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Wednesday, 20 November, 2024
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‘मुस्लिम लीग का उद्देश्य बंटवारा’- राहुल द्वारा IUML को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहने पर हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस

हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने पिछले कुछ हफ्तों में विभिन्न खबरों और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या संपादकीय रुख अपनाया, इसी पर दिप्रिंट का राउंड-अप.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने अपने संपादकीय में कहा है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग की धर्मनिरपेक्षता एक ही है. यह प्रतिक्रिया इस महीने की शुरुआत में वाशिंगटन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) एक “धर्मनिरपेक्ष पार्टी” है.

अन्य विषय जिसपर हिंदू राइट प्रेस का ध्यान गया है, उसमें शामिल है- दिल्ली विश्वविद्यालय के नए मूल्यवर्धन पाठ्यक्रम, मोदी सरकार की व्यापक नई शिक्षा नीति 2020 और कथित “ऑनलाइन रूपांतरण रैकेट” जिसका गाजियाबाद पुलिस ने पिछले सप्ताह भंडाफोड़ करने का दावा किया था.

यहां उन सभी विषयों पर एक नजर है, जो इस हफ्ते हिंदू राइट प्रेस में सुर्खियां बने.

राहुल गांधी और IUML

केरल में IUML के साथ कांग्रेस पार्टी के गठबंधन के बारे में एक सवाल के जवाब में, राहुल गांधी ने कहा था: “मुस्लिम लीग पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. उनके बारे में कुछ भी गैर-धर्मनिरपेक्ष नहीं है.” IUML केरल में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है और बाद के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा भी है.

राहुल गांधी की टिप्पणी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जमकर आलोचना की है.

आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में एक संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग की धर्मनिरपेक्षता “एक ही मंजिल तक पहुंचने के दो तरीके हैं”.

संपादकीय में कहा गया है, “मुस्लिम लीग का कोई भी सदस्य हमेशा मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानेगा, भले ही मुस्लिम लीग का उद्देश्य भारत का एक और विभाजन करना हो. इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता भारत में इस्लामीकरण को मजबूत करने के लिए केवल एक पहलू रही है.”

इसमें आगे कहा गया है, “तथाकथित धर्मनिरपेक्षता उन संप्रदायों को संरक्षण देने का एक उपकरण है जो ‘कमजोर लोगों को अपने विश्वास में बदलने के लिए जबरदस्ती काम करते हैं’. जैसे-जैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्षता आगे बढ़ी, इस्लामवादियों, मिशनरियों और कम्युनिस्टों का संरक्षण भी उन्हें पर्याप्त मिलता गया. राज्य की कानूनी शक्ति, वित्तीय शक्ति और अन्य ताकत के माध्यम से वह आगे बढ़ता गया.”

नई शिक्षा नीति ईपी 2020

आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक संपादकीय में एनईपी 2020 की सराहना करते हुए कहा गया है कि शिक्षा में बदलावों से उपनिवेशवाद से मुक्ति मिलेगी.

संपादकीय में लिखा गया है, “शिक्षा का औपनिवेशिक ढांचा कई वर्षों तक जारी रहा. कई समितियों और आयोगों की सिफारिशों के बावजूद, हमारी शिक्षा प्रणाली में ‘राष्ट्रीय’ भाग गायब था. अंग्रेजो की जरूरत के हिसाब से अंग्रेजी भाषा को काफी आगे बढ़ाकर हमेशा केंद्र में रखा गया. शिक्षा के एकमात्र उद्देश्य के रूप में, मुख्य रूप से धर्मनिरपेक्षता के विकृत प्रतिनिधित्व के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक परंपराओं, वैज्ञानिक ज्ञान और ऐतिहासिक गौरव को कम करना, ही पाठ्यक्रम की प्रमुख विशेषताएं बन गईं.“

इसमें आगे लिखा गया है कि नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) द्वारा अपने पाठ्यक्रम के पुनर्गठन पर “निर्मित विवाद” सिर्फ एक “गहरी सड़ांध या ठहराव का लक्षण था जिसे हमने शिक्षा के माध्यम से अपने बारे में बनाया है”.

लेखक निरंजन कुमार द्वारा ऑर्गनाइज़र में एक अन्य लेख में कहा गया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के नए “मूल्य वर्धित पाठ्यक्रम” “भारतीय मूल्यों को प्रभावित करने” में मदद कर सकते हैं जो “भारत को जगद्गुरु बनाने के लिए अनिवार्य” है.

एनईपी 2020 के अनुसार डीयू के अतिरिक्त पाठ्यक्रम (वीएसी) में वैदिक गणित, सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा, योग: दर्शन और अभ्यास, और साहित्य, संस्कृति और सिनेमा को शामिल किया गया हैं.

इसमें कहा गया है, “वीएसी की एक अनूठी विशेषता यह है कि एनईपी-2020 में दिए गए समृद्ध भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) के तत्वों को विधिवत शामिल किया गया है. उदाहरण के लिए, ‘वैदिक गणित’ अपनी तरह का एक अनूठा पाठ्यक्रम है, जिसे देश में डीयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में क्रेडिट पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जा रहा है. इसी तरह, ‘पंचकोष: व्यक्तित्व का समग्र विकास’ आज के युवाओं में बढ़ते व्यक्तित्व असंतुलन, मानसिक तनाव और आक्रामक व्यवहार से निपटने में मददगार साबित होगा.”

सरदार पटेल और मंदिरों की अर्थव्यवस्था

इस सप्ताह अपने ब्लॉग में, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा की टिप्पणी पर आपत्ति जताई कि “मंदिर बनाने से नौकरियां पैदा नहीं होंगी”.

उन्होंने लिखा, “पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार साल 2022 में 14.33 करोड़ भारतीय लोगों ने मंदिरों और तीर्थों का दौरा किया और 64.4 लाख विदेशी पर्यटकों ने भी इन स्थानों का दौरा किया. साल 2022 में इन तीर्थ स्थलों से 1.35 लाख करोड़ की आय हुई, जबकि कुल घरेलू पर्यटन में 60 प्रतिशत हिस्सा धार्मिक और तीर्थ पर्यटन का है और इसका कुल योगदान लगभग 11 लाख करोड़ रुपये था. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जो लोग कहते हैं कि मंदिर रोजगार पैदा नहीं करते हैं या मंदिर भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं करते हैं, वे इन तथ्यों से अनभिज्ञ हैं.”

इस बीच, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और दक्षिणपंथी टिप्पणीकार एम. नागेश्वर राव ने समाचार पोर्टल ताज़ाखबरन्यूज़.कॉम के लिए एक लेख लिखा और पूछा कि क्या भारत के पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल वास्तव में एक हिंदू आइकन थे. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भाजपा सहित कई हिंदू अधिकार संगठनों पर पटेल को हड़पने का आरोप लगाया जाता रहा है.

अपने ओपिनियन पीस में, राव ने स्वीकार किया कि सरदार पटेल को “संघ परिवार द्वारा लायंस किया गया है और यह उनका लगातार कहना रहा है कि पटेल गांधी की उदासीनता और नेहरू की साजिशों का शिकार थे”.

राव, जो केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के एक पूर्व निदेशक भी है, ने लिखा “यह बहस का विषय है कि क्या स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर गांधी का उस तरह का दबदबा था, जहां वह व्यक्तिगत रूप से अपनी पसंद के पीएम का अभिषेक कर सकते थे, लेकिन यह निश्चित रूप से पूछना चाहिए कि क्या गांधी की पसंद होने पर पटेल का भारत कोई अलग होता.” उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि क्या पटेल वास्तव में हिंदू हितों की रक्षा करना चाहते थे.

राव ने लिखा, “पटेल ने 8 और 25 अगस्त 1947 को अपने पत्रों में अल्पसंख्यकों पर अपनी समिति की दो रिपोर्टें संविधान सभा को सौंपी थीं. चिंता की बात यह है कि उनकी समिति ने अल्पसंख्यकों के बीच अनुसूचित जातियों को शामिल करने के जिन्ना के नापाक विचार को तोड़ा.”

उन्होंने लिखा, “उनके बड़े कद और पावर को देखते हुए, जिसकी तुलना केवल कांग्रेस और सरकार के भीतर जवाहरलाल नेहरू से की जा सकती है, निश्चित रूप से, वह दूसरों को इस बारे में आश्वस्त कर सकते थे कि कैसे संविधान को हिंदुओं के खिलाफ नहीं लादा जा सकता. इसके बजाय, जैसा कि संविधान सभा की बहस दिखाती है, वह अपनी समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ा रहे थे जो इंगित करता है कि वे उतने ही उनके विचार थे.”


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ब्रांड मोदी घट रहा है?

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रांड को 2024 के आम चुनाव से पहले मेकओवर की जरूरत है? जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर और दक्षिणपंथी झुकाव वाले लेखक मकरंद परांजपे ने द टाइम्स ऑफ इंडिया में अपने नवीनतम लेख में इस पर बहस की.

नरेंद्र मोदी के ब्रांड अभियान की तुलना पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के विफल ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान से करते हुए, परांजपे ने कहा कि “सरकार द्वारा फैलाए गए प्रचार की बाढ़ को देखते हुए, मोदी और उनकी सरकार की महिमा का वर्णन करने के साक्ष्य में बहुत कम विनम्रता थी”.

“इंडिया शाइनिंग” 2004 में भारत में आर्थिक आशावाद की समग्र भावना को संदर्भित करने के लिए एक नारा दिया गया था. हालांकि, यह अभियान लोकप्रिय नहीं रहा और लोगों के नब्ज को पकड़ने में विफल रहा. वाजपेयी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सत्ता से बाहर होना पड़ा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन को सत्ता मिली. 

जापान में मुसलमान बढ़ रहे हैं

इस बीच, आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में एक लेख में जापान में बढ़ती मुस्लिम आबादी के बारे में चिंता व्यक्त की गई है. लेखक सिद्धार्थ दवे का मानना है कि जापान का धार्मिक परिदृश्य “नाटकीय रूप से” बदल रहा है.

उन्होंने लिखा, “जापान में मुस्लिम आबादी के तेजी से बढ़ने के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. सबसे पहले (एसआईसी), अंतर्राष्ट्रीय प्रवास और वैश्वीकरण में वृद्धि के कारण जापान में रहने वाले मुसलमानों की संख्या में वृद्धि हुई है. इसमें मुख्य रूप से मुस्लिम देशों के विदेशी छात्रों, श्रमिकों और उनके परिवारों के साथ-साथ शरणार्थी और शरण चाहने वाले शामिल हैं. यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि मुस्लिम शरणार्थियों, खासकर सीरिया से आने वाले और शरण चाहने वालों को संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत और मलेशिया जैसे देशों द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है.”

उन्होंने जापान में संभावित धर्मांतरण को लेकर भी चिंता जताई.

उन्होंने लिखा, “अनुमान लगाया जाता है कि कुल का दसवां हिस्सा, लगभग 20,000, जातीय जापानी हैं जो इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं. कई संकेत मिले हैं कि जापानी मुस्लिम आबादी सहित मुस्लिम आबादी बढ़ रही है.”

ओसाका जोगाकुइन विश्वविद्यालय में मानवाधिकार और शांति अध्ययन के प्रोफेसर, शाऊल जे. ताकाहाशी द्वारा 2021 के एक पेपर के अनुसार, जापान में वर्तमान में मुस्लिम आबादी 200,000 होने का अनुमान है. यह इस देश की जनसंख्या का लगभग 0.17 प्रतिशत. इसमें से 90 प्रतिशत मुस्लिम देशों – मुख्य रूप से इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की और ईरान से विदेशी नागरिक होने का अनुमान है.

ऑनलाइन गेमिंग और रूपांतरण

पाञ्चजन्य में एक लेख गाजियाबाद पुलिस द्वारा ऐसे ही एक रैकेट के कथित भंडाफोड़ से उत्पन्न “ऑनलाइन रूपांतरण” विवाद पर केंद्रित था.

पिछले हफ्ते, गाजियाबाद पुलिस ने एक “ऑनलाइन रूपांतरण रैकेट” का भंडाफोड़ करने का दावा किया था, जिसमें कथित रूप से पीड़ितों को लुभाने के लिए ऑनलाइन गेम का उपयोग करना शामिल था.

इस लेख के अनुसार, पीड़ित को “बताया गया था कि इस्लाम दुनिया का सबसे अच्छा धर्म है”.

दरअसल, यह गिरोह ऑनलाइन गेम के दौरान कहा करता था कि अगर आप कुरान की आयत पढ़ते हैं, तो आप लगातार जीतेंगे और किशोर उनकी बात मान लेते थे और ऐसा करना शुरू कर देते थे. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में एक सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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