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Friday, 22 November, 2024
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SC आयोग के नए प्रमुख ने IIT पैनल को दिया संदेश : मत भूलिए कि संविधान एक दलित ने लिखा

बुद्धवार को NCSC अध्यक्ष का कार्यभार संभालने वाले विजय सांपला ने, IIT कमेटी के उस सुझाव पर सवाल उठाया है, कि फैकल्टी को जाति-आधारित आरक्षण से छूट मिलनी चाहिए.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के नए अध्यक्ष विजय सांपला ने, एक आईआईटी पैनल को उसकी इस सिफारिश के लिए आड़े हाथों लिया है कि फैकल्टी भर्तियों को एससी/एसटी आरक्षण के दायरे से बाहर रखना चाहिए.

दिसंबर 2020 में एक पैनल ने, जिसमें आईआईटी निदेशक और सरकारी अधिकारी शामिल थे, सुझाव दिया था कि आईआईटीज़ को जाति-आधारित आरक्षणों से छूट दी जानी चाहिए, चूंकि वो ‘राष्ट्रीय महत्व के संस्थान’ हैं.

दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, सांपला ने आईआईटी पैनल पर ये कहने के लिए सवाल उठाए कि ‘फैकल्टी पदों के लिए उचित उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं’.

पंजाब से पूर्व बीजेपी सांसद सांपला ने कहा, ‘आईआईटी पैनल को ये नहीं भूलना चाहिए कि पवित्र रामायण और देश का संविधान लिखने वाले व्यक्ति दलित ही थे’.

हालांकि सामाजिक न्याय और आदिवासी मामलों के मंत्रालयों ने सिफारिश का समर्थन नहीं किया है, लेकिन इस पर अंतिम फैसला अभी नहीं लिया गया है. सांपला की टिप्पणी उन दुर्लभ मिसालों में से एक है, जहां एक सरकारी पदाधिकारी ने, पैनल के सुझाव के खिलाफ कड़ा बयान जारी किया है.


यह भी पढ़ें: अनुसूचित जाति आयोग अध्यक्ष पद के लिए पंजाब के पूर्व BJP MP विजय सांपला के नाम पर सरकार ने लगाई मुहर


NCSC को अंतत: एक प्रमुख मिला

एनसीएससी में पिछले एक साल से कोई प्रमुख नहीं रहा है और इस बात को लेकर इसकी आलोचना हुई कि कुछ महीने पहले जब उत्तर प्रदेश के हाथरस और बलरामपुर में, दलित महिलाओं के खिलाफ अपराध सुर्ख़ियों में थे, तब आयोग नेतृत्व-विहीन था.

पिछले हफ्ते, उसी राज्य के उन्नाव में तीन दलित किशोर लड़कियों को ज़हर दे दिया गया, जिनमें से दो की मौत हो गई, और एक अभी भी गंभीर है. इस अत्याचार पर टिप्पणी करते हुए सांपला, जिन्होंने बुधवार को कार्यभार संभाला, ने कहा: ‘उत्तर प्रदेश एससी कमीशन के डायरेक्टर को, समीक्षा के लिए मौक़े पर भेजा गया था. कमीशन ने राज्य सरकार से कहा है कि पीड़िताओं के परिवार को कुल मिलाकर 12 लाख रुपए मुआवज़ा उपलब्ध कराया जाए’.

अध्यक्ष ने आगे कहा: ‘ये ध्यान में रखना भी महत्वपूर्ण है कि अपराध को अंजाम देने वाले भी, एससी समुदाय से ही ताल्लुक़ रखते थे; आयोग सुनिश्चित करेगा कि इस मामले में इंसाफ किया जाए’.

ख़बरों के मुताबिक़, दलितों के खिलाफ होने वाले 25 प्रतिशत अपराध, उत्तर प्रदेश में होते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि देशभर में एससी समुदाय के खिलाफ अपराधों में 7 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है.

इस आंकड़े पर प्रतिक्रिया देते हुए सांपला ने कहा: ‘उत्तर प्रदेश राजधानी के निकट है, इसलिए सबकी निगाहें यहां लगी रहती हैं, लेकिन एससी समुदाय की आबादी दूसरे सूबों में भी काफी अधिक है. मिसाल के तौर पर पंजाब को लीजिए…कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर ताज़ा जनगणना में पता चले कि वहां दलितों की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है’.

उन्होंने आगे कहा: ‘जहां तक जाति-आधारित भेदभाव का सवाल है, ये एक ऐसी समस्या है जिससे हमारा देश आज़ादी के 70 साल बाद भी ग्रसित है और अध्यक्ष के नाते ये मेरा कर्तव्य है कि मैं ऐसे पैनल्स स्थापित करूंगा, जो अपनी सिफारिशों से आयोग की सहायता करेंगे और ज़मीनी स्तर पर शोध करेंगे’.

एक प्रमुख की कमी के अलावा, एनसीएससी इस बात से भी जूझ रहा है कि उसके स्टाफ के केवल 20 प्रतिशत पद भरे हुए हैं. इस मुद्दे पर सांपला ने कहा: ‘यहां का स्टाफ केंद्र सरकार की ओर से, प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है और उसकी सीधी भर्ती नहीं होती. मैं अतिरिक्त कर्मियों की तैनाती के लिए सिफारिश करूंगा. मेरी अभी तक की बैठकों और चर्चाओं के बाद मुझे पता चला है कि स्टाफ का एक अकेला सदस्य, 10 से अधिक राज्यों को देख रहा है. ऐसा करना मानवीय रूप से असंभव है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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