मुंबई : कोविड-19 लॉकडाउन और इसके कारण शुरू हुए वर्क-फ्रॉम होम कल्चर से बुरी तरह प्रभावित मुंबई के चर्चित डब्बावाले महाराष्ट्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
टिफिन पहुंचाने वालों के संगठन मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह चाहती है कि लोकल ट्रेन सर्विस जल्द से जल्द बहाल की जाए, या फिर हर डब्बावाले के लिए 3,000 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सहायता दी जाए.
एसोसिएशन का कहना है कि अनलॉक की प्रक्रिया के बीच सरकारी, अर्ध-सरकारी और निजी कार्यालयों में सीमित उपस्थिति के साथ काम फिर शुरू हो गया है, इससे डब्बावालों को कुछ ऑर्डर मिलने लगे हैं. लेकिन लोकल ट्रेन न चलने के कारण वे मुंबई के उपनगरीय क्षेत्रों में अपनी सर्विस शुरू करने में असमर्थ हैं.
एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तालेकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘डब्बावालों के पास पिछले पांच महीने से काम नहीं हैं. अब जो लोग काम के लिए बाहर निकल रहे हैं वो खाने के डिब्बों के लिए हमसे संपर्क कर रहे हैं, लेकिन जब तक ट्रेनें नहीं चलतीं हम टिफिन कैसे मुहैया करा पाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘बस सेवाएं उतनी कारगर नहीं हैं और हमारे डब्बावाले बोरिवली से चर्चगेट (लगभग 40 किमी) जैसी लंबी दूरी साइकिल से तय नहीं कर सकते.’
कोविड-19 महामारी से निपटने की कोशिशों के तहत दो महीने पूरी तरह लॉकडाउन लागू रहने के बाद महाराष्ट्र प्रशासन ने 5 जून से सरकारी, अर्ध-सरकारी और निजी कार्यालयों को आंशिक रूप से खोलने की मंजूरी दे दी थी. सरकारी और अर्ध-सरकारी दफ्तर 15 प्रतिशत कर्मचारियों की मौजूदगी की अधिकतम सीमा के साथ काम कर रहे हैं, जबकि निजी कार्यालयों को परिसर में ज्यादा से ज्यादा 10 प्रतिशत उपस्थिति के साथ ही खोलने की अनुमति है.
मध्य और पश्चिमी रेलवे ने 15 जून से मुंबई में चुनिंदा लोकल ट्रेन सेवाएं फिर से शुरू की है. हालांकि, इनमें केवल आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को ही यात्रा करने की अनुमति है.
तालेकर ने कहा कि अगर राज्य सरकार सभी ट्रेन सेवाएं शुरू नहीं कर सकती है, तो कम से कम मुंबई के डब्बावालों को आवश्यक सेवाओं का ही एक हिस्सा माने, और उन्हें पहले से ही चल रही लोकल ट्रेन में सफर की अनुमति दी जानी चाहिए.
डब्बावालों की तरह ही बैंक कर्मचारियों और खुदरा व्यापारियों आदि के संगठनों ने भी राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि उन्हें लोकल ट्रेन में यात्रा की अनुमति दी जाए.
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तालेकर ने कहा, ‘अगर इनमें से कुछ भी संभव नहीं है, तो हमें हर महीने 3,000 रुपये का भत्ता दिया जाए. कब तक डब्बावाले बिना काम के घर पर बैठे रहेंगे.
मुंबई एक कोविड-19 हॉटस्पॉट है, जहां शुक्रवार शाम तक कुल 1,42,099 मामले दर्ज किए जा चुके थे. इनमें से 19,401 इस समय एक्टिव केस हैं.
‘मुंबई में केवल 20 फीसदी डब्बावाले बचे’
मुंबई के डब्बावाले लोगों को घरों और दफ्तरों में खाने का डिब्बा पहुंचाने का काम करते हैं. सफेद पोशाक और गांधी टोपी में एक अलग ही पहचान बनाने वाले डब्बावाले अपनी कार्य कुशलता के लिए दुनियाभर से सराहना हासिल करते रहे हैं, और मुंबई की बेहद व्यस्त लोकल ट्रेन सेवा उनकी बेहतरीन सर्विस का आधार है.
तालेकर ने बताया कि लॉकडाउन से पहले मुंबई में लगभग 4,500 डब्बावाले सेवा दे रहे थे जो हर दिन मुंबई और नवी मुंबई में करीब 2 लाख टिफिन पहुंचाते थे. उन्होंने आगे कहा कि लॉकडाउन के कारण शहर के ज्यादातर क्षेत्रों में वर्क फ्राम होम का कल्चर शुरू हो गया जिसने डब्बावालों को बेरोजगार कर दिया.
तालेकर ने बताया, ‘हममें से ज्यादातर लोग अपने गांव लौट गए हैं. मुंबई में महज 20 प्रतिशत के करीब ही डब्बावाले बचे हैं जो ऑटोरिक्शा चलाने और बागवानी करने जैसे कामों के सहारे किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं.’
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