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Monday, 6 May, 2024
होमदेशफिल्में कभी दुनिया में क्रांति नहीं लाईं लेकिन समाज को उसका आइना जरूर दिखाया है: अनुभव सिन्हा

फिल्में कभी दुनिया में क्रांति नहीं लाईं लेकिन समाज को उसका आइना जरूर दिखाया है: अनुभव सिन्हा

तापसी और आयुष्मान की प्रशंसा करते हुए अनुभव ने कहा कि दोनों ही मेरे पसंदीदा कलाकार हैं. दोनों अपने किरदार में नहीं बल्कि पूरी कहानी में घुल मिल जाते हैं.

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नई दिल्ली: फिल्म थप्पड़ की गूंज सुनाई देने में महज कुछ दिन बचे हैं. इस फिल्म को लेकर काफी चर्चा भी हो रही है. अभी तक फिल्म द्वारा सामाजिक मुद्दे को उठाए जाने की बात हो रही है कि किस तरह से घरेलू हिंसा से पीड़ित पत्नी, पति से थप्पड़ खाने के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है. लेकिन फिल्म के निर्देशक इसे किसी और रूप में देखते हैं.

निर्देशक अनुभव सिन्हा कहते हैं कि फिल्म कहीं से भी घरेलू हिंसा पर आधारित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को पता ही नहीं है कि वह हर दिन हर पल सिर्फ घरेलू हिंसा ही नहीं कई तरह की हिंसा का शिकार हो रही हैं. अक्सर महिलाओं के काम को कमतर आंका जाता है.

इस फिल्म के द्वारा उन्होंने ‘गैस लाइटिंग’ (बार-बार किसी को छोटा साबित करने की कोशिश करना) करने की कोशिश को उजागर किया है. उन्होंने कहा कि अकसर ही लोग कह देते हैं कि लाओ मैं आज यह काम कर देता हूं और जब घर की महिला, बहन, बेटी या फिर बीवी पुरुष को यह काम करने से रोकती है तो वह कह देते हैं- ‘मैं यह काम करके छोटा थोड़े ही हो जाऊंगा.’ इसका मतलब है कि आप उस महिला को बता रहे हैं कि वह हर दिन जो काम कर रही है वह छोटा है और वह एक दिन यह काम करके छोटा नहीं हो जाएगा.

अपने सोशल मीडिया पर नागरिकता संशोधन कानून पर मुखर रहे अनुभव दिल्ली के महिला प्रेस कल्ब में इन सवालों से
बचते नजर आए. उन्होंने बार-बार कहा कि फिल्म देखिए. देखने के बाद आप ये कहते हुए निकलेंगे कि तलाक किसी रिश्ते से निकलने का आखिरी हल नहीं है.


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जब उनसे पूछा गया कि फिल्म सामाज का आईना होती हैं और इसका बड़ा असर समाज पर पड़ता है तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा, ‘कोई भी फिल्म आज तक पूरी दुनिया में क्रांति नहीं लाई है.’

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उन्होंने कहा कि न तो पिंक के बाद समाज में ‘बलात्कार होना बंद’ हुए और न ही ‘नो मींस नो’ का ही असर हुआ. समाज से निकली कहानियां कभी उन तक नहीं पहुंचती जिसे केंद्रित कर फिल्म को बनाया जाता है. उन्होंने बड़े ही फिल्मी अंदाज में कहा कि मुल्क देखने एक मुसलमान सिनेमा हॉल नहीं पहुंचा और न ही आर्टिकल-15 देखने कोई दलित गया होगा. हां बिहार के एक गांव का जिक्र जरूर किया कि वहां दलितों ने आर्टिकल-15 फिल्म अपने-अपने मोबाइल फोन पर देखी जिसे उनके एक एमएलए दोस्त ने बताया लेकिन वह बिहार के उस गांव का नाम नहीं जानते थे.

महिला के साथ हर दिन हो रहे उत्पीड़न और समाज में पैट्रिआटिक सोसाइटी पर अनुभव से पूछा गया कि उनके घर में कैसा माहौल था तो उन्होंने कहा, ‘मेरी मां बहन से कहती थी भाई को पहले खिला दो फिर तुम खाना खाना, मुझे तब भी वह बात बुरी लगती थी. महिलाओं के साथ आज का समाज नहीं बल्कि दुनिया बसाने वाले ने ही फ्रॉड किया है. जिस दिन दुनिया बसाने वाले ने उसे देवी कहा और सबसे सहनशील बताया, सारे परिवार को जोड़ने वाला बताया उसी दिन महिलाओं के साथ ‘फ्रॉड’ हो गया था.

दिप्रिंट ने जब उनसे पूछा कि आज बॉलीवुड का हर बड़ा निर्देशक अब ऑनलाइन फिल्मों की ओर बढ़ रहा है, बॉलीवुड फिल्मों पर तो हर सीन पर सेंसर बोर्ड की नजर होती है लेकिन जब बात ऑनलाइन फिल्मों की होती है तब सेंसरशिप पर कोई बात नहीं होती. वह कहते हैं, ‘क्यों लगाना चाहते हो हर जगह सेंसरशिप…दुनिया ऑनलाइन फिल्मों को देख रही है और खूब देख रही है…आप कब उतरने वाले हैं इस मैदान में- बोले जल्दी ही आउंगा.’


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तापसी और आयुष्मान की प्रशंसा करते हुए अनुभव ने कहा कि दोनों ही मेरे पसंदीदा कलाकार हैं. दोनों अपने किरदार में नहीं बल्कि पूरी कहानी में घुल मिल जाते हैं. वहीं जब उनसे सेंसरबोर्ड पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि प्रसून जोशी के आने के बाद से सेंसर बोर्ड के कामकाज के तरीके में काफी बदलाव आया है.

बता दें कि अनुभव सिन्हा निर्देशित फिल्म थप्पड़ 28 फरवरी को रिलीज होने जा रही है. फिल्म में तापसी पन्नू के साथ-साथ दिया मिर्जा, तनवी आजमी, कुमुद मिश्रा और पवेल गुलाटी अहम भूमिका में है.

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