scorecardresearch
Saturday, 16 November, 2024
होमदेशनए अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण खत्म हुई थी सिंधु घाटी सभ्यता 

नए अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण खत्म हुई थी सिंधु घाटी सभ्यता 

समुद्री जीवाश्म और डीएनए का उपयोग करके शोधकर्ताओं ने सिंधु घाटी सभ्यता के खत्म होने के कारणों का पता लगाया है.

Text Size:

बेंगलुरु: एक नए अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ही सिंधु घाटी सभ्यता के विनाश के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है.  इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है.

समुद्री जीवाश्म और इसके डीएनए का उपयोग करके शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है कि सर्दियों के मौसम में इजाफे के रूप में हुआ जलवायु परिवर्तन लोगों के पलायन का कारण हो सकता है. जिसके कारण सिंधु घाटी सभ्यता का खात्मा हुआ.

हड़प्पा सभ्यता

चार हज़ार साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में पनपी थी. यह सभ्यता उपजाऊ भूमि पर सिंधु नदी के आस-पास मौजूद थी. मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से सबसे व्यापक थी.

इसकी जनसंख्या तमाम क्षेत्रों में जो आज के गुजरात, राजस्थान, पंजाब, कश्मीर, उत्तर प्रदेश और सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के पाकिस्तानी प्रांतों में फैली हुई थी. यह कांस्य युग में 3300 ईसा पूर्व और 1300 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थी.

अप्रत्याशित रूप से सिंधु घाटी सभ्यता बहुत ही प्रगतिशील सभ्यता थी. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, और राखीगढ़ी के अवशेषों से पता चलता है कि ये योजनाबद्ध शहर थे जिसमें शहरी केंद्रों, नगरपालिका शासन, फलता -फूलता व्यापार और  कला  और अच्छी वास्तुकला के नमूने दिखाई देते थे.

अवशेषों से पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता सबसे पुरानी सभ्यता थी. जहां पर शहरी स्वच्छता प्रणालियां थीं. सभी घरों में शौचालय, स्नानघर और सीवेज की नालियों से लैस किया गया था. कुछ घर फ्लश शौचालय से सुसज्जित थे. हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग काफी अधिक उन्नत थी.

सिंधु घाटी सभ्यता में समाज मुख्य रूप से कृषि पर आधारित था. जिसमें उपकरण और धातु विज्ञान का उपयोग,  मूर्तिकला,   मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के साथ व्यापार, विज्ञान और गणित में प्रगति, एक व्यावहारिक लेखन प्रणाली है जिसे अभी तक समझा नहीं गया है और धर्म के प्रारंभिक रूपों, दंत चिकित्सा के शुरुआती चरणों के प्रमाण मौजूद थे.

हालांकि ये साक्ष्य यह भी इंगित करते हैं कि लगभग 1900 ईसा पूर्व के बाद मानव आबादी इस क्षेत्र में घट गई.  जिसमें बड़ी संख्या में लोग हिमालय की तलहटी में छोटे गांवों की तरफ बढ़ने लगे थे. 1800  ईसा पूर्व तक सिंधु घाटी सभ्यता के सभी शहर पूरी तरह से खाली हो गए थे.

2500 ईसा पूर्व के आस-पास इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे शुरू होने लगा. जिसके कारण सबसे पहले हवाएं और बारिश बदलने लगी. जिससे गर्मियों में बारिश धीरे-धीरे कम हो गयी. जिससे हड़प्पा शहरों के पास खेती करना मुश्किल या असंभव होने लगा.

नया अध्ययन क्या दर्शाता है?

वुड्स होल ओश्नोग्राफिक इंस्टीट्यूशन (डब्ल्यूएचओआई) द्वारा क्लाइमेट ऑफ द पास्ट पत्रिका में प्रकाशित हुए शोध के लेखक और  भूवैज्ञानिक लिवियु गियोसन ने कहा  ‘सिंधु घाटी के ऊपर तापमान और मौसमी चक्र में बदलाव की शुरुआत से मॉनसून अस्थिर होने लगा जिससे हड़प्पा शहरों के पास खेती करना मुश्किल या असंभव होने लगा.’

लिवियु गियोसन ने कहा ‘जैसे मेडिटेरेनियन से तूफ़ान हिमालय से टकराते हैं तो उससे पाकिस्तान में बारिश होती है. मानसून के कारण अगर सिंधु नदी में आयी बाढ़ की तुलना मानसून के कारण आयी बाढ़ से करते हैं तो अपेक्षाकृत कम पानी होता है, लेकिन कम से कम यह विश्वास योग्य होता है.’

मौसम परिवर्तन और सूखे का यह पैटर्न ढूंढना आसान नहीं होता है.  इसका प्रमाण मिट्टी में नहीं होता है.  इसे बेहतर तरीके समझने के लिए शोधकर्ताओं ने सागर तल का अध्ययन किया. उन्होंने पाकिस्तान से कई स्थानों  पर अरब सागर के तल से कोर नमूने एकत्र किए फिर उन्होंने जीवों के जीवाश्मों की तलाश की जो वर्षा के प्रति संवेदनशील थे. जैसे की फोरामिनिफेरा.

इन फोरम्स का अध्ययन करके वे यह समझने में सक्षम हो गए थे कि सर्दी और गर्मी के लिए कौन संवेदनशील थे.  इस प्रकार वे मौसमों की पहचान करते थे और फिर डीएनए प्रमाण सामने आए.

गियोसन ने कहा, ‘समुद्री तल के पास सिंधु नदी के ऊपरी सतह पर बहुत कम ऑक्सीजन होता है. इसलिए पानी में जो कुछ भी पैदा होता है और मर जाता है. वह सेडीमेंट में बहुत अच्छी तरह से संरक्षित होता है.’

उन्होंने कहा ‘आप मूल रूप से वहां मौजूद किसी भी चीज़ के डीएनए के टुकड़े को प्राप्त कर सकते हैं.’

पुरानी जैव विविधता की एक झलक

सर्दियों के दौरान तेज़ हवाएं महासागर में चलती हैं जो समुद्र तट तक अधिक पोषण वाले तत्वों और सेडीमेंट को लाती हैं. यह तुरंत समुद्री जीवों के बीच प्रजनन गतिविधि में गति प्रदान करता है. जो संख्या में भारी वृद्धि करता है. शेष वर्ष, सेडीमेंट जमावट कम होती है और समृद्ध नहीं होती है जिससे जैव विविधता घट जाती है.  जितना संभव हो उतने डीएनए इन कोर नमूनों के भाग में सैंपल किये जाये.

लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख में जीवाश्म विज्ञानी, जिओबायोलॉजीस्ट और पेपर के सह-लेखक विलियम ओर्सी कहते है कि इस एप्रोच का मकसद यह है कि यह आपको पिछले जैव विविधता की एक तस्वीर देता है जिसे आप ने कंकाल अवशेषों या जीवाश्म रिकॉर्ड पर निर्भर रहते हुए अनुभव नहीं किया है क्योंकि हम समानांतर में अरबों डीएनए अणुओं को अनुक्रमित कर सकते हैं. यह बताता है कि समय के साथ पारिस्थितिक तंत्र कैसे बदलता है.

यह वह समय था जब मिनी बर्फ युग की शुरुआत हो रही थी. आर्कटिक से ठंडी हवा यूरोप और अटलांटिक तक बहती थी. जिसने बदले में  हवाओं और बारिश को भूमध्यसागरीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में धकेल दिया जिससे  दीर्घकालिक जलवायु में परिवर्तन और नदियों के प्रवाह को बदल दिया.

जीवाश्म के संयोजन और समुद्री डीएनए का उपयोग करके शोधकर्ता यह निष्कर्ष निकालने में सक्षम थे कि सर्दियों के दौरान मानसून लगातार बढ़ते हैं और गर्मियों के दौरान घटते हैं. अंततः गर्मियों में पूरी तरह सूखा पड़ता था. इन परिणामों के साथ वे घटती जनसंख्या और शहरों से गांवों के लोगों के आने-जाने का पता लगाने में भी सक्षम थे.

गियोसन कहते हैं ‘ये परिणाम आज क्या हो रहा है इसकी चेतावनी दे रहे हैं.’

पलायन और जलवायु परिवर्तन

गियोसन ने कहा, ‘यदि आप सीरिया और अफ्रीका को देखे तो इन क्षेत्रों में पलायन जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं. यह सिर्फ शुरुआत है – जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र स्तर की वृद्धि से बांग्लादेश जैसे निचले क्षेत्रों या दक्षिणी अमेरिका में तूफान-प्रवृत्त क्षेत्रों से भारी पलायन हो सकता है.’

उन्होंने यह भी कहा ‘हड़प्पा के लोग आगे बढ़कर परिवर्तन का सामना कर सकते हैं. राजनीतिक और सामाजिक आक्षेपों का पालन करना पड़ सकता है.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

share & View comments