नई दिल्ली: श्रीनगर की डल झील की तरह, तैरते हुए फूलों और फलों के बाज़ार और यात्रियों की शहर में एक जगह से दूसरी जगह आवाजाही के लिए नाव सेवाएं- ये वो तरीका है जिससे नरेंद्र मोदी सरकार गंगा नदी को आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनाना चाहती है.
नदी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, सरकार जहाजरानी मंत्रालय के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में, तैरते हुए बाज़ार बनाने और शहरों के अंदर लोगों की आवाजाही के लिए, गंगा नदी में कम्यूनिटी जैटी शुरू करने का सुझाव दिया गया है.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, जहाजरानी मंत्री मंसुख मांडविया और उनके अधिकारियों ने, पिछले महीने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में इस परियोजना को लेकर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया, जिसका नाम है ‘अर्थ गंगा’ और जिसका अनुमानित खर्च 1367 करोड़ रुपए है.
नाम न छापने की शर्त पर उन अधिकारियों ने बताया कि पीएमओ ने परियोजना को अपनी हरी झंडी दे दी है और मंत्रालय अब एक कैबिनेट नोट का मसौदा तैयार कर रहा है.
जहाजरानी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने, जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और संघीय थिंक-टैंक नीति आयोग के प्रमुख अधिकारियों के सामने भी प्रेजेंटेशंस दिए.
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क्या है अर्थ गंगा प्रोजेक्ट?
अर्थ गंगा परियोजना में नदी में आवाजाही के लिए, छोटी कम्यूनिटी जैटीज़ विकसित करने की परिकल्पना की गई है, जिनसे फल, फूल, सब्ज़ियां, दूध उत्पाद और पॉटरी बेचने वाले किसान, अपने उत्पादों को ऊपर बताए गए राज्यों के, बड़े शहरों के बाज़ारों में गंगा किनारे बेच सकेंगे.
प्रस्ताव से परिचित एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘इससे न सिर्फ किसानों के माल ले जाने की लागत कम होगी, बल्कि उन्हें दलालों से भी मुक्ति मिल जाएगी और वो सीधे बाज़ार पहुंचकर अपनी उपज बेच पाएंगे.’
मिसाल के तौर पर, उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर ज़िले के, एक छोटे से कस्बे सैदपुर के सब्जी किसान को, 31 किलोमीटर दूर वाराणसी तक अपनी उपज को पहुंचाने के खर्च में, करीब 27 प्रतिशत की बचत होगी. अधिकारी ने कहा कि बिना किसी दलाल के, किसान की लागत में, ’20 से 30 हज़ार रुपए की सालाना बचत हो जाएगी.’
इसके अलावा मंत्रालय ने, शहरों की अलग-अलग जगहों, खासकर पर्यटन स्थलों को जोड़ने के लिए, नाव सेवा शुरू करने का भी प्रस्ताव दिया है. मसलन बिहार के पटना में, मंत्रालय का प्रस्ताव है कि शहर की अलग-अलग जगहों को पटना यूनिवर्सिटी से जोड़ा जाए, जो 11 किलोमीटर के अंदर है.
अधिकारियों ने बताया कि ये परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल के बहुत करीब है. दिसंबर 2019 में उन्होंने ही ‘अर्थ गंगा’ को, सतत विकास का मॉडल बताया था, जिसका फोकस नदी से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों पर था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस वित्त वर्ष में, अपने बजट में इसका ज़िक्र किया था.
रिवर इकोनॉमी में बहुत संभावनाएं हैं, क्योंकि भारत की लगभग 30 प्रतिशत आबादी गंगा नदी के आसपास रहती है. भारत के कुल माल का करीब पांचवां हिस्सा, गंगा के आसपास के चार राज्यों से निकलता है और करीब एक तिहाई इन राज्यों में आता है.
इस परियोजना को भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्लूएआई) द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा, जो जहाज़रानी मंत्रालय के तहत एक एजेंसी है.
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बजट
इस विषय से परिचित एक अधिकारी ने बताया कि अर्थ गंगा परियोजना की अनुमानित लागत 1367 करोड़ रुपए है, लेकिन कोष से किसी अतिरिक्त राषि की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
ये परियोजना वित्त मंत्रालय के इस महीने जारी, उस आदेश से प्रभावित नहीं होगी कि कोविड-19 राहत उपायों के अलावा, मौजूदा वित्त वर्ष में कोई सार्वजनिक वित्त पोषित योजना, मंज़ूर नहीं की जाएगी.
आईडब्लूएआई की योजना अपनी 14,00 करोड़ रुपए की उस बचत को इस्तेमाल करने की है, जो उसने जल मार्ग विकास परियोजना से की है. अधिकारी ने आगे कहा, ‘जल मार्ग विकास परियोजना की अनुमानित लागत 5,369 करोड़ रुपए थी, लेकिन आईडब्लूएआई उसे 4000 करोड़ से कम में पूरा कर लेगी. बचे हुए अतिरिक्त फंड्स अर्थ गंगा परियोजना में इस्तेमाल किए जाएंगे.’
जल मार्ग विकास परियोजना उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड में, गंगा में माल ढुलाई के लिए, मल्टी-मोडल टर्मिनल बनाने की है.
एक दूसरे अधिकारी ने बताया कि जहाज़रानी लायक 14,500 किलोमीटर के जलमार्ग होने के बावजूद, इसके ज़रिए केवल 0.5 प्रतिशत माल की ढुलाई होती है, जबकि 65 प्रतिशत ढुलाई सड़क से और 27 प्रतिशत रेल से होती है.
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