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Tuesday, 7 May, 2024
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छत्तीसगढ़ में 9 % कोरोना केस कोविड योद्धा के, सरकार को जांच में पता चला डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने बरती लापरवाही

राज्य स्वास्थ्य विभाग ने जांच में पाया कि डॉक्टरों ने कोरोना मरीजों के इलाज के बाद पीपीई किट के डोनिंग और डॉफिंग के दौरान कई और सावधानियां और सतर्कता नहीं बरतीं जिसकी वजह से संक्रमण बढ़ गया.

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रायपुर : छत्तीसगढ़ में एक ओर जहां कोविड-19 मरीजों की संख्या लगातार घट रही है वहीं फ्रंटलाइन में काम कर रहे कोरोना वॉरियर्स-डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ बहुत तेजी से संक्रमित हो रहे हैं. डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के संक्रमित होने की वजह उनके कोरोना के मरीजों के इलाज के दौरान पीपीई किट के डोनिंग और डॉफिंग (पहनने और उतारने) की प्रक्रिया का ठीक से पालन न करना, ड्यूटी के बाद क्वारेंटाइन न करना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने के साथ साथ अपने साथियों के साथ खाना खाना बताया गया है.

बता दें कि राज्य में फिलहाल 1 जुलाई को 623 एक्टिव केस हैं जिसमें से करीब 55 फ्रंटलाइन मेडिकल पर्सनल हैं.जबकि राज्य में अभी तक 2940 कोविड के मामले सामने आ चुके हैं जिसमें 14 लोगों की मौत भी हो चुकी है. इन संक्रमितों में 169 स्वास्थ्य कर्मचारी है जिसमें 54 तो डॉक्टर हैं.हालांकि इनमें से109 को डिस्टार्ज भी किया जा चुका है.

कोरोना पॉजिटिव पाए गए स्वास्थ्य कर्मियों में करीब 55 रेसिडेंट और विशेषज्ञ डॉक्टर हैं. इनमें सबसे अधिक 12 डॉक्टर प्रदेश की राजधानी रायपुर से हैं.

दिप्रिंट बात करते हुए राज्य कंट्रोल एण्ड कमांड सेंटर कोविड-19 के डाटा प्रभारी डॉक्टर अखिलेश त्रिपाठी बताते हैं, ‘पीपीई किट के डोंनिंग और डॉफिंग की निर्धारित प्रक्रिया होती है. इसे बड़ी सावधानी से करना पड़ता है. इसे अपने ड्यूटी के दौरान पूरे समय पहनना पड़ता है. लेकिन राज्य के कई कोविड-19 अस्पतालों में डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ द्वारा किट के इस्तेमाल में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया.’

उन्होंने बताया, ‘किस तरह कुछ डॉक्टरों द्वारा ड्यूटी के समय गर्मी या फिर अन्य कठिनाई की वजह से इसे ड्यूटी के समय कई बार डोंनिंग डॉफिंग किया गया, वह भी निर्धारित कमरे में नहीं जिसकी वजह से संक्रमित खुद भी हुए और अपने साथियों को भी किया. ‘

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लापरवाही बनी मुसीबत

राज्य सरकार द्वारा चिकित्सकों में बढ़ रही संक्रमण की घटनाओं को देखते हुए जांच कराई जिसमें इनके द्वारा बरती जा रही घोर लापरवाही का पता चला यही नहीं लापरवाही भी इस हद तक की कि कोरोना मरीजों के संपर्क में आने के बाद ये लोग अपनी ही टीम के दूसरे सदस्यों के साथ भी घुले मिले और उन्हें भी संक्रमित कर दिया.

स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई जांच में यह भी पता चला है कि ड्यूटी के समय और उसके बाद ये चिकत्सक और उनके अधीन कर्मचारियों द्वारा एक ही रूम में बैठकर बातें करना, डायनिंग हाल में एक साथ भोजन करना उनके संक्रमण का कारण बना. इसके अलावा कुछ डॉक्टरों द्वारा दिन का काम खत्म करने के बाद क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहने की बजाय ड्यूटी कर्मियों से अपने जनरल हॉस्टल में मुलाकात करने की वजह से कोरोना संक्रमण को बढ़ावा मिला है.
इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के सभी जिला अधिकारियों को एक एडवाइजरी भी जारी की है.

पत्र में विभाग ने यह भी कहा कि इन डॉक्टरों ने 14 दिनों की ड्यूटी के बाद आवश्यक दिनों तक क्वॉरेंटाइन में रहने के बजाय अपने हॉस्टल चले जाने जैसी असावधानी बरती जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ा. इन बातों के अलावा शासन द्वारा कहा गया है कि ‘हाल ही में एक जिले के चिकित्सक में कोविङ-19 पॉजिटिव होने के पश्चात कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की गई, तब पता चला कि डोनिंग और डॉफिंग (पहनने और उतारने) की प्रक्रिया में लापरवाही के कारण संक्रमण हुआ.


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हाई-लो रिस्क कैटेगरी बनाई गई

सरकार ने जिलाधिकारियों के नाम 24 जून को जारी इस पत्र में साफ कहा है, ‘संक्रमित चिकित्सकों और कर्मचारियो की ये सभी गतिविधियां मानकों के अनुरूप नहीं हैं.’ पत्र में यह भी कहा गया है कि संक्रमित चिकित्सकों की लापरवाही के कारण अन्य डॉक्टर और आवश्यक स्टाफ हाई रिस्क और लो रिस्क समूहों में चिन्हित करने पड़े है, जिनकी संख्या लगभग 26 है.

हालांकि स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, ‘ चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ के संक्रमित होने कि यह संख्या 24 जून तक की है, जब सरकार द्वारा आदेश जारी किया गया था, लेकिन अब यह संख्या ज्यादा हो गयी है और आने वाले दिनों में संक्रमित डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों की तादात बढ़ सकती है. ये सभी हाई और लो रिस्क वाले चिकित्सा कर्मी संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आ चुके हैं. जिनकी जांच की जाएगी.’

डॉक्टर त्रिपाठी ने आगे बताया, ‘डॉक्टर और उनके साथ काम करने वाली मेडिकल टीम कोरोना से लड़ाई में अगली पंक्ति के वारियर्स हैं. उनका अपनी ही लापरवाही से संक्रमित होना स्टाफ के दूसरे सदस्यों के लिए ठीक नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘चिकित्सकों एवं मेडिकल स्टाफ को कोविड-19 से लड़ाई में बहुत अधिक सतर्क रहना पड़ेगा. यहां तक की स्वाब सैंपल लेते वक्त भी अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी, क्योंकि कई बार जिसका सैंपल लिया जाता है उसको छींक भी आती है. यदि यह व्यक्ति संक्रमित हुआ तो कई और भी इससे संक्रमित हो सकता है.’ त्रिपाठी मानते हैं कि निर्धारित मापदंडों और सावधानियों का हर समय पालन करना आसान नहीं है लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नही है. वे कहते हैं मरीजों का इलाज कर रही मेडिकल टीम के द्वारा असावधानी से ही डॉक्टरों में संक्रमण बढ़ा है.


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‘पहले पीपीई किट्स की गुणवत्ता जांचे सरकार’

इस बाबत जब दिप्रिंट कोरोना मरीजों की इलाज में डॉक्टरों के लिए शासन द्वारा जारी एडवाइजरी के सबंध में सरकारी डॉक्टरों की राय जानना चाही तो कोई सार्वजनिक रूप से बोलने को तैयार नही हुआ. लेकिन अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर जूनियर्स डॉक्टर्स एसोसिएशन, अंबेडकर हॉस्पिटल रायपुर के एक उच्च पदाधिकारी ने कहा कि यह बात उनके संज्ञान में नहीं है लेकिन यदि सरकार द्वारा ऐसा कोई निर्दश या आरोप लगाया है तो यह गलत है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा ,’यह संभव है लेकिन यह भी तय है कि कोई डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी जानबूझकर ऐसा नहीं करेगा जैसा माना जा रहा है.’पदाधिकारी ने आगे कहा, ‘सरकार को भी डॉक्टरों के लिए दी गयी सुविधाओं का आंकलन करना चाहिए. पीपीई किट्स की संख्या और गुणवत्ता की जांच भी करानी चाहिए.’

‘कोविड-19 अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों को पूरे समय पॉजिटिव मरीजों के बीच रहना पड़ता है. जिस माहौल में डॉक्टरों को काम करना पड़ रहा है उसमें संक्रमण का खतरा तो हमेशा बना रहता है. पूरे देश में डॉक्टरों में संक्रमण की संख्या बढ़ी है. सरकार को डॉक्टरों का सम्मान करना चाहिए ना कि जिलाधिकारियों के माध्यम से नियंत्रित.’

डीएम को जारी की गाइडलाइन 

जिलाधिकारियों को जारी पत्र में सरकार ने साफ निर्देश दिया है कि कोविड-19 अस्पतालों में सेवा दे रहे चिकित्सकों एवं कर्मचारियों की ड्यूटी के समय 14 दिनों के लिए उनके रहने की व्यवस्था अस्पताल के प्रभारी द्वारा अलग से की जाए.

सभी कलेक्टरों को यह भी कहा गया है कि इन डॉक्टरों और मेडिकल टीम से भोजन के वक्त आपसी मेलजोल न रखने और सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन कड़ाई से कराया जाए. इसके साथ ही ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों और कर्मचारियों को नये व्यक्तियों और दूसरे चिकित्सकों से नहीं मिलने को भी सख्ती से पालन कराया जाए.

राज्य सरकार के आदेश में यह साफ कहा गया है कि 14 दिनों की ड्यूटी के बाद इन डॉक्टरों और मेडिकल टीम को हाई रिस्क एवं लो रिस्क केटेगरी में रखकर क्वॉरेंटाइन में रहने के लिए दिन निर्धारित किये जाए. क्वॉरेंटाइन के दौरान डॉक्टरों के आवास एवं भोजन की पूरी व्यवस्था संबंधित जिला प्रशासन द्वारा की जाएगी.

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