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Thursday, 25 April, 2024
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राष्ट्रवाद और धार्मिक भावनाओं के ज्वार में होता है फ़र्ज़ी ख़बरों का प्रसार

लोग 'राष्ट्रवाद' या दूसरे भावनात्मक आवेग में ऐसी फ़र्ज़ी ख़बरों को शेयर करते हैं. ऐसा करके वे समझते हैं कि वे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं.

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नई दिल्ली: सरकार की ओर से जारी नये दो हज़ार के नोट में चिप की उन फर्ज़ी खबरों से आप भी रूबरू हुए होंगे जिसमें कहा था कि ये नोट चाहे जहां रखे जाएं, सरकार पता लगा लेगी. इसी तरह से वेदों में आधुनिक विज्ञान और तकनीक की मौजूदगी, गाय ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है, भारत में अभूतपूर्व विकास, विश्व में भारत की स्वीकार्यता, हिंदू धर्म या भारत की महानता आदि से जुड़ी फर्ज़ी खबरों या फेक न्यूज़ से हम सबका सामना होता रहता है जो तथ्यों से परे और झूठी होती हैं. ऐसी खबरें लोग क्यों फैलाते हैं?

बीबीसी द्वारा वैश्विक स्तर पर किए गए ‘हैशटैग बियॉन्ड फेकन्यूज़’ नाम के अध्ययन में कहा गया है कि लोग ‘राष्ट्रवाद’ की भावना या दूसरे भावनात्मक आवेग में ऐसी फर्ज़ी सूचनाओं को शेयर करते हैं. ऐसा करके वे समझते हैं कि वे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं. इस अध्ययन में आम लोगों ने अध्ययनकर्ताओं को अपने फोन की सूचनाएं मुहैया कराईं, जिसका अध्ययन किया गया और यह बात सामने आई है. इस अध्ययन को आज सार्वजनिक किया जा रहा है.

इस अध्ययन में फर्ज़ी खबरों के प्रसार में मुख्यधारा के मीडिया को भी ज़िम्मेदार माना गया है. मीडिया के पास फर्ज़ी खबरों की राष्ट्रव्यापी समस्या की कोई काट नहीं है, क्योंकि की अपनी ही प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बहुत कमज़ोर है. आम लोग ऐसा मानते हैं कि राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के दबाव में आकर मीडिया ‘बिक गया’ है.

अध्ययन में कहा गया है कि भारत में लोग उन सूचनाओं को शेयर करने में झिझक महसूस करते हैं जिनसे हिंसा को बढ़ावा मिलता हो, लेकिन उन सूचनाओं को जिनमें राष्ट्रवादी बखान हो या राष्ट्र की बात हो, उनको बढ़चढ़ शेयर करना अपना कर्तव्य समझते हैं.

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भारत में फर्ज़ी खबरों का कारोबार बहुत तेज़ी से फैल रहा है. इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत के विकास, हिंदू धर्म के प्राचीन गौरव और इसका पुनर्जागरण आदि से जुड़ी भावनात्मक सूचनाओं को लोग बिना तथ्य जांचे बढ़चढ़ कर शेयर करते हैं.

केन्या और नाइजीरिया में भी फर्ज़ी खबरों को फैलाने के पीछे कर्तव्यबोध मुख्य कारक है. लोग अपने आसपास के लोगों के बीच ब्रेकिंग न्यूज़ पहुंचाने के उत्साह के चलते भी ऐसा करते हैं. लोकतंत्र के प्रति अपना कर्तव्य भी फर्ज़ी खबरें फैलाने के पीछे काम करता है. लोगों को ऐसा महसूस होता है कि वे ऐसा करके अपना कर्तव्य निभा रहे हैं.

लोग अपनी बात रखने के लिए झूठे तथ्यों का सहारा लेते हैं और इसमें कुछ गलत नहीं समझते. ऐसे हज़ारों संदेश रोज़ प्रसारित होते हैं.

लोग फर्ज़ी खबरों को बिना तथ्य की जांच किए साझा करते हैं और ऐसा करके वे समझते हैं कि वे राष्ट्र निर्माण या हिंदू धर्म का खोया हुआ गौरव और प्रतिष्ठा वापस पाने में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. रिसर्च में दावा किया गया है कि फर्ज़ी खबरों फैलाने वाले लोगों का मोदी के समर्थन से गहरा संबंध है और वे आपस में मिलजुल कर एक टीम की तरह काम करते हैं.

‘हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, मोदी, सेना, देशभक्ति, पाकिस्तान विरोध और अल्पसंख्यकों को दोषी ठहराने वाले अकाउंट आपस में जुड़े हुए हैं. वे ऐसे सक्रिय रहते हैं जैसे वे कोई कर्तव्य पूरा कर रहे हों. इसके विपरीत, बंटे हुए समाज में इनके विरोधियों की विचारधारा अलग-अलग है, मगर मोदी या हिंदुत्व की राजनीति का विरोध उन्हें जोड़ता है. मगर भिन्न विचारों की वजह से मोदी विरोधी मोदी के समर्थकों की तरह एकजुट नहीं हैं. मोदी विरोधी भी फर्ज़ी खबरें फैलाते हैं लेकिन मोदी समर्थकों की तुलना में कम हैं.’

बीबीसी हिंदी ने इस अध्ययन से जुड़ी एक खबर में लिखा है, ‘प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर हैंडल @narendramodi जितने अकाउंट को फ़ॉलो करता है उनमें से 56.2% वेरिफाइड नहीं हैं. इन बिना वेरिफ़िकेशन वाले अकाउंट में से 61% बीजेपी का प्रचार करते हैं. बीजेपी का दावा है कि ट्विटर पर इन अकाउंट को फ़ॉलो कर प्रधानमंत्री आम आदमी से जुड़ते हैं, हालांकि ये अकाउंट कोई मामूली नहीं हैं. इन अकाउंट के औसत फ़ॉलोअर 25,370 हैं और इन्होंने 48,388 ट्वीट किए हैं. प्रधानमंत्री इन अकाउंट को फॉलो करके उन्हें एक तरह की मान्यता प्रदान करते हैं. वे अपने परिचय में लिखते हैं कि देश के प्रधानमंत्री उन्हें फ़ॉलो करते हैं. इसके उलट कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 11% बिना वेरीफिकेशन वाले अकाउंट फ़ॉलो करते हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल के मामले में ये आंकड़ा 37.7% है.’

इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के साथ जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बीबीसी के रिसर्च प्रमुख की ओर से कहा गया है कि ‘इस रिसर्च के पीछे मुख्य सवाल यह था कि लोग फर्ज़ी खबरों को लेकर चिंतित भी हैं फिर भी वे फर्ज़ी खबरों को क्यों साझा करते हैं. सोशल नेटवर्क के अध्ययन से सहारे इस रिपोर्ट में भारत, केन्या और नाइजीरिया में यह पड़ताल की गई.
बीबीसी के निदेशक जेम्स एंगस ने कहा, ‘जब पश्चिमी मीडिया की अधिकांश बहस फर्ज़ी खबरों पर केंद्रित है, यह अध्ययन एक मज़बूत सबूत की तरह है कि कैसे राष्ट्र निर्माण की भावना फर्ज़ी खबरों के प्रसार में अहम भूमिका अदा करती है.’

इस अध्ययन में 16,000 ट्विटर प्रोफाइल, भारत में 3,200 फेसबुक पेज 3,000 अफ्रीकी फेसबुक पेजेज़ को शामिल किया गया. भारत के दस शहरों में और नाइजिरिया के तीन व केन्या के दो शहरों में लोगों 200 घंटे से ज़्यादा इंटरव्यू किए गए.

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