scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेश'एलियन' के होने के और अधिक प्रमाण- जापान के अंतरिक्ष यान ने एस्टरॉयड रयुगु पर RNA बेस खोजा

‘एलियन’ के होने के और अधिक प्रमाण- जापान के अंतरिक्ष यान ने एस्टरॉयड रयुगु पर RNA बेस खोजा

जापान के हायाबुसा-2 मिशन ने क्षुद्रग्रह रायुगु में आरएनए के बिल्डिंग ब्लॉक्स में से एक ‘यूरैसिल’ युक्त नमूने प्राप्त किए हैं. इस खोज के निष्कर्ष 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुए हैं.

Text Size:

बेंगलुरु : ऐसा माना जाता है कि धूमकेतु और क्षुद्रग्रहों (एस्टरॉयड) पर लाखों साल पहले पृथ्वी पर जीवन के निर्माण खंड मौजूद हैं. इस परिकल्पना को हाल ही में हुई एक खोज से मजबूती मिली है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने पृथ्वी के नजदीक के एस्टरॉयड रयुगु से एकत्र किए गए नमूनों में आरएनए बनाने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी घटक अमीनो एसिड की उपस्थिति की खोज की है. इस तरह के बढ़ते सबूत बता रहे हैं कि पृथ्वी पर जीवन के लिए सामग्री बाहरी अंतरिक्ष से आई हो सकती है.

हायाबुसा-2 नामक एक जापानी नेतृत्व वाले अंतरिक्ष मिशन द्वारा एकत्र किए गए क्षुद्रग्रह के नमूनों ने राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) के चार न्यूक्लियोबेस में से एक ‘यूरैसिल’ सहित विभिन्न कार्बनिक अणुओं की उपस्थिति को सामने लाया है. आरएनए एक मोलेक्यूल (अणु) है जो सभी जीवित कोशिकाओं में मौजूद होता है और डीएनए में निर्देशों को प्रोटीन में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

21 मार्च को नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित एक पेपर ‘यूरेसिल इन द कार्बोनेक्स एस्टेरॉयड (162173) रायुगु’ में ताजा निष्कर्षों के बारे में विस्तार से बताया गया है.

पिछले महीने इस कार्बन युक्त क्षुद्रग्रह से वापस लाए गए नमूनों का प्रारंभिक विश्लेषण साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ था. वैज्ञानिकों ने 15 अमीनो एसिड – प्रोटीन के निर्माण खंड- सहित कई कार्बनिक मॉलिक्यूल को खोजने की जानकारी दी थी. लेखकों ने विचार करते हुए कहा कि ये यौगिक सतह की बर्फ की सूर्य के प्रकाश से प्रतिक्रिया के बाद एस्टरॉयड पर बने होंगे.

‘सोल्युबल ऑर्गेनिक मोलेक्युल्स इन सैंपल ऑफ दि कार्बोनेक्स एस्टरॉयड (162173) रायुगु’ नामक फरवरी के पेपर में बताया गया, ‘ये मोलेक्युल्स एस्टरॉयड की सतहों पर जीवित रह सकते हैं और पूरे सौर मंडल में ले जाए जा सकते है.’

हायाबुसा-2 अपने मिशन पर 2014 में निकला था और रयुगु की 95,000 किमी की दूरी तय करके पृथ्वी पर दिसंबर 2020 को नमूने गिराए थे.

ये सैंपल एस्टरॉयड पर दो जगहों से इकट्ठा किए गए थे. इन जगहों का अलग-अलग भूवैज्ञानिक इतिहास है, लेकिन अपने गठन के बाद से अछूते थे. शोधकर्ताओं ने मार्च पेपर में कहा, इन नमूनों की वजह से वो ‘पृथ्वी के वायुमंडल और जीवमंडल के अनियंत्रित संपर्क के बिना प्राचीन एक्सट्राटेरेरिस्ट्रिअल मैटेरियल’ का विश्लेषण कर सकते हैं.

जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने हायाबुसा-2 मिशन का नेतृत्व जर्मन स्पेस सेंटर (DLR) और फ्रेंच स्पेस एजेंसी (CNES) के सहयोग से किया था. इसे नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और ऑस्ट्रेलियन स्पेस एजेंसी (ASA) द्वारा समर्थित किया गया था.


यह भी पढ़ें: गंभीर ल्यूकेमिया पर अमेरिकी परीक्षण में नई दवा 53% पूर्ण या आंशिक रूप से कारगर पाई गई


पृथ्वी पर जीवन कैसे आया?

खगोल विज्ञानी यह पता लगाने के लिए कि जीवन की उत्पत्ति कहां से हुई और पृथ्वी पर जीवन कैसे आया, आकाशीय पिंडों में मौलिक कार्बनिक यौगिकों की तलाश कर रहे हैं.

ऐसे यौगिकों में पांच न्यूक्लियोबेस- नाइट्रोजन युक्त यौगिक जो आरएनए और डीएनए का आधार बनाते हैं – एडेनाइन (ए), गुआनिन (जी), साइटोसिन (सी), थाइमिन (टी), और यूरेसिल (यू) हैं.

बड़ा सवाल यह है कि क्या ये जीवन-निर्माण यौगिक पृथ्वी पर बने थे, या फिर उल्कापिंडों के रूप में पृथ्वी से टकराने के बाद कार्बन युक्त क्षुद्रग्रहों ने उन्हें यहां छितरा दिया था.

पिछले कुछ सालों में बाद वाले दावे की पुष्टि करने वाले काफी सबूत मिले हैं.

नेचर कम्युनिकेशंस में पिछले अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन में जापान के प्लैनेटरी साइंटिस्ट्स ने तीन उल्कापिंडों में सभी पांच जरूरी न्यूक्लियोबेस – ए, जी, सी, टी, और यू – की उपस्थिति की पुष्टि की थी. उन्होंने कहा था कि हो सकता है कि जीवन और पृथ्वी के अवयवों की उत्पत्ति अलौकिक (एक्सट्रा-टेरेस्ट्रियल) रही हो.

हायाबुसा-2 से प्राप्त निष्कर्ष भी इसी दिशा में इशारा करते हैं.

ryugu
हायाबुसा 2 अंतरिक्ष यान द्वारा एस्टरॉयड रियुगु पर यूरैसिल और विटामिन बी 3 युक्त नमूना सामग्री के तौर पर एक कॉस्पेचुअल तस्वीर | क्रेडिट: NASA गोडार्ड/JAXA/डैन गैलाघेर

पिछले महीने प्रकाशित रयुगु क्षुद्रग्रह के नमूनों के पहले विश्लेषण में विभिन्न ‘प्रीबायोटिक अणुओं’ का पता चला. इसमें वे अणु भी शामिल हैं जो पानी की उपस्थिति में बनते हैं.

मार्च में प्रकाशित हालिया विश्लेषण और भी रोमांचक है क्योंकि यह यूरासिल की उपस्थिति के बारे में बता रहा है. आरएनए में पाए जाने वाले इन न्यूक्लियोबेस को ‘यू’ के नाम से संबोधित किया जाता है.

शोधकर्ता को नमूनों में निकोटिनिक एसिड भी मिला है, जिसे नियासिन भी कहा जाता है. यह विटामिन बी3 का एक रूप है.

शोधकर्ताओं ने अपने पेपर में सिद्धांत दिया कि ये यौगिक तब निकले होंगे जब सूरज की यूवी किरणों ने एस्टरॉयड की सतह पर रसायनों को तोड़ा होगा.

हायाबुसा एस्टरॉयड मिशन

हायाबुसा-2 को हायाबुसा-1 के मिशन के बाद शुरू किया गया था. हायाबुसा-1 मिशन ने एस्टरॉयड इटोकावा से नमूने प्राप्त किए और उन्हें 2010 में पृथ्वी पर लेकर आया था. दोनों मिशनों का नाम पेरेग्रीन बाज़ के लिए जापानी शब्द के नाम पर रखा गया था, जिसका नेतृत्व JAXA ने किया है.

हायाबुसा-1 एस्टरॉयड पर पहली नियंत्रित लैंडिंग थी. चंद्रमा के अलावा किसी अन्य सौर मंडल ग्रह पर पहली बार कुछ भेजा गया था. हालांकि, कथित तौर पर तकनीकी मुद्दों के चलते क्षुद्रग्रह धूल के नमूने बहुत छोटे थे. एक विश्लेषण ने बाद में इस पर ओलिविन और प्लाजियोक्लेज़ जैसे खनिजों की उपस्थिति की खोज की थी.

अध्ययन में कहा गया है कि इस बार हायाबुसा-2 ने रयुगु में ‘दो टचडाउन ऑपरेशन के दौरान एकत्र किए गए कुल 5.4 ग्राम प्रिस्टिन नमूनों को सफलतापूर्वक डेलिवर किया है’.

मिशन को 2014 में लॉन्च किया गया था और यह 2018 में क्षुद्रग्रह के साथ जाकर मिला था.

पृथ्वी के निकट पाए जाने वाला यह ग्रह 95,0000 किमी की दूरी पर है. रयुगु मंगल और बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट में सूर्य की परिक्रमा करता है.

एक बार वहां हायाबुसा 2 ने दो रोवर और एक लैंडर तैनात किया और सतह के नीचे से नमूने लेने के लिए एक कृत्रिम गड्ढा बनाने को लेकर इम्पैक्टर भी दागे थे. मिशन फरवरी 2019 में रवाना हुआ और 6 दिसंबर 2022 को लैंडिंग कैप्सूल के जरिए नमूने भेजे गए थे.

मौजूदा समय में हायाबुसा 2 एक अन्य एस्टरॉयड 1998 KY26 के लिए एक विस्तारित मिशन पर है.

गौरतलब है कि JAXA ने नासा के साथ अपने एस्टरॉयड नमूनों का एक हिस्सा साझा किया है और बदले में उसने एक अन्य निकट-पृथ्वी क्षुद्रग्रह बेन्नू के कुछ नमूने नासा से लिए हैं. OSIRIS-REx मिशन उन्हें इस साल के अंत में रिपोर्ट देगा. 2018 में रिपोर्ट किया गया था कि इसके संकेत मिले हैं कि बेन्नू पर कभी पानी था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : जाने-माने जेनिटिसिस्ट और NCBS निदेशक एलएस शशिधर, जिनकी नजर में साइंस पहले और बाद में है सोशल वेलफेयर


 

share & View comments