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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशनार्को आतंक, अफगानिस्तान- दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल में 31 साल बाद DCPs के पद पर तैनात किए गए IPS अधिकारी

नार्को आतंक, अफगानिस्तान- दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल में 31 साल बाद DCPs के पद पर तैनात किए गए IPS अधिकारी

1990 के बाद से स्पेशल सेल में केवल डीएएनआईपीएस (दिल्ली अंडमान व निकोबार पुलिस सर्विस) अधिकारी ही बतौर डीसीपी तैनात रहे हैं. लेकिन कमिश्नर अस्थाना का कहना है कि उभरते परिदृश्य में कुछ नया करने की जरूरत है.

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नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल में 31 वर्षों में पहली बार तीन आईपीएस अधिकारी बतौर उपायुक्त पुलिस (डीसीपी) तैनात किए गए हैं.

1990 के बाद से केवल डीएएनआईपीएस (दिल्ली अंडमान व निकोबार पुलिस सर्विस) अधिकारी ही स्पेशल सेल में डीसीपी के पद पर रहे हैं, जिसका गठन 1986 में राष्ट्रीय राजधानी श्रेत्र में आतंकवाद, संगठित अपराध और अन्य गंभीर अपराधों को रोकने और उनका पता लगाने तथा उनकी जांच करने के लिए किया गया था.

आईपीएस अधिकारियों जसमीत सिंह (2009 बैच), इंगित प्रताप सिंह (2011 बैच) और राजीव रंजन (2010 बैच) ने इसी महीने स्पेशल सेल में डीपीसी के पदभार संभाल लिए. तीन मौजूदा डीएएनआईपीएस अधिकारियों- पीएस कुशवाह, मनीष चंद्रा और संजीव यादव को मिलाकर स्पेशल सेल में अब छह डीसीपी होंगे.

इन नियुक्तियों के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने कहा कि आईपीएस अधिकारी नए विचार लेकर आएंगे. उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा परिदृष्य में जहां नार्को आतंक और संगठित अपराध बढ़ रहे हैं, ये बहुत सोच-समझकर उठाया हुआ कदम है.

उन्होंने कहा, ‘आईपीएस अधिकारियों का अपना एक विज़न होता है, नए विचार होते हैं और अपने व्यापक अनुभवों के साथ वो एक नया नज़रिया लेकर आते हैं. वो बहुत अच्छे से प्रशिक्षित होते हैं और अच्छे लीडर तथा अच्छे मानव प्रबंधक होते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मौजूदा परिदृश्य में, जिसमें अफगानिस्तान का घटनाक्रम शामिल है और आतंक तथा संगठित अपराध बढ़ रहे हैं, नार्को आतंक और संगठित अपराध के लिए एक स्पेशल यूनिट की जरूरत थी, जिसकी अगुवाई ये आईपीएस अधिकारी करेंगे’.

अस्थाना ने कहा कि मौजूदा डीएएनआईपीएस अधिकारी अपने पदों पर बने रहेंगे और इस बदलाव में ‘स्पेशल सेल में सिर्फ एक नया आयाम जोड़ा जाएगा’.


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इस पद पर केवल डीएएनआईपीएस अधिकारी ही क्यों थे

स्पेशल सेल पहले दिल्ली पुलिस स्पेशल ब्रांच की एक शाखा थी. इसका गठन पंजाब में बढ़ते उग्रवाद को देखते हुए किया गया था. वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, 1984 में पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद महसूस किया गया कि पंजाब में उग्रवाद और आतंक से जुड़े दूसरे मामलों से निपटने के लिए एक अलग यूनिट के गठन की जरूरत है.

दिल्ली पुलिस स्पेशल ब्रांच की दो डिवीज़न्स थीं- एसबी-1 और एसबी-2. एसबी-1 पर वीवीआईपी सुरक्षा, खुफिया जानकारी जुटाने और भारत आने वाले पाकिस्तानी नागरिकों के पंजीकरण का जिम्मा था, जबकि एसबी-2 आतंक से जुड़े मामले देखती थी, इंटरसेप्शंस करती थी और खुफिया एजेंसियों के साथ नज़दीकी से काम करती थी. ये एसबी-2 थी जिनका 1986 में नाम बदलकर स्पेशल सेल कर दिया गया.

ये पूछने पर कि इतने लंबे समय तक स्पेशल सेल में कोई आईपीएस अधिकारी बतौर डीसीपी तैनात क्यों नहीं किया गया, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ये कमिश्नर द्वारा लिया गया एक नीतिगत फैसला था. लेकिन अधिकारी ने आगे कहा कि एक संभावित स्पष्टीकरण ये हो सकता है कि एक आईपीएस अधिकारी किसी पद पर 2.5 से 3 साल तक तैनात रहता है, जो स्पेशल सेल जैसी इकाई के लिए बहुत कम हो सकता है.

हालांकि, किसी आईपीएस या डीएएनआईपीएस अधिकारी का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता लेकिन डीएएनआईपीएस अधिकारियों को दिल्ली में ज्यादा समय मिल जाता है, क्योंकि उन्हें केवल दो अन्य जगहों पर तैनात किया जा सकता है- दमन और दीव तथा अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह. अपने पूरे सेवा काल में उन्हें इन दो यूटीज़ में से किसी एक में एक कठोर तैनाती मिलती है और अपना बाकी करियर वो दिल्ली में बिताते हैं. इसलिए वो विशिष्ट इकाइयों में लंबे समय तक रहते हैं.

इस बीच, एक आईपीएस अधिकारी के ज्यादा तबादले होते हैं और उसके प्रमोशन भी अपेक्षाकृत जल्दी होते हैं.

मसलन, एजीएमयूटी काडर के किसी आईपीएस अधिकारी का तबादला, किसी भी केंद्र-शासित प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश, गोवा और मिज़ोरम राज्यों में किया जा सकता है.

35 वर्ष के सेवा काल में एक आईपीएस अधिकारी को पांच से छह प्रमोशंस तक मिल सकते हैं- असिस्टेंट कमिश्नर से लेकर पुलिस कमिश्नर तक- जबकि डीएएनआईपीएस के लिए अधिकतम चार प्रमोशंस हैं, असिस्टेंट कमिश्नर से लेकर ज्वायंट कमिश्नर तक.

ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, ‘स्पेशल सेल का गठन आतंकवाद के मामलों से निपटने के लिए किया गया था. ये खुफिया जानकारी जुटाता है, असेट्स बनाता है, उन्हें काम पर लगाता है, और ऐसे ऑपरेशंस में शामिल होता है, जो दो-तीन साल तक भी चलते हैं. इसलिए अगर कोई आईपीएस अधिकारी डीसीपी होगा, तो कुछ निश्चित वर्षों के बाद उसे अपना पद छोड़ना होगा, जो बहुत कम अवधि होती है. कार्यकाल की स्थिरता और निरंतरता बनाए रखने के लिए इस पद पर डीएएनआईपीएस अधिकारी रखे गए हैं’.

एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि आईपीएस अधिकारियों का करियर प्रोग्रेशन, उन्हें इसमें ‘इतने अधिक वर्ष गुजारने की इजाज़त नहीं देता, जितनी इस यूनिट के लिए ज़रूरत होती है’.

दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि डीएएनआईपीएस अधिकारी आईपीएस अधिकारियों से बेहतर या कमतर हैं. सवाल बस उस विशेष कौशल को विकसित करने का है, जो इस यूनिट के लिए चाहिए होता है, जैसे खुफिया जानकारी जुटाना, छापे मारना और असेट बनाना’.

अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि आईपीएस में कौशल नहीं है लेकिन उसे विकसित करने के लिए अधिकारी को समय देना होता है. किसी आईपीएस के लिए, जब तक वो ये हुनर सीखता है और किसी नेटवर्क का हिस्सा बनता है, उसकी अगली तैनाती पर जाने का समय आ जाता है. या तो उन्हें यूनिट से बाहर भेजा जाता है या दिल्ली से ही बाहर तैनात कर दिया जाता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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