकता प्राप्त करने से चुनिंदा रूप से बाहर रखकर धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के खिलाफ है, जो भारत के संविधान का मूल सिद्धांत है.”

उनके और अन्य छात्र संगठन सीएए के विरोध में रणनीति बनाने की योजना बना रहे हैं. वे 2019 में यूनिवर्सिटी पर पुलिस हमलों के लिए न्याय और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की रिहाई की भी मांग करेंगे.


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‘क्या सरकार चाहती है कि हम नकली दस्तावेज़ बनाएं?’

शाहीन बाग निवासी हिना अहमद, जिनका पहले हवाला दिया गया था, ने कहा, कि वे विरोध प्रदर्शन पर विचार नहीं कर रही हैं क्योंकि सरकार “अपने एजेंडे के अनुसार काम कर रही है, मुस्लिम समुदाय के मुद्दों की उपेक्षा कर रही है”.

उदाहरण के तौर पर वे पिछले हफ्ते की उस घटना का हवाला देती हैं जिसमें दिल्ली पुलिस का एक सब-इंस्पेक्टर एक वायरल वीडियो में मुसलमानों को नमाज पढ़ने के दौरान लात मारते हुए दिख रहा है.

अहमद का कहना है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लोगों के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए काम कर रही है. वे इस बात से इनकार नहीं करतीं कि CAA की वजह से लोग डरे हुए हैं और सरकार को दिखाने के लिए अपने दस्तावेज़ तैयार रखने की बात करती हैं.

मेकअप आर्टिस्ट ने कहा, “मैं मोदी सरकार से पूछना चाहती हूं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कितने अस्पताल बनाए हैं और कितने लोगों ने उनमें जन्म प्रमाण पत्र हासिल किया है.”

अहमद आगे कहती हैं, पहले, ज्यादातर जन्म अस्पतालों के बजाय घर पर ही होते थे, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज़ नहीं होते थे. शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के दौरान कई लोगों ने दावा किया कि उनके दस्तावेज़ बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में नष्ट हो गए.

वे पूछती हैं, “क्या सरकार चाहती है कि हम नकली दस्तावेज़ बनाएं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दें?”

हालांकि, उनका यह भी कहना है कि उन्हें अभी तक इस बात की जानकारी नहीं है कि सीएए के तहत किन दस्तावेज़ की ज़रूरत होगी.

अहमद सीएए के कार्यान्वयन से ठगा हुआ महसूस कर रही हैं. “जो भी होगा, देखा जाएगा.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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