नई दिल्ली: 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार सुबह 5.30 बजे एक साथ फांसी पर लटका दिया जाएगा, सात साल पहले हुई इस भीषण घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया था और देशवासियों ने इस जघन्य हत्याकांड के लिए पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग के साथ न केवल सड़कों पर उतरे, विरोध प्रदर्शन किया बल्कि यह लड़ाई जारी रखी.
अगर इसे अंजाम दिया जाता है, तो यह पांच साल में पहली बार होगा जब भारत में मौत की सजा दी जाएगी. न्याय प्रणाली द्वारा मृत्युदंड की अंतिम सजा 30 जुलाई 2015 को आतंकवादी याकूब मेमन को दी गई थी और उसे फांसी दी गई थी, याकूब 1993 के मुंबई विस्फोटों में दोषी ठहराया गया था.
16 दिसंबर के अपराध में दोषी ठहराए गए छह लोगों में से राम सिंह ने कथित तौर पर 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी. एक अन्य दोषी, अपराध के समय नाबालिग था, उसे तीन वर्षों तक एक सुधार गृह में रखा गया उसके बाद उसे रिहा कर दिया गया था.
शेष चार मुकेश सिंह, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और अक्षय कुमार सिंह को शुक्रवार को तिहाड़ जेल में फांसी दी जानी है.
यह चौथी बार है जब 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में दोषियों को फांसी देने की तारीख तय की गई है.
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दिप्रिंट भारत में मृत्युदंड के इतिहास पर नज़र डाल रहा है और यह पड़ताल की है कि देश में मौत की सजा तक ले जाने वाले वो कौन से अपराध रहे हैं.
भारत में मौत की सजा
भारत में फांसी और गोली मार कर सजा देने का प्रावधान है. इंडियन पीनल कोड के अनुसार, फांसी नागरिक अदालत प्रणाली ( सिविल कोर्ट सिस्टम )में दी जाने की विधि है. सेना अधिनियम 1950, हालांकि, सैन्य अदालत-मार्शल प्रणाली में फांसी और गोली दोनों मौत की सजा दिए जाने के लिए आधिकारिक तरीकों में सूचीबद्ध है.
दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, अब तक स्वतंत्र भारत में 755 लोगों को फांसी दी गई है.
2015 में मेमन की फांसी से पहले, मुहम्मद अफ़ज़ल – जिसे संसद पर 2001 के हमले की साजिश रचने का दोषी ठहराया गया था – को 8 फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी.
मोहम्मद अजमल आमिर क़साब – 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में दोषी ठहराया गया था उसे 21 नवंबर 2012 को फांसी पर लटकाया गया, और कोलकाता के धनंजय चटर्जी को 14 साल की लड़की की हत्या और बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया उसे 2004 में फांसी दी गई थी.
इससे पहले, 1995 में ऑटो शंकर उर्फ गोविरी शंकर नाम से प्रसिद्ध एक सीरियल किलर को फांसी दी गई थी.
मृत्युदंड के प्रावधान वाले अपराध
भारत में मौत की सजा वाले अपराधों में शामिल हैं- अति संगीन हत्या के मामले और अन्य अपराध जो हत्या के लिए जिम्मेदार हैं, आतंकवाद से संबंधित अपराध जो मौत के लिए जिम्मेदार हों, मौत के लिए न जिम्मेदार होने वाले आतंकवादी मामले, बलात्कार जिससे मौत न हो, मौत में न बदलने वाला अपहरण, मौत के लिए जिम्मेदार न होने नशीले पदार्थों की तस्करी, राजद्रोह, जासूसी और सैन्य अपराध जो मौत के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, शामिल हैं.
कोई भी अपराध मृत्युदंड के लायक है या नहीं, बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में फैसले अहम भूमिका निभाते हैं.
उदाहरण के लिए, भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959 के तहत, प्रतिबंधित हथियार या गोला-बारूद का उपयोग करना, ले जाना, निर्माण करना, बेचना, स्थानांतरित करना या परीक्षण करना, इनसे हादसों के मामले में अनिवार्य तौर पर मौत की सजा है.
लेकिन फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में इस प्रावधान को ‘बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य और मिथु बनाम पंजाब राज्य के निर्णयों के आलोक में असंवैधानिक’ करार दिया था.
इसमें सुझाव दिया गया कि उन्हीं मौत वाले अपराधों में मृत्युदंड हो जो बच्चन सिंह मामले के ‘रेयर ऑफ रेयरेस्ट’ मानक को पूरा करते हों.
2012 के सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के खिलाफ हिंसा की नई श्रेणियों को जोड़कर इसे और अधिक कठोर बनाने के लिए अप्रैल 2013 में कानून में संशोधन किया.
उस समय के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा था,’ऐसा कानून पहली बार भारत में आया है और संसद ने इसको मंजूरी दी है.’
क्या मृत्युदंड संवैधानिक है?
मिठू बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब के फैसले में कहा गया है कि उपरोक्त सूचीबद्ध अपराधों के लिए मृत्युदंड अनिवार्य सजा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला दिया था कि अनिवार्य मृत्युदंड असंवैधानिक है.
सीआरपीसी की धारा 416 में कहा गया है कि अगर मौत की सजा पाने वाली महिला गर्भवती पाई जाती है, तो उच्च न्यायालय सजा के क्रियान्वयन को स्थगित करने का आदेश देगा और यदि वह उचित समझे, तो उसे उम्रकैद की सजा सुनाए.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना है कि मानसिक बीमारी एक ‘गंभीरता कम करने वाला कारक’ है, जो इस तरह के विकारों से पीड़ितों को फांसी से बख्शता है.
दया याचिका की प्रक्रिया
दया याचिका दायर करने दोषी के लिए मौत की सजा पहले उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए.
कानून कहता है: ‘मौत की सजा वाले अपराधी के पास सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का विकल्प होता है. यदि सर्वोच्च न्यायालय अपील को सुनने से इंकार करता है या मौत की सजा को बरकरार रखता है, तो दोषी या उसके रिश्तेदार अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति को या अनुच्छेद 161 के तहत राज्य के राज्यपाल को दया याचिका दे सकता है.
शारीरिक फिटनेस, उम्र, कानून के बहुत कठोर होने या दोषी घर का एक मात्र कमाने वाला हो के आधार पर दया अपील कर सकता है.
संविधान के अनुच्छेद 72, क्षमा करने की शक्ति – जिसकी फिलास्फी को ‘प्रत्येक सभ्य देश मान्यता देता है और कानून के तहत अनुग्रह और मानवता के कार्य के रूप में क्षमा शक्ति प्रदान करता है’ जो कि राष्ट्रपति से जुड़ा हुआ है.
अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि वह माफी दे सकता है, सजा कम कर सकता है, राहत दे सकता है या सजा घटा सकता है या निलंबित कर सकता है, हटा सकता है या सजा दे सकता है.
दया याचिका की समीक्षा गृह मंत्रालय द्वारा की जाती है, जो कि राष्ट्रपति के पास जाने से पहले, इसमें शामिल राज्य से विचार-विमर्श करता है.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 24 दया याचिकाएं खारिज की थीं, जबकि उनकी पूर्ववर्ती प्रतिभा पाटिल ने रिकॉर्ड 30 माफी दी, जिनमें से कुछ क्रूर अपराधों के मामले थे.
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जुलाई 2017 में राष्ट्रपति बने राम नाथ कोविंद ने कम से कम दो दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है- जगत राय की, जिन्होंने सात लोगों को जिंदा जला दिया, उनमें पांच बच्चे भी शामिल थे और हाल ही में 2012 में हुए सामूहिक बलात्कार के दोषी अक्षय की दया याचिका.
राज्य के राज्यपाल की शक्तियां भी राष्ट्रपति के समान हैं. अनुच्छेद 161 के अनुसार, राज्यपाल भी किसी भी कानून के खिलाफ अपराध में मौती की सजा पाए किसी भी व्यक्ति को माफी दे सकता है, सजा कम कर सकता है, राहत दे सकता है या निलंबित कर सकता है, या सजा दे सकता है.
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