नई दिल्ली: उत्तराखंड के हरिद्वार नगर निगम में हुए बहुचर्चित ज़मीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कड़ा रुख अपनाते हुए मंगलवार को बड़ी कार्रवाई की. इस घोटाले में दो आईएएस, एक पीसीएस अधिकारी समेत सात अधिकारियों को निलंबित करने के आदेश जारी किए गए हैं. इसके अलावा, पहले ही तीन अधिकारियों पर निलंबन और सेवा समाप्ति की कार्रवाई हो चुकी है.
इस तरह अब तक कुल दस अधिकारियों को निलंबित या सेवा से हटाया जा चुका है. मुख्यमंत्री ने इस घोटाले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंपने और भूमि विक्रय पत्र को निरस्त कर भूस्वामियों से दी गई राशि की वसूली के भी निर्देश दिए हैं.
मामला हरिद्वार नगर निगम द्वारा ग्राम सराय में कूड़े के ढेर के पास की 2.3070 हेक्टेयर अनुपयुक्त भूमि की करोड़ों रुपये में खरीद का है. इस पर सवाल उठने के बाद मुख्यमंत्री धामी ने जांच के आदेश दिए थे.
सचिव रणवीर सिंह चौहान की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट 29 मई को शासन को सौंपी गई, जिसमें कई अधिकारियों की भूमिका उजागर हुई. इसी रिपोर्ट के आधार पर मंगलवार को कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने सात अधिकारियों को निलंबित कर दिया.
निलंबित अधिकारियों की सूची:
- कर्मेंद्र सिंह – जिलाधिकारी और तत्कालीन प्रशासक, नगर निगम हरिद्वार
2. वरुण चौधरी – तत्कालीन नगर आयुक्त, नगर निगम हरिद्वार
3. अजयवीर सिंह – तत्कालीन उपजिलाधिकारी, हरिद्वार
4. निकिता बिष्ट – वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम हरिद्वार
5. विक्की – वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक
6. राजेश कुमार – रजिस्ट्रार कानूनगो, तहसील हरिद्वार
7. कमलदास – मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार
पूर्व में की गई कार्रवाई:
- रविंद्र कुमार दयाल – प्रभारी सहायक नगर आयुक्त (सेवा समाप्त)
2. आनंद सिंह मिश्रवाण – प्रभारी अधिशासी अभियंता (निलंबित)
3. लक्ष्मी कांत भट्ट – कर एवं राजस्व अधीक्षक (निलंबित)
4. दिनेश चंद्र कांडपाल – अवर अभियंता (निलंबित)
5. वेदपाल – सम्पत्ति लिपिक (सेवा विस्तार समाप्त)
मुख्यमंत्री धामी ने मामले में दोषियों की पूरी श्रृंखला को उजागर करने के लिए विजिलेंस जांच का आदेश दिया है. साथ ही, घोटाले से जुड़ी भूमि की बिक्री रद्द कर भूस्वामियों को दी गई राशि की वसूली के निर्देश भी जारी किए गए हैं. इसके अलावा, नगर आयुक्त वरुण चौधरी के कार्यकाल के दौरान नगर निगम में हुए सभी कार्यों का विशेष ऑडिट कराने के भी निर्देश दिए गए हैं.
सीएम ने कहा, “हमारी सरकार ने पहले ही दिन से स्पष्ट कर दिया है कि लोकसेवा में ‘पद’ नहीं बल्कि ‘कर्तव्य’ और ‘जवाबदेही’ महत्वपूर्ण हैं. चाहे व्यक्ति कितना भी वरिष्ठ हो, अगर वह जनहित और नियमों की अवहेलना करेगा, तो कार्रवाई निश्चित है. हम उत्तराखंड में भ्रष्टाचार मुक्त नई कार्य संस्कृति विकसित करना चाहते हैं. सभी लोक सेवकों को इसके मानकों पर खरा उतरना होगा.”