नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक भारत और चीन ने टकराव वाले क्षेत्रों में नए तंबू और बंकर बनाने की गतिविधियां रोकने के अलावा पूर्वी लद्दाख के मौजूदा गतिरोध वाले क्षेत्र में अतिरिक्त टुकड़ियां और सैन्य उपकरण तैनात न करने की संभावनाओं पर भी चर्चा की है.
जानकार सूत्रों के मुताबिक एलएसी पर चीनी क्षेत्र की तरफ स्थित चुसुल-मोल्डो मीटिंग प्वाइंट पर 22 जून को दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की बैठक में इस पर चर्चा हुई.
बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया और चीन की तरफ से साउथ शिनजियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक के मेजर जनरल लिन लियू मौजूद थे.
बैठक का ताजा ब्योरा ऐसी खबरों के बीच आया है कि गलवान घाटी में चीन की निरीक्षण चौकी फिर बन गई है, जिसको लेकर ही पिछले हफ्ते दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई थी-इसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे और अपुष्ट तौर पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भी कई जवान मारे गए थे.
एक सूत्रों के मुताबिक, हालांकि, बातचीत के दौरान कुछ फैसले किए जा चुके हैं, अभी जमीनी स्तर पर इन पर अमल होने और तनाव घटने में महीनों का समय लग सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, चर्चा होने का मतलब यह कि कुछ निर्माण जिन्हें आगे बढ़ाने की तैयारी थी फिलहाल कुछ समय के लिए आगे नहीं बढ़ेंगे.
एक अन्य सूत्र ने कहा कि हालांकि, निर्धारित टुकड़ियां अभी स्टैंडबाई में ही रहेंगी और अगर स्थिति बिगड़ती है तो शॉर्ट नोटिस पर मोर्चा संभालने को तैयार रहेंगी.
सूत्रों के मुताबिक, कोर कमांडरों ने टकराव वाले क्षेत्र में अतिरिक्त चौकियां, तंबू और बंकर न बनाने पर भी चर्चा की. इसमें गलवान भी शामिल होगा, जहां 15 जून की झड़प से लेकर बातचीत होने के दौरान तक पूरे हफ्ते चीनियों की मौजूदगी बढ़ गई थी.
पैंगोंग लेक में चीनियों ने, जिन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में आठ किलोमीटर तक अतिक्रमण किया है और भारतीय क्षेत्र में फिंगर 4 के पास जमे बैठे हैं, कई ढांचे खड़े कर लिए हैं और तमाम उपकरण भी वहां ले आए हैं.
भारत के पास भी पर्याप्त सैन्य बल
भारत मई के शुरू में गतिरोध बढ़ने के बाद से लद्दाख में सैन्य टुकड़ियों की तीन डिवीजन लगा चुका है. एक डिवीजन में आम तौर पर 10000 से 12000 के बीच जवान होते हैं.
गलवान घाटी, देपसांग के मैदान, पैंगोंग त्सो, चुसुल, दौलत बेग ओल्डी आदि में पहुंची टुकड़ियों में सिर्फ पैदल सिपाही ही नहीं है, बल्कि आर्टिलरी, मैकेनाइज्ड फोर्सेस, आर्म्ड व अन्य शाखाओं के जवान भी हैं.
इस सबके अलावा भारत ने वायुसेना के लड़ाकों और चिनूक तथा अपाचे जैसे युद्धक हेलीकॉप्टर भी तैनात किए हैं.
सूत्रों के मुताबिक, भारत के पास लद्दाख में वहां की स्थितियों के अनुरूप रिजर्व सैन्य टुकड़ी के अलावा भी जरूरत से ज्यादा अतिरिक्त सैन्य बल है.
बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्र में होने के कारण यहां पर सैनिकों को इसके अनुरूप ढलने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसके बाद ही वह क्षेत्र के अग्रिम इलाकों में भेजे जाते हैं. वातावरण के अनुकूल ढलने की प्रक्रिया में करीब-करीब दो हफ्ते का समय लगता है.
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