नई दिल्ली: अयोध्या में नई मस्जिद के आर्किटेक्ट, प्रोफेसर एसएम अख़्तर ने दिप्रिंट को बताया है, कि मस्जिद परिसर एक आधुनिक बिल्डिंग होगी, जिसमें कोई पारंपरिक गुंबदें और मेहराबें नहीं होंगी.
अख़्तर ने, जो एक जाने माने आर्किटेक्ट, और दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आर्किटेक्चर विभाग के डीन हैं, कहा कि नया परिसर कुल मिलाकर समाज की सेवा करेगा, जिसमें अन्य चीज़ों के अलावा, एक चैरिटेबल अस्पताल, म्यूज़ियम आरकाइव, और एक पब्लिक लाइब्रेरी होगी.
उन्होंने कहा, ‘ये सिर्फ एक मस्जिद नहीं है, बल्कि एक मस्जिद परिसर है’.
अख़्तर ने बताया कि नया परिसर जहां तक मुमकिन होगा, सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा पर चलेगा, जिससे इनर्जी का इस्तेमाल कम होगा. उन्होंने कहा, ‘हम सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे, कि हर चीज़ रिनीवेबल इनर्जी सोर्सेज़ पर चले, जैसे कि सौर और वायु ऊर्जा. लेकिन, अस्पताल के लिए इसमें थोड़ी दिक़्क़त आ सकती है’.
आर्किटेक्ट ने आगे कहा कि अयोध्या में नए मस्जिद परिसर का शिलान्यास, अगले साल 26 जनवरी को रखा जाएगा.
मस्जिद का ख़ाका शनिवार को इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउण्डेशन (आईआईसीएफ) ट्रस्ट की ओर से सामने लाया गया, जिसमें इसकी आधुनिक वास्तुकला, और भविष्यवादी डिज़ाइन दिखाया गया.
ये मस्जिद अयोध्या के निकट, धन्नीपुर गांव की पांच एकड़ ज़मीन पर बनाई जानी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल, राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड को, पांच एकड़ ज़मीन आवंटित की थी.
इस साल फरवरी में, वक़्फ बोर्ड ने एक ट्रस्ट, आईआईसीएफ क़ायम किया, जिसने मस्जिद का डिज़ाइन तैयार करने की ज़िम्मेदारी अख़्तर को सौंपी.
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मस्जिद की रूपरेखा
मस्जिद की रूपरेखा से पता चलता है, कि इसमें पारंपरिक मेहराबें, मीनारें, या गुंबद नहीं होंगे.
मस्जिद परिसर का ख़ाका आयताकार होगा, जिसमें मस्जिद के साथ एक म्यूज़ियम आरकाइव, सामुदायिक किचन, और एक 300 बिस्तरों वाला स्पेशियालिटी अस्पताल होगा.
भविष्यवादी डिज़ाइन की कल्पना के बारे में बात करते हुए, अख़्तर ने समझाया कि आर्किटेक्चर हमेशा तैयार किया जाता है, और इसे कभी दोहराया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा, ‘मैं शुरू से ही इस बारे में स्पष्ट था. आपको हमेशा आर्किटेक्चर की खोज करनी चाहिए, चूंकि ये समाज को आगे ले जाने वाला हो सकता है’.
अख़्तर ने बताया कि मस्जिद परिसर के निर्माण की सामग्री (पत्थर), और तकनीक पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है, और इस पर अभी भी रिसर्च चल रही है.
उन्होंने कहा, ‘सिर्फ सबसे उपयुक्त मटीरियल्स और तकनीकें अपनाई जाएंगी. हम इसे एक टिकाऊ ढांचा बनाना चाहते हैं’. उन्होंने ये भी कहा, ‘इस प्रोजेक्ट के पीछे काम करने वाले लोगों की संख्या बताना मुश्किल है, चूंकि ऐसे प्रोजेक्ट्स में श्रम बल बदलता रहता है, और लचीला होता है’.
ये पूछे जाने पर कि नए ब्लूप्रिंट में, इस्लामी वास्तुकला के पुराने तत्व क्यों शामिल नहीं किए गए हैं, अख़्तर ने समझाया कि हमेशा ये कहा जाता रहा है, कि इस्लामी वास्तुकला मध्यकालीन युग में बहुत अच्छी थी. उन्होंने कहा, ‘लेकिन सिर्फ मध्यकालीन युग में ही नहीं, ये आज भी अच्छी है’.
‘मैं इस्लामी वास्तुकला में एक क्रांतिकारी बदलाव लाना चाह रहा हूं. जो बीत गया सो बीत गया. अतीत न तो वर्तमान बन सकता है, न भविष्य. आपको ख़ुद को उससे अलग करना होगा. वो पुरानी यादें हैं; वो आपको कुछ नहीं दे सकतीं’.
6 महीने में बन जाएगी मस्जिद
मस्जिद परिसर के लॉजिस्टिक्स पर बात करते हुए अख़्तर ने कहा, कि उन्हें उम्मीद है कि अगले साल 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को शिलान्यास होने के छह महीनों के भीतर, मस्जिद बनकर तैयार हो जाएगी.
लेकिन, उन्होंने कहा कि अस्पताल बनने में ज़्यादा समय लगेगा, और वो ‘और एक या दो साल में’ तैयार हो जाएगा.
जब ये पूछा गया कि क्या पूरे अयोध्या मामले के विवादित और कड़वे अतीत का, नए ढांचे पर कुछ असर पड़ा, तो अख़्तर ने कहा, ‘न तो मेरी अतीत में कोई दिलचस्पी है, और न ही मैं उसमें जाना चाहता हूं. आर्किटेक्चर को कभी दोहराया नहीं जा सकता; उसे तैयार करना होता है. मेरे लिए ये बहुत स्पष्ट था, और मैं इसी तरह आगे बढ़ा’.
उनका कहना था कि भारतीयों का स्वभाव ऐसा है, कि अलग अलग समुदायों के लोग हमेशा एक साथ रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘विभिन्न समुदायों और विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच जुड़ाव बहुत ज़रूरी है’.
ये पूछे जाने पर कि क्या मस्जिद परिसर, उनके करियर का सबसे महत्वाकांक्षी और अहम प्रोजेक्ट है, अख़्तर ने कहा, ‘पूरी दुनिया इस परिसर का इंतज़ार कर रही है, इसलिए उस मायने में, ज़िम्मेदारी और दबाव तो यक़ीनन है’
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