scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमदेशबहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इजाद किए समुद्र से निकले प्लास्टिक कचरे से निपटने के तरीके

बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इजाद किए समुद्र से निकले प्लास्टिक कचरे से निपटने के तरीके

कई देशों में तो इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है, वहीं भारत में भी इसको रोकने के लिए तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: एक साफ सुथरा नीला समुद्र हर किसी को आकर्षित करता है. उसकी तस्वीरें भर देख लेने से सुकून मिल जाता है. लेकिन दिन प्रतिदन बढ़ते पर्यावरण संकट ने हमारा ‘सुकून’ तो छीना ही है साथ ही साथ हमारे आगे के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है. बचपन से हम स्कूल की किताबों में पर्यावरण बचाने की बातें पढ़ते आ रहे हैं. रिसाइकल, रीयूज और रिड्यूस न जाने कब से सीखने की कोशिश में लगे हैं. पर्यावरण को संरक्षण देने के लिए कई तरह के नियम कानून बनाए गए हैं. लेकिन विकास की अंधी दौड़ में सारे नियम कानून केवल किताबों तक सीमित होते जा रहे हैं. हमने जमीन, हवा के साथ पानी को भी नहीं बख्शा है. समुद्र के पानी को भी नहीं.

इसका सबसे बड़ा कारण हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया प्लास्टिक है. रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक आज सड़क के किनारे, कचरे के ढेर में, नाली, नदी में, समुद्र में हर जगह दिखाई दे रहा है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत हर साल 60 मिलियन टन कचरा पैदा करता है जिसमें 26 मिलियन टन प्लास्टिक वेस्ट होते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे होते हैं जो कूड़ा बिनने वालों को आकर्षित नहीं करते हैं क्योंकि ये रिप्रॉसेस नहीं किए जा सकते. ऐसे प्लास्टिक सीधे समुद्र में नॉन बॉयोडिग्रेडबल के रूप में जाते हैं. जो हजारों सालों तक प्रॉसेस नहीं किए जा सकते. इसके अलावा ये प्लास्टिक समुद्र में जा चुके हैं उनसे नुकसान इतना ज्यादा हो चुका है कि अब समुद्र से उन्हें दोबारा निकालना मुश्किल है.


यह भी पढ़ेंः विश्व अस्थमा दिवस: जरा सी सावधानी बरत कर बचा जा सकता है अस्थमा से


जलीय जीवों के लिए ये बड़ा संकट

समुद्र में प्लास्टिक के बढ़ने से सबसे ज्यादा खतरा वहां रहने वाले जीवों को होता है. ये जीव या तो उलझ जाते हैं या फिर उस प्लास्टिक को जेलीफिश समझ कर निगल जाते हैं. दोनों ही स्थिति में ये इनके लिए जानलेवा साबित होता है. प्लास्टिक को नष्ट होने में हजारों साल से भी अधिक वक्त लगता है जिस कारण समुद्र में रहने वाले जलीय जीवों का लंबे समय तक इससे निजात पाना मुश्किल है.

प्लास्टिक से पर्यावरण को बचाने की अनोखी पहल

प्लास्टिक से पर्यावरण को बचाने की कई तरह के पहल की जा रही हैं. कई देशों में तो इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है. वहीं भारत में भी इसको रोकने के लिए तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. ऐसा ही एक प्रयास मल्टीनेशनल कंपनियों ने किया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

नॉयलन बैग बनाने के लिए मशहूर कंपनी प्रादा भी प्लास्टिक वेस्ट को लेकर संजीदा हो गई है. कंपनी के द्वारा जारी किए गए प्रेस रिलीज में कहा गया है कि अब वो री-नायलॉन प्रोजेक्ट के तहत बैग सिल्हूट की एक नई सीरीज
इकोनायल लांच करने जा रही है. इसके लिए प्रादा ने कपड़ा निर्माता कंपनी एक्वाफिल के साथ भागदारी की है. जो महासागरों में जाने वाले प्लास्टिक के कचरे से इकोनाइल बनाएगी. प्रादा ने तय किया है कि प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता
से समझौते किए बिना उसका फिर से नवीकरण किया जा सकता है.

एडिडास ने प्लास्टिक कचरा साफ करने के लिए लांच की ‘रन फॉर ओशियन.

वहीं दुनिया भर में स्पोर्ट्स के सामान बनाने के लिए मशहूर एडिडास ने भी प्लास्टिक के संकट को दूर करने का प्रयास किया है. इनकी फैक्ट्री में लगभग कई हजार किलो के धागे का उत्पादन होता है. जिन्हें बनाने में लगभग 20-25 लाख प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है. इन धागों का इस्तेमाल स्पोर्ट्स, महिलाओं के फैब्रिकस सहित कई तरह के फैब्रिकस बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.


यह भी पढ़ेंः गंगा सफाई की मुहिम के साथ लौटे 134 दिनों से गायब संत गोपालदास


यही नहीं 2018 में, एडिडास ने ‘रन फॉर ओशियन’ के साथ एक वैश्विक आंदोलन बनाया, जो दुनिया भर के लगभग 10 लाख धावकों को एकजुट करने के लिए जागरूकता फैलाने और उच्च प्रदर्शन वाले खेलों में समुद्र के प्लास्टिक  प्रदूषण को हटाने में मदद के लिए आयोजन किया गया. इस दौड़ में बीच के किनारे पड़े कचरे को साफ किया गया. संस्था के मुताबिक मैराथन दौड़ ने समुद्र से 238 टन प्लास्टिक कचरे को साफ करने में मदद की है.

इसके अलावा कंपनी ने एक रंटस्टिक नामक ऐप बनाया है जिसके तहत मैराथन में शामिल होने वाले लोग के दौड़ की गणना की जाती है. एक किलोमीटर दौड़ने पर एक डॉलर का डोनेशन दिया जाता है. 2019 में हुई मैराथन दौड़ ने एडिडास को 1.5 मिलियन अमेरिकी डालर की राशि जुटाने में मदद की और कुल धन का योगदान पार्ले ओशियन स्कूल में किया जाएगा.

एडिडास अपनी इस मुहिम से समुद्री समस्या पर युवाओं को शिक्षित करने के लिए $ 1 मिलियन जुटाता है. यह धनराशि 100,000 युवाओं और उनके परिवारों को शिक्षित करने और सशक्त बनाने में मदद करती है जो प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित तटीय क्षेत्रों में रह रहे हैं.

फिलहाल तमाम मुहिम के बीच इस समस्या से निपटने के लिए सबको आगे आना होगा. पर्यावरण को अब सामाजिक मुहिम के साथ इसे राजनीति के केंद्र में लाना होगा. विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता क्योंकि जीवन की कीमत से जुड़ा है.

share & View comments