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Thursday, 2 May, 2024
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आमदनी, महंगाई और बैंको से नजदीकी में छिपा है भारतीयों की बचत का राज़: रिसर्च

पिछले हफ्ते प्रकाशित एक पेपर के मुताबिक, वास्तविक आय को बढ़ाने और मुद्रास्फीति को कम करने की दिशा में बनाई गई नीतियां भारत में बचत दर को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं.

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नई दिल्ली: एक सेहतमंद अर्थव्यवस्था के लिए घरेलू और निजी क्षेत्र की बचत काफी महत्वपूर्ण होती है. लेकिन भारत में इस तरह की बचत के लिए लोगों को प्रभावित करने वाले कारण कौन से हैं? पिछले हफ्ते प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुभवजन्य साक्ष्यों की मानें, तो बचत मुख्य रूप से महंगाई और लोगों की बैंकिंग तक पहुंच से प्रभावित होती है. हो सकता हैं आपको ये कारण कॉमन सेंस यानी सामान्य ज्ञान के सवालों के जवाबों की तरह लगें.

‘इंटरनेशनल रिव्यू ऑफ इकोनॉमिक्स एंड फायनेंस’ पीर-रिव्यू जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के रिसर्चर भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष और अमेरिका में सैम ह्यूस्टन स्टेट यूनिवर्सिटी, टेक्सास के साथ जुड़े हिरण्य के. नाथ हैं. इन दोनों ने भारत के 50 सालों के व्यापक आर्थिक, जनसांख्यिकीय, वित्तीय और बाहरी क्षेत्र (निर्यात और आयात) के आंकड़ों को खंगालने के बाद इस पेपर को तैयार किया है.

उन्होंने 1960 से 2016 तक के डेटा का विश्लेषण किया और पता लगाया कि वास्तविक प्रति व्यक्ति आय – या मुद्रास्फीति-समायोजित आधार पर आय और बैंकिंग सुविधाओं तक लोगों की पहुंच भारत में बचत के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक तत्वों में से हैं. बचत को उपभोग व्यय के बाद बची हुई आय के रूप में परिभाषित किया गया है.

इन आंकड़ों के अपने विश्लेषण के बाद दोनों स्कोलर तीन महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर पहुंचे.

सबसे पहला निष्कर्ष यह था कि वास्तविक प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने से घरेलू और निजी बचत भी बढ़ने लगती है. कहने का मतलब है कि जैसे-जैसे लोग वास्तविक तौर पर ज्यादा कमाने लगते हैं, वे ज्यादा से ज्यादा बचत करने की ओर देखने लग जाते हैं.

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दूसरा यह है कि मुद्रास्फीति यानी महंगाई घरेलू और निजी बचत दोनों पर अपना असर डालती है. और तीसरी निष्कर्ष यह है कि लंबी और छोटी अवधि में बैंकिंग तक पहुंच, घरेलू और निजी बचत का एक मजबूत निर्धारक तत्व है.

पेपर में कहा गया है, ‘इन नतीजों को देख कर लगता है कि प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने, मुद्रास्फीति की कम दर और बैंकिंग तक पहुंच बढ़ाने के इरादे से बनाई गई नीतियां भारत में निजी बचत को बढ़ाने में एक लंबा रास्ता तय कर सकती हैं.’


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बचत को कैसे प्रभावित करती है आय और मुद्रास्फीति

अध्ययन के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय लंबे समय तक निजी बचत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

लेखक लिखते हैं कि प्रति व्यक्ति आय में एक प्रतिशत की वृद्धि से लंबी अवधि में निजी बचत दर में 0.37 प्रतिशत की वृद्धि होती है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि उच्च आय अल्पावधि में भी बचत को बढ़ावा दे सकती है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यहां तक कि कम समय में, प्रति व्यक्ति आय में परिवर्तन का बचत दर में परिवर्तन पर सकारात्मक और सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. इस तरह से भारत में उच्च निजी बचत के लिए वर्तमान आय में वृद्धि महत्वपूर्ण है.’

हालांकि, अध्ययन में भारत में बचत और मुद्रास्फीति के बीच एक नकारात्मक संबंध भी सामने आया है.

लेखकों ने नोट किया कि मुद्रास्फीति में 1 प्रतिशत-प्वाइंट की वृद्धि के चलते लंबे समय में निजी बचत दर में 1.23 प्रतिशत- प्वाइंट की कमी आई. यह तब था जब अन्य सभी कारक समान बने हुए थे. इस स्थिति को ceteris paribus कहा जाता है.

लेखक मुद्रास्फीति-बचत संबंध की व्याख्या करने के लिए दो संभावित परिकल्पनाओं का हवाला देते हैं. एक यह है कि लोग बढ़ती कीमतों के बीच अपने मौजूदा खर्च के स्तर को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरा उनकी मौजूदा संपत्ति भविष्य में कितनी मूल्यवान हो जाएगी, इसे लेकर अनिश्चितता है.

पेपर में कहा गया है, ‘ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे मुद्रास्फीति बढ़ती है, लोग खर्च के एक निश्चित स्तर को बनाए रखने के लिए बचत करना बंद कर देते हैं. इसे कुछ इस तरह भी कहा जा सकता है कि उच्च मुद्रास्फीति संचित बचत के भविष्य के मूल्य के बारे में अनिश्चितता पैदा करती है और बचत पर अपेक्षित रिटर्न की दर कम कर देती है और इस तरह लोग कम बचत करते हैं.’

अध्ययन में पाया गया कि ‘डिपेंडेंसी रेशो’ बढ़ने पर बचत की दर भी कम हो जाती है. यह अनुपात कामकाजी उम्र की आबादी की तुलना में आश्रितों, जैसे कि बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के अनुपात का प्रतिनिधित्व करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन परिणामों से पता चलता है कि जैसे-जैसे कामकाजी उम्र की आबादी के मुकाबले बच्चों और बुजुर्ग लोगों की संख्या बढ़ती है, कामकाजी समूह को अपने ऊपर निर्भर आबादी की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी बचत कम हो जाती है.’ रिपोर्ट कहती है, ‘कम समय में संसाधनों को जुटाने की गुंजाइश कम ही होती है लेकिन खर्चे कम नहीं किए जा सकते हैं. अपने ऊपर निर्भर लोगों पर आय का अधिक हिस्सा खर्च करना पड़ता है.’

इसी तरह अध्ययन से पता चला है कि बैंक घनत्व – प्रति व्यक्ति उपलब्ध बैंकों की संख्या – का बचत के साथ विपरीत संबंध है. कहने का मतलब है कि एक बैंक पर लोगों की एक बड़ी संख्या का निर्भर होना आम तौर पर बचत में कमी लाती है, जबकि बैंकों की ज्यादा संख्या का होना बचत में वृद्धि करता है.

बचत क्यों मायने रखती है?

बचत का महत्व अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा देने की उनकी क्षमता में निहित है.

जब लोग अपनी आमदनी के कुछ हिस्से को इस उम्मीद से अलग रखते हैं कि आने वाले समय में इसकी कीमत बढ़ जाएगी तो वे वेल्थ बढ़ाने में योगदान देते हैं. इस तरह से ज्यादा लोगों के जीवन में सुधार लाते हैं.

अध्ययन ने माना कि उदारीकरण के बाद, भारत ने 1993 से प्रति व्यक्ति आय में लगातार वृद्धि देखी है. और साथ ही ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में बैंकों को खोलने के लिए उठाए गए ऐतिहासिक कदमों ने लोगों की बैंक तक पहुंच बढ़ाने में खासी मदद की है.

अपनी नीतिगत सिफारिशों में लेखकों ने कहा कि उत्पादकता बढ़ाने, मुद्रास्फीति कम करने और वास्तविक आय बढ़ाने के उद्देश्य से तैयार की गई व्यापक आर्थिक नीतियां भारत में बचत दर को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि ‘बैंकिंग के प्रसार’ को आसान बनाने वाली नीतियां ‘बचत जुटाने में सहयोग करेंगी’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून) | (अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)


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