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Friday, 22 November, 2024
होमदेशसरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा- 'अधिक दोहन' वाले क्षेत्रों में नए उद्योगों को नहीं मिलेगी जमीन से पानी निकालने की अनुमति

सरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा- ‘अधिक दोहन’ वाले क्षेत्रों में नए उद्योगों को नहीं मिलेगी जमीन से पानी निकालने की अनुमति

भूजल नियमित करने की गाइडलाइंस के मसौदे में प्रस्ताव है कि नियमों का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए का पर्यावरण मुआवज़ा और 10 लाख तक का भारी जुर्माना लगाया जा सकता है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने कड़े दिशानिर्देश प्रस्तावित किए हैं जिनमें ‘अधिक दोहन’ वाले क्षेत्रों में नए उद्योगों को भूजल निकालने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया गया है. इन इलाकों में दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और राजस्थान आदि शामिल हैं. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड (सीजीडब्लूबी) ‘अत्याधिक-दोहन’ वाले क्षेत्र उन्हें कहता है, जहां भूजल विकास 100 प्रतिशत से अधिक है यानि भूजल का सालाना उपभोग उसके रीचार्ज से ज़्यादा होता है.

जल शक्ति मंत्रालय की ओर से अंतिम रूप दिए गए भूजल दोहन को नियमित और नियंत्रित करने के संशोधित दिशानिर्देशों के मसौदे के अनुसार, जो दिप्रिंट के हाथ लगा है, ऐसे इलाकों में केवल सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को अनापत्ति प्रमाणपत्र दिए जाएंगे. लेकिन अधिक दोहन वाले क्षेत्रों में नए पैकेज्ड किए गए जल उद्योगों को एनओसी नहीं दिए जाएंगे, भले ही वो एमएसएमई श्रेणी में आते हों.

गाइडलाइंस के मसौदे में एनओसी हासिल करने के लिए ज़रूरी शर्तों का पालन न करने पर भारी जुर्माने का प्रस्ताव है. उपचारित या अनुपचारित पानी को जलीय प्रणाली में डालने पर परियोजना के प्रस्तावकों पर अधिकतम दस लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

पहली बार केंद्र ने उद्योगों, ढांचागत इकाईयों और खनन परियोजनाओं से, बिना वैध एनओसी के व्यावसायिक इस्तेमाल की खातिर भूजल दोहन करने पर पर्यावरण मुआवज़ा वसूलने का भी प्रस्ताव रखा है. न्यूनतम पर्यावरण मुआवज़ा एक लाख रुपए से कम नहीं होगा और ये गैर-कानूनी ढंग से निकाले गए भूजल की मात्रा के हिसाब से वसूला जाएगा.

जल शक्ति मंत्रालय ने दिशानिर्देशों का ये मसौदा राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों को भेजा है और इस पर उनकी टिप्पणी और सुझाव मांगे हैं. उनकी टिप्पणियां मिलने के बाद मंत्रालय इन गाइडलाइंस को नोटिफाई कर देगा.


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गाइडलाइंस क्यों संशोधित हुईं

मंत्रालय को भूजल निकालने की गाइडलाइंस का संशोधित मसौदा इसलिए तैयार करना पड़ा क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने दिसंबर 2018 में नोटिफाई की गईं पिछली गाइडलाइंस पर, इस आधार पर रोक लगा दी थी कि उन्होंने व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए भी जल दोहन के प्रति उदार रुख अपनाकर, भूजल की स्थिति को और ‘बिगाड़’ दिया था.

ये संशोधित गाइडलाइंस 2018 के नियमों में किए गए सुधार हैं, जिनमें अधिक दोहन वाले इलाकों में उद्योगों को भूजल निकालने के लिए एनओसी देने पर पाबंदी नहीं लगाई गई थी. उनमें पर्यावरण मुआवज़े और नियम तोड़ने पर भारी जुर्माने का भी प्रावधान नहीं था.

सीजीडब्ल्यूबी द्वारा 2017 में किए गए भूजल संसाधनों के मल्यांकन के अनुसार भारत की कुल 6,881 मूल्यांकन इकाइयों में से 1,186 को अत्याधिक दोहन वाली श्रेणी में रखा गया है. भूजल संसाधनों के लिए ब्लॉक्स, मंडलों और तालुकों को मूल्यांकन इकाई माना जाता है.

जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में भूजल का इस्तेमाल दुनिया में सबसे अधिक है जहां हर वर्ष 253 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी निकाला जाता है. ये दुनिया भर में निकाले जाने वाले पानी का लगभग 25 प्रतिशत है.


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किसको एनओसी मिल सकता है, किसको नहीं?

इनफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए गाइडलाइंस के मसौदे में अधिक दोहन वाली मूल्यांकन इकाइयों में नई और मौजूदा इनफ्रास्ट्रक्चर व खनन परियोजनाओं को एनओसी देने पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

गाइडलाइंस के मसौदे में कहा गया है, ‘चूंकि ढांचागत परियोजनाएं एक खास जगह के लिए होती हैं इसलिए अधिक दोहन वाली मूल्यांकन इकाइयों में ऐसी परियोजनाओं को एनओसी देने पर पाबंदी नहीं लगेगी’.

लेकिन ऐसी इकाइयों में निर्माण कार्यों के लिए भूजल के इस्तेमाल की अनुमति तभी दी जाएगी जब उनके आसपास 10 किलोमीटर की परिधि में ट्रीट किया हुआ सीवेज का पानी उपलब्ध नहीं होगा.

नए उद्योगों को अपने श्रमबल के लिए केवल पीने और घरेलू इस्तेमाल के लिए भूजल निकालने की एनओसी दी जाएगी और केंद्र अधिक दोहन वाले क्षेत्रों में उन मौजूदा उद्योगों को विस्तार की अनुमति नहीं देगा जिन्हें ज़मीन से और अधिक पानी निकालने की ज़रूरत होगी.

मौजूदा उद्योगों के लिए विशेष शर्तों पर पूरा उतरने और केंद्र द्वारा निर्धारित निष्कर्षण शुल्क अदा करने पर ही एनओसी प्रदान की जाएगी.

गाइलाइंस के मसौदे में ये भी ज़रूरी किया गया है कि वो सभी उद्योग जो 100 क्यूबिक मीटर से अधिक पानी निकालते हैं उन्हें सीआईआई और फिक्की जैसी औद्योगिक इकाइयों के ज़रिए पानी का सालाना ऑडिट कराना होगा और तीन महीने के भीतर उसकी रिपोर्ट जमा करनी होगी.

एक अनुमान के अनुसार सालाना भूजल निष्कर्षण का केवल 5 प्रतिशत ही औद्योगिक इस्तेमाल में लाया जाता है.

गाइडलाइंस में भूमिगत जल निकालकर थोक में पानी सप्लाई करने वाले सभी निजी टैंकरों के लिए भी एनओसी लेना अनिवार्य कर दिया गया है. अधिक दोहन वाली मूल्यांकन इकाइयों में पानी के ऐसे थोक सप्लायर्स को 35 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर के हिसाब से भूजल बहाली शुल्क देना होगा.


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पर्यावरण मुआवज़ा, भारी जुर्माना

गाइडलाइंस के मसौदे में एनओसी हासिल करने के लिए ज़रूरी शर्तों का पालन न करने पर भारी जुर्माने का प्रस्ताव रखा गया है. जैसा कि ऊपर उल्लेख हुआ है, उपचारित या अनुपचारित पानी को जलीय प्रणाली में डालने पर अधिकतम दस लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना भरने के अलावा नियम तोड़ने वालों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के प्रावधानों के तहत जलस्तर की भरपाई का खर्च भी उठाना होगा.

पानी के टैंकरों का पंजीकरण न कराने और जल संरक्षण के स्ट्रक्चर्स न बनाने या रीचार्ज की क्षमता अपर्याप्त होने पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगेगा.

भूजल निष्कर्षण के अतिरिक्त स्ट्रक्चर्स बनाने या उन्हें न दिखाने पर दो लाख रुपए का जुर्मान लगेगा. साथ ही पानी रीचार्ज के स्ट्रक्चर्स का रख-रखाव न करने और ड्रिलिंग रिग्स का पंजीकरण न कराने पर भी इतना ही जुर्माना लगेगा.

गलत जानकारी देने पर एक लाख का जुर्माना लगाया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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