scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशएनएमसी कानून पर बोले स्वास्थ्य मंत्री, चिकित्सा जगत की खामियों पर लगेगी लगाम

एनएमसी कानून पर बोले स्वास्थ्य मंत्री, चिकित्सा जगत की खामियों पर लगेगी लगाम

परीक्षा से जुड़ी चिंताओं पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने NEET परीक्षा के मुद्दे को सुलझा लिया है. किसी भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों को एक परीक्षा देनी होगी.

Text Size:

नई दिल्ली: नेशनल मेडिकल कमीशन बिल को राष्ट्रपति ने अपनी सहमति दे दी है और अब ये नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट 2019 बन गया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि जो लोग डॉक्टर बनना चाहते हैं और जो मेडिकल कॉलेज चलाना चाहते हैं उन्हें इस सुधार से बहुत लाभ मिलेगा.

उन्होंने ये जानकारी भी दी कि इसके लिए जो समिति बनाई गई थी उसने रिपोर्ट में कहा था कि मेडिकल कमिशन ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) अक्षम और भ्रष्ट हो गई है. देश को चिकित्सा विशेषज्ञों के एक नए शासन की आवश्यकता है. संसद की स्थायी समिति ने भी ये बात मानी और रंजीत राय रिपोर्ट को लागू करने के लिए कहा, जिसके परिणामस्वरूप ये बिल आया था. अब ये कानून बन गया है और अगले 6 महीने में ये अपरिभाषित चीज़ों को परिभाषित कर देगा.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस नए कानून के बारे में बहुत सी गलतफहमियां है. बहुत सारे लोग गुमराह कर रहे हैं और गुमराह हो रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें समझने की कोशिश की और बताया कि 90% डॉक्टरों ने आपके विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लिया.’ उन्होंने सभी हितधारकों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करने का भी दावा किया.

स्वास्थ्य मंत्री ने जानकारी देते हुए कहा कि एमसीआई का जन्म 1933 में हुआ था और वो आदर्श लोगों का समय था. 1956 में इसका एक नया संस्करण आया. इसे लेकर पिछले दो से तीन दशकों में कई शिकायतें समाने आईं जिसकी वजह से ये नई व्यवस्था बनाई गई. एमसीआई की बॉडी में 33 सदस्य हैं और इनमें से 29 डॉक्टर हैं. एक सलाहकार बोर्ड होगा जो इसे सलाह देगा और समन्वय बिठाने का काम करेगा.

ईमानदारी का रखा जाएगा पूरा ख़्याल

स्वास्थ्य मंत्री ने दावा करते हुए कहा, ‘हमने ध्यान रखा है कि ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठना चाहिए और इसके लिए लोगों का चयन करते समय बहुत सतर्कता बरती जाएगी. हम चुन गए लोगों के सभी हितों/संपत्तियों को देश के लोगों के लिए वेबसाइट पर सार्वजनिक करेंगे.’

उन्होंने कहा कि चुने गए सभी अधिकारियों को चार साल के भीतर बदल दिया जाएगा. कार्यकाल पूरे होने के बाद उन्हें अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी होगी. यूजी और पीजी में विचार-विमर्श के लिए अलग-अलग बोर्ड होंगे. छात्रों और अभिभावकों की सुविधा के लिए हर मेडिकल कॉलेज की रेटिंग की जाएगी. उम्मीद है कि रेटिंग की वजह से कॉलेज अपने मानकों को बनाए रखेंगे. नैतिकता के लिए भी एक बोर्ड होगा और डेटा का भी एक लाइव रजिस्टर होगा.

एंट्री और एक्ज़िट के लिए बस एक-एक परीक्षा

परीक्षा से जुड़ी चिंताओं पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने NEET परीक्षा के मुद्दे को सुलझा लिया है. सरकार ने इसे इस कानून में शामिल किया है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों को एक परीक्षा देनी होगी और अंत में अब सिर्फ एक एग्जिट परीक्षा होगी. अगर उम्मीदवार परीक्षा में अच्छी मेरिट नहीं पाता तो फिर से परीक्षा दे सकते हैं. ये भी बताया गया कि पीजी मेरिट परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर आधारित होगी.

स्वास्थ्य मंत्री ने ये भी भरोसा दिलाया कि नया कानून सरकार को एनएमसी के गठन के लिए नौ महीने का समय देता हैं, लेकिन छह महीने के भीतर इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे. वहीं, इसे अगले तीन वर्षों में लागू किया जाएगा क्योंकि पुराने कानून की वजह से जो चीज़ें मौजूद हैं उनकी जगह पर नए कानू को लागू करने के लिए समय की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि पहले मेडिकल कॉलेज की फीस को तय करने का कोई प्रावधान नहीं था. वर्तमान में कॉलाजों में 80000 मेडिकल सीटें हैं, जिनमें से 40000 राज्यों में हैं और उनसे जुड़े मामले राज्य ही तय करते हैं. अब इसका 20% केंद्र के हिस्से आएगा और इससे फीस तय करने में मदद मिलेगी. तकनीकी रूप से एक भी सीट ऐसी नहीं होगी जिसे रेग्युलेट नहीं किया जाएगा.

उन्होंने ये भी कहा कि मेडिकल कॉलेज हॉस्टल के नाम पर भी फीस लेते हैं. अब वह भी नियमित हो जाएगा. कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर‬ (सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता) का भी मुद्दा उठाया जा रहा है. हर्षवर्धन ने दावा किया कि इसे लेकर बवाल पूरी तरह से गतल है.

उन्होंने कहा कि पहले उन पर 1000 का जुर्माना लगता था लेकिन अब उन पर 5 लाख का जुर्माना लगाया जाएगा और एक साल की जेल होगी. वहीं ये भी बताया कि सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता एक विश्व स्तर की प्रैक्टिस है और ये अमेरिका में भी बहुत प्रचलित. इससे सरकार को ग्रामीण भारत और बिहार जैसे राज्यों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा कि सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता की एक बहुत ही सीमित भूमिका होगी, इसलिए उन्हें क्वैक कहा जाना बंद कर दिया जाना चाहिए.

share & View comments