scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेश'मोहन भागवत कोई शंकराचार्य नहीं ' - RSS प्रमुख से क्यों नाराज हैं कई हिंदू पुजारी

‘मोहन भागवत कोई शंकराचार्य नहीं ‘ – RSS प्रमुख से क्यों नाराज हैं कई हिंदू पुजारी

हाल में चल रहे ज्ञानवापी विवाद को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग की खोज करने की कोई जरूरत नहीं है

Text Size:

लखनऊ: आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के पिछले हफ्ते के बयान कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग की खोज करने की कोई जरूरत नहीं है’, ने उन्हें कई हिंदू पुजारियों और हिंदूवादी संगठनों और व्यक्तियों के बीच एक विवादास्पद व्यक्ति बना दिया है. वे सभी उनके बयान से पूरी तरह असहमत हैं.

भागवत वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद और वहां कथित तौर पर मिले एक शिवलिंग को लेकर चल रहे कानूनी विवाद पर बोल रहे थे.

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व पुजारी महंत कुलपति तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह (भागवत) कोई शंकराचार्य नहीं हैं. वह जो सोचते हैं उन्हें बोलने दें. हम राजनेता नहीं चाहिए.’

शंकराचार्य या अद्वैत वेदांत परंपरा के तहत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पीठों या चार पीठों के मठों के प्रमुख, देश भर में कई हिंदुओं, पुजारियों और संतों के बीच पूजनीय हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह आस्था की बात है. जब बीजेपी और आरएसएस मामला नहीं लड़ रहे हैं तो फिर वे क्यों कह रहे हैं कि मंदिर की जरूरत नहीं है? हम केवल परिसर में मौजूद देवताओं की पूजा करने के अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं.

तिवारी ने वाराणसी की एक अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की है कि मुगल-युग की ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर को हिंदुओं को सौंप दिया जाए और उन्हें कथित तौर पर इसके अंदर पाए गए शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति दी जाए. उनके अनुसार, मस्जिद के वुज़ूखाना (नमाज पढ़ने से पहले हाथ और पैर धोने का स्थान) में मौजूद संरचना को जिसे एक फव्वारा बताया जा रहा है वह शिवलिंग है’.

द्वारका पीठ के एक प्रमुख पुजारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद – चार पीठों में से एक – कथित शिवलिंग के सामने पूजा करने में विफल रहने के बाद, पिछले चार दिनों से वाराणसी में अनिश्चितकालीन उपवास पर हैं.

पुरी (ओडिशा) में गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि दुनिया की कोई भी शक्ति हिंदुओं को ‘मानव अधिकारों की सीमाओं का अतिक्रमण करके (ऐतिहासिक काल में मंदिर विध्वंस का संदर्भ) अपवित्र या ध्वस्त किए गए मूल्यों (धार्मिक महत्व के माने जाने वाले स्थानों के लिए वह एक संदर्भ का उपयोग करते हैं) को फिर से बहाल करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है.’

इस बीच, चल रहे ज्ञानवापी कानूनी विवाद में श्रृंगार गौरी और अन्य हिंदू देवताओं की पूजा करने के अधिकार के लिए अदालत का रुख करने वाले याचिकाकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि अगर उन्हें अयोध्या, काशी और मथुरा मिल जाएंगे तो वे ‘दूसरों स्थलों को छोड़ने’ के लिए तैयार हैं.

हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान माने जाने वाले अयोध्या में एक मंदिर पहले से ही बन रहा है. यहां पहले बाबरी मस्जिद थी जिसे ध्वस्त कर दिया गया. काशी ज्ञानवापी मस्जिद का स्थल है, जिसके बारे में कई इतिहासकारों का कहना है कि इसे औरंगजेब युग के दौरान विश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था.

मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर कहा जा रहा है कि इसे औरंगजेब के समय में उस स्थान पर मंदिर के कथित विध्वंस के बाद बनाया गया था, जहां हिंदू देवता कृष्ण का जन्म हुआ है.

इसके अलावा ताजमहल के ‘वास्तविक इतिहास’ की जांच के लिए अंदर सीलबंद कमरों को खोलने और दिल्ली के प्रतिष्ठित कुतुब मीनार में हिंदू और बौद्ध देवताओं की छवियों और मूर्तियों की उपस्थिति का हवाला देते हुए पूजा के अधिकार की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की गई थीं. इन दोनों याचिकाओं को संबंधित अदालतों ने खारिज कर दिया है.


यह भी पढ़ेंः ज्ञानवापी ‘जलाभिषेक’ और अन्य मस्जिदों के हिंदुत्व समूहों के रडार पर होने से चिंतित है उर्दू प्रेस


‘वे शंकराचार्यों से बात क्यों नहीं कर रहे हैं?’

काशी के प्राचीन संकट मोचन मंदिर के महंत विश्वंभर नाथ मिश्रा ने कहा कि काशी का माहौल खराब किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘हर दिन एक नई याचिका दायर की जा रही है… बहुत भ्रम पैदा किया जा रहा है. वह आगे कहते हैं, ‘जब बात आस्था से जुड़ी है तो वे शंकराचार्यों से बात क्यों नहीं कर रहे हैं?’

पुरी के गोवर्धनमठ पीठ और गुजरात के द्वारका कालिका पीठ के अलावा, अन्य दो महत्वपूर्ण पीठ कर्नाटक में श्रृंगेरी शारदा पीठ और उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ या जोशीमठ हैं.

मिश्रा ने कहा, ‘वे (भाजपा, आरएसएस) भी इसके जरिए (उनके विचारों पर विचार नहीं करके) पीठ संस्कृति को कमजोर कर रहे हैं.’

पिछले हफ्ते वाराणसी में मीडिया से बात करते हुए स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, ‘हमें (हिंदुओं) अपने ध्वस्त मूल्यों को फिर से बहाल करने का पूरा अधिकार है और दुनिया की कोई भी शक्ति हमें ऐसा करने से इनकार नहीं कर सकती है.’

उन्होंने आगे कहा,‘ हमारे मुस्लिम भाइयों से मेरा अनुरोध है कि उनके पूर्वजों ने मानव अधिकार का अतिक्रमण करके जो कोई भी कदम उठाए थे, उसको आदर्श न मानें. रहीम (कवि) और रसखान (सूफी कवि) के जीवन की तरह स्नेह का परिचय देकर हमारे साथ मिलकर रहें.’

उधर ज्ञानवापी मामले की एक महिला याचिकाकर्ता सीता साहू ने दिप्रिंट को बताया कि भागवत की टिप्पणी का ‘गलत अर्थ’ निकाला जा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि वह सही है, क्योंकि अब बहुत सारी याचिकाएं दायर की जा रही हैं. और ये सब मुझे भी गलत लगता है. लेकिन इतिहास यह है कि मथुरा मंदिर को तोड़ा गया, काशी मंदिर को तोड़ा गया. इसलिए मेरे हिसाब से यह (यहां मंदिरों की मांग) सही है.’

इस मामले में एक याचिकाकर्ता विहिप वाराणसी प्रांत के उपाध्यक्ष और लक्ष्मी देवी के पति सोहनलाल आर्य ने सबसे पहले दावा किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ूखाना के अंदर पाए गए काले पत्थर की संरचना एक शिवलिंग है.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर हमारे पास ये तीन मंदिर हैं – अयोध्या, काशी और मथुरा – अगर यहां हमें ये स्थान और मंदिर मिल जाते हैं, तो हम कुतुब मीनार और ताजमहल को छोड़ देंगे. मुसलमानों को हमारी भावनाओं को समझना चाहिए.’

मिश्रा ने कहा, ‘आप एक ऐतिहासिक सुधार करना चाहते हैं, लेकिन आप कितनी दूर तलक जाएंगे? 1,000, 5,000 या 10,000 वर्ष?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः ज्ञानवापी मसले पर मोदी और भागवत के विचार मिलते हैं लेकिन इस पर संघ परिवार में क्या चल रहा है


 

share & View comments