रायपुर: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे नक्सलियों की घर वापसी ‘लोन वर्राटू’ अभियान के तहत 26 जून से अबतक 71 माओवादियों ने सरेंडर किया है जिसमें कई ईनामी भी हैं.
लगातार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की बढ़ती संख्या के बीच माओवादी नेताओं ने आरोप लगाया है कि पुलिस जिनको सरेंडर करने वाले नक्सली बता रही है वे सभी आम नागरिक हैं.
यही नहीं अपने आपको सही साबित करने के लिए माओवादियों ने पुलिस से मांग की है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा विधायक भीमा मंडावी के मौत का मुख्य आरोपी आत्मसमर्पित माओवादियों के खिलाफ भी कार्यवायी हो.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दरभा डिवीज़नल कमेटी (डीवीसी) ने सोमवार को एक पर्चा जारी कर राज्य पुलिस पर आरोप लगाया है कि पुलिस जिन लोगों को सरेंडर करने वाले माओवादी बता रही है वे आम ग्रामीण हैं.
माओवादियों का आरोप है कि पुलिस ने पहले इन्हें गिरफ्तार किया और अब इनको ही सरेंडर करने वाले माओवादी बात रही है. कमेटी के सचिव साईनाथ द्वारा जारी इस पर्चे में लिखा है, ‘आम जनता को नक्सली के नाम से अरेस्ट करके जबरन सरेंडर करवाया जा रहा हैं. सरेंडर का एक धंधा हैं. पैसा कमाने के लिए एसपी सरेंडर पॉलसी को दिखा रहे हैं.’
यही नहीं माओवादियों ने यह भी आरोप लगाया है कि पुलिस अपने लिए मुखबिरी का एक तंत्र तैयार करने के उद्देश्य से ग्रामीणों को सुविधा के नाम पर मोबाइल फोन भी दे रही है.
माओवादियों के पर्चे में लिखा है, ‘दंतेवाड़ा एसपी डॉक्टर अभिषेक पल्लव और स्थानीय पुलिस आम जनता, पढ़ाई करने वाले बच्चों, गुरूजियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मितानिन, को मोबाईल बांट रहे हैं. इस के साथ ही फोन नंबर के लिए सिम भी दे रहे हैं.’
‘ऐसा करके वे आम लोगों को लालच दिखाकर ‘सुकली-नेटवर्क’ (मुखबिरी का तंत्र) तैयार करने का काम कर रहे हैं. वे ग्रामीणों को उनकी अपनी ही उंगलियों से स्वयं की आंखे फोड़वाने के लिए यह काम सौंप रहे हैं.’
डीवीसी सचिव ने कहा ,’9 अप्रैल 2019 को भीमा मड़ावी को बम विस्फोट कर उड़ा दिया गया था. ये विस्फोट माओवादियों ने ही कराया था लेकिन इसका मुख्य जिम्मेदार गद्दार बादल है. इसको तुरंत सजा देनी चाहिए.’
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‘नक्सली साथियों के सरेंडर से घबराए’
पर्चे पर लिखी बातों पर पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि माओवादी जिस बादल को गद्दार कह रहे हैं उसने अपनी पत्नी के साथ पिछले साल आत्मसमर्पण किया था. बादल ने रक्षा बंधन के अवसर पर अपनी बहन से भी सरेंडर करने का आग्रह किया है.
ज्ञात हो कि भाजपा विधायक की मौत की जांच एनआईए को सौंप दी गयी थी. पुलिस का कहना है कि जांच एजेंसी द्वारा छः आरोपियों को बादल के खुलासे पर ही गिरफ्तार किया गया था. ये सभी आरोपी नक्सलियों के सपलायर्स थे.
माओवादियों के आरोप पर दंतेवाड़ा के एसपी डॉक्टर अभिषेक पल्लव ने दिप्रिंट से कहा, ‘माओवादियों का यह पर्चा उनकी बौखलाहट का नतीजा है. पुलिस द्वारा हाल ही में उनके कई सप्लायर्स को गिरफ्तार किया गया है जिससे उनको रसद और विस्फोटक बनाने के सामानों की पूर्ति नही हो रही है. माओवादी अपने सप्लायर्स को बचाना चाहते हैं.’
बादल के संबंध में पल्लव कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नही है की वह मुख्य आरोपी है लेकिन सरेंडर पालिसी ऐसी है कि आत्मसमर्पण करने वाले के खिलाफ केस वापस हो जाता है.”
माओवादियों द्वारा पुलिस के खिलाफ आम नागरिकों को गिरफ्तार करने के आरोप पर पल्लव कहतें हैं, ‘सरेंडर करने वाले सभी माओवादी हैं. नक्सली आपने फ्रंटल घटकों के सदस्यों को भी आम नागरिक ही बताते हैं. ऐसा बोलकर वे आम जनता को गुमराह करते हैं. पुलिस द्वारा चलाए जा नक्सलियों की घर वापसी ‘लोन वर्राटू’ अभियान के तहत 26 जून से अबतक 71 माओवादियों ने सरेंडर किया है जिसमें कई ईनामी भी हैं.’
‘नक्सलियों की पकड़ हुई कमजोर’
पुलिस का कहना है इससे पहले माओवादियों जो पर्चे जारी किए उनमें पुलिस पर लोगों पर अत्याचार करने, महिलाओं के साथ बलात्कार करने, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिन, बच्चों और ग्रामीणों को मारने के आरोप लगाते थे. लेकिन इस पर्चे में ऐसी कोई बात नही कही गई है.
पल्लव आगे कहते हैं, ‘इसका सकारात्मक पक्ष है. इससे साबित हो रहा है कि माओवादियों को सुरक्षाबलों के खिलाफ मुद्दे नहीं मिल रहे हैं. वे कह रहें हैं पुलिस ग्रामीणों को मोबाइल फोन और सिमकार्ड मुहैया करा रही है. नक्सलियों ने माना है कि उनके विकास कार्यों को रोकने की साजिश का साथ नहीं देने पर अपने ही साथियों को मार दिया. अब अपने कृत्यों पर ग्रामीणों को सफाई दे रहें हैं. उन्होंने सरेंडर किए हुए माओवादियों के खिलाफ पुलिस को कार्यवाई करने के लिए बोलना शुरू कर दिया है. इससे साफ जाहिर है कि ग्रामीणों के बीच उनकी पकड़ कम हो रही है.’
माओवादियों ने दी सफाई
माओवादियों ने दंतेवाड़ा के पोटाली गांव में 22 जुलाई को गला रेतकर दो ग्रामीणों की हत्या कर दी गई थी. इस घटना पर पुलिस ने बताया गया था कि मरने वाले दोनों ग्रामीण नक्सली कमांडर देवा के साथी माओवादी मिलिशिया के सदस्य भी थे.
कमेटी ने पर्चे में पुलिस के दावे का खंडन करते हुए कहा,’ डॉ. अभिषेक पल्लव ने बताया की सड़क काटने से इन लोग ने विरोध किया इसलिए इनकी हत्या की गई. ये लोग मिलिशिया में नही थे लेकिन दुश्मन के मुखबिर थे. एसपी ने इस घटना को तुम्हारे साथी को तुमने ही मारा बताया है. ये सरासर झूठ हैं. दोनों पुलिस के मुखबिर थे.’
माओवादियों के अनुसार पोटाली दुर्वापारा निवासी वेट्टी भीमा और मडावी भीमा को पीएलजीए ने मारा था. पर्चे के में साईनाथ के कहा, ‘पुलिस द्वारा किए जा रहे सर्चिंग अभियानों में ये दोनों आगे रहते थे और स्थानीय निर्माणों को पकड़वाने के लिए हमेशा जांच करते थे.
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नक्सलियों का कहना है कि दोनों ग्रामीण उनकी,”उपस्थिति के बारे में दिन-रात थानेदार को खबर देते थे और अपनी मुखबिरी के जाल में गांव के बाकी युवकों को भी फंसाने की कोशिश करते रहे.’