भोपाल: मध्य प्रदेश के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय को छात्रों, प्रोफेसरों और यहां तक कि नागरिक समाज के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इसने विवादास्पद हिंदू संत जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य को अपने 33वें दीक्षांत समारोह में डी. लिट (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) की उपाधि प्रदान करने की घोषणा की है.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि रामभद्राचार्य ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने कई सार्वजनिक भाषणों में “डॉ. बी.आर. आंबेडकर, बौद्ध धर्म और दलित समुदायों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है.”
डी. लिट एक मानद उपाधि है जिसका उद्देश्य उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जो ज्ञान, सेवा, मानवाधिकार और समावेशी प्रगति के सार्वभौमिक मूल्यों को अपनाते हैं.
प्रदर्शनकारियों द्वारा राष्ट्रपति कार्यालय को भेजे गए दो पन्नों के पत्र में कहा गया है, “जाति-विरोधी टिप्पणियों के इतिहास वाले व्यक्ति को पुरस्कार देने की मंजूरी देना भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक की शैक्षणिक अखंडता को कमजोर करता है. यह विश्वविद्यालय के लोकाचार के साथ-साथ इसके संस्थापक हरिसिंह गौर के लोकाचार और मूल्यों के भी खिलाफ है.” दिप्रिंट के पास पत्र की कॉपी मौजूद है.
दिप्रिंट ने जब यूनिवर्सिटी के मीडिया प्रभारी विवेक जायसवाल से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि संत को डिग्री देने का फैसला विश्वविद्यालय के अधिनियम और अध्यादेश के अनुसार लिया गया था.
उन्होंने कहा, “यूनिवर्सिटी ने अपने अधिनियम और अध्यादेश में उल्लिखित प्रावधानों का पालन करते हुए कार्यकारी परिषद की सिफारिश पर स्वामी रामभद्राचार्यजी को मानद उपाधि देने के लिए माननीय विजिटर (राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू) को प्रस्ताव भेजा था. यह मानद उपाधि माननीय विजिटर की मंजूरी के बाद ही दी जा रही है.”
इस महीने की शुरुआत में विश्वविद्यालय ने राष्ट्रपति कार्यालय को पत्र लिखकर रामभद्राचार्य को डिग्री देने की अनुमति मांगी थी. जायसवाल ने कहा, “अभी विरोध करना राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ विरोध करने के समान है.”
लेकिन अगर विश्वविद्यालय अपने फैसले पर आगे बढ़ता है तो छात्र और प्रोफेसर सड़कों पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने दिप्रिंट को बताया, “हम विरोध में सड़कों पर उतरेंगे. हमने जिला अधिकारियों को भी इस बारे में सूचित कर दिया है.”
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कौन हैं स्वामी रामभद्राचार्य?
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य, 75, उत्तर प्रदेश के जौनपुर के मूल निवासी हैं, वे रामानंद संप्रदाय (जो विष्णु के अवतारों की पूजा करते हैं) के चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और उन्हें 2015 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
महज़ दो महीने की उम्र में अपनी दृष्टि खोने के बावजूद, उन्हें 22 भाषाएं सीखने और 240 से ज़्यादा किताबें और 50 शोधपत्र लिखने का श्रेय दिया जाता है, जिसमें चार महाकाव्य शामिल हैं. 1988 में उन्हें वाराणसी में जगद्गुरु रामानंदाचार्य चुना गया था.
प्रदर्शनकारी छात्र, शिक्षक और नागरिक समाज के सदस्य जिनमें अधिवक्ता भी शामिल हैं, उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में कहा है, “श्री रामभद्राचार्य अपनी विद्वत्तापूर्ण उपलब्धियों के बावजूद एक अत्यधिक ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं. उन्हें कई सार्वजनिक भाषणों और वीडियो में डॉ. बी.आर. आंबेडकर, बौद्ध धर्म और दलित समुदायों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते हुए रिकॉर्ड किया गया है, जो सार्वजनिक डोमेन में आसानी से उपलब्ध हैं.”
“उनकी बयानबाजी को विभाजनकारी, जातिवादी और भारतीय समाज के बड़े तबके के लिए अपमानजनक बताया गया है. इस तरह के बयान हमारे संविधान में निहित भाईचारे, समानता और सम्मान की भावना के बिल्कुल विपरीत हैं.”
मीडिया खबरों के अनुसार, पिछले साल एक वीडियो सामने आने के बाद प्रसिद्ध संत विवादों में आ गए थे, जिसमें उन्हें हिंदू भगवान राम की पूजा न करने वालों को “चमार” कहते हुए सुना गया था.
इस टिप्पणी की कड़ी आलोचना हुई थी, इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक आवेदन दायर कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के उल्लंघन के लिए संत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी, लेकिन बाद में याचिका खारिज कर दी गई थी.
रामभद्राचार्य पिछले साल भी सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की आलोचना की थी, जिसमें उन्होंने मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं तलाशने का आग्रह किया था.
भागवत को जवाब देते हुए रामभद्राचार्य ने कहा था, “जब उनके पास सत्ता नहीं थी, तो वह हर जगह मंदिर तलाश रहे थे और सत्ता मिलने के बाद वह मंदिरों की तलाश न करने की सलाह दे रहे हैं.”
रामभद्राचार्य को डिग्री दिए जाने का विरोध करने के लिए मंच बनाने वाले प्रदर्शनकारियों ने अपने पत्र में आगे कहा, “विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरिसिंह गौर एक प्रगतिशील सुधारक, विधिवेत्ता और बोधिसत्व व्यक्तित्व थे, जिन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और वैज्ञानिक तर्कवाद, लैंगिक समानता और सामाजिक उत्थान के लिए काम किया.”
“संस्थापक के मूल्यों के विपरीत मूल्यों को अपनाने वाले व्यक्तित्व को सम्मानित करना न केवल विडंबनापूर्ण है, बल्कि विश्वविद्यालय के मूल सिद्धांतों का सीधा अपमान भी है.”
विश्वविद्यालय ने अभी तक अपने दीक्षांत समारोह की तारीख घोषित नहीं की है. विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार, दीक्षांत समारोह अप्रैल के अंत में होना था, लेकिन पिछले हफ्ते कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले के बाद इसे टाल दिया गया है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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