नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि भारत और चीन के बीच, कोर कमांडर वार्ता के अगले चरण में, अनुबंध की शर्तों में पिछली बार की ‘न्यायसंगत डिसएंगेजमेंट’ की अवधारणा को त्याग दिया जाएगा, और बदली हुई ज़मीनी हक़ीक़त को मद्देनज़र रखा जाएगा, जिससे भारत की मोलभाव की ताक़त बढ़ेगी.
लेकिन एक बड़ी चुनौती ये रहेगी, कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर, शांति चाहने की अपनी कथनी को करनी में तब्दील करे. ये इस कारण से और भी अहम हो जाता है, कि कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) की 19वीं सेंट्रल कमिटी का, पांचवां पूर्ण अधिवेशन अक्तूबर में होने जा रहा है.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया, कि बहु-प्रतीक्षित कोर कमांडर वार्ता का तात्कालिक फोकस, ये सुनिश्चित करना होगा कि पैंगोन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे पर कोई टकराव न हो, जो 29 अगस्त की रात से भारत के क़ब्ज़े में है.
सूत्रों ने कहा कि यथास्थिति बनी हुई है, कोई आगे नहीं बढ़ रहा है, और चीनी अभी भी भारतीय सेना की अग्रिम चौकियों के सामने डटे हुए हैं. उन्होंने ये भी कहा कि अब ये चीन पर है, कि वो ज़मीन पर शांति चाहने की, अपनी कथनी पर क़ायम रहे, और भारत की ओर से पीछे तभी हटा जाएगा, जब चीन इसकी शुरूआत करेगा.
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बदलाव
ये पूछे जाने पर कि बातचीत को लेकर क्या बदलाव आएगा, सूत्रों ने कहा कि नई वार्ता नई शर्तों पर होगी.
कोर कमांडर स्तर की पिछले पांच दौर की बातचीत में, आधार ये था कि दोनों पक्षों को बराबर दूरी तक पीछे हटना था. गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग एरिया में तो ये उपाय सफल रहे, लेकिन पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर सफल नहीं रहे, जहां चीनी आठ किलोमीटर अंदर आ गए थे. इसका मतलब था कि भारत उस इलाक़े से पीछे नहीं हट सकता था, जहां वो हावी था, और जहां एक लंबे समय से उसके ठिकाने थे.
एक और मसला ऐसा ज़ोन बनाने का था, जो टकराव की जगह के पास, एक बफर ज़ोन का काम करेगा. लेकिन, चूंकि चीन भारत के इलाके के अंदर आ गया था, इसलिए कई जगहों पर ये बफर ज़ोन अस्ल में भारत की ओर ज़्यादा था.
इन मसलों के अलावा एक और बात ये थी, कि चीन पीछे हटने की एक समयबद्ध प्रक्रिया पर राज़ी नहीं हो रहा था. इसीलिए 2 अगस्त को हुई आख़िरी कोर कमांडर वार्ता के बाद, बातचीत में एक गतिरोध आ गया था.
ये देखते हुए कि बातचीत आगे नहीं बढ़ रही थी, भारत ने अपनी तैयार की हुई सैन्य योजना के, एक हिस्से को अमलीजामा पहना दिया, जिसके तहत सेना की विशेष इकाइयों ने कुछ इलाक़ों में, तैनाती और सैन्य परीक्षण शुरू कर दिए.
29 अगस्त की रात, पैंगोन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे पर, और अधिक इलाक़ा क़ब्ज़ाने की चीन की कोशिश ने, भारतीय सेना को आगे बढ़कर, कुछ हाइट्स पर क़ब्ज़ा करने को मजबूर कर दिया. 31 अगस्त को और अधिक सैनिक आ गए, और उन्होंने चुशुल सेक्टर की पहाड़ियों में, रेकिन दर्रे और सपैंगूर गैप पर क़ब्ज़ा कर लिया.
भारतीय सैनिक फिंगर 4 की रिजलाइन पर और ऊपर चढ़ गए, और अब उन्होंने चीनियों के खिलाफ मज़बूत पोज़ीशंस ले ली हैं, जिन्होंने फिंगर 4 तक के इलाक़े को क़ब्ज़ाया हुआ है.
इस हरकत के बाद, चीनियों की तरफ से बहुत से बयान जारी हुए हैं, और भारतीय सिपाहियों को डराने कि लिए, पीएलए सैनिकों ने उनपर हवाई फायर तक किए, लेकिन वो अपनी जगह डटे रहे.
चीन ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ, मॉस्को में एक मीटिंग के लिए भी कहा, और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ विस्तृत बातचीत की.
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आगे की चुनौतियां
सूत्रों का कहना था कि वार्ता के लिए मुख्य चुनौती ये होगी, कि हर चीज़ नए सिरे से शुरू होगी. एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन चीनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये होगी, कि अपनी कथनी पर अमल करें’. उन्होंने समझाया कि सर्दियों से पहले दोनों पक्षों ने, एलएसी पर अपनी सामरिक चालें चल दी हैं.
सूत्रों ने कहा कि भारत तो कठोर मौसम में, अपने सैनिकों की तैनाती का आदी है, लेकिन चीनियों के लिए ये नया अनुभव होगा.
एक सूत्र ने कहा, ‘अगस्त के अंतिम सप्ताह में भारत के उठाए क़दम, और सर्दियों के आने वाले मौसम से, बहुत सारी चीज़ें बदल जाएंगी.’
पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक (रिटा) ने कहा, कि भारत-चीन की कूटनीतिक वार्ता का परिणाम, और अगले कुछ दिनों में पूर्वी लद्दाख़ में सैन्य स्थिति, काफी हद तक इस पर निर्भर करेगी, कि चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग आगामी सीपीसी प्लेनरी में, ख़ुद को कैसे प्रोजेक्ट करना चाहते हैं.
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