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Sunday, 22 December, 2024
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मोदी-नीतीश तब और अब- 13 साल के बीच दो तस्वीरें उस कालचक्र को दिखाती हैं जो अपना चक्कर पूरा कर चुका है

उस समय से जब प्रधान मंत्री मोदी, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, बिहार में अवांक्षित व्यक्ति हो गए थे, से लेकर अब का समय जब भाजपा ने बिहार विधानसभा में अपने ही एनडीए सहयोगी जद (यू) को पीछे छोड़ दिया है.

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पटना: लखनऊ में इस शुक्रवार को योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देने के लिए झुके हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक तस्वीर ने ट्विटर पर तहलका मचा दिया है. इसने कई सोशल मीडिया यूजर्स, जिनमें राजनेता भी शामिल है, को 2009 में पंजाब में आयोजित एक और रैली में ली गई इन्हीं दोनों नेताओं की एक पुरानी तस्वीर की याद दिला दी, जिसने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नीतीश के जनता दल (यूनाइटेड) के बीच के गठबंधन को लगभग समाप्त होने के कगार तक ला दिया था.

बिहार के मुख्यमंत्री की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने इस ताजा तस्वीर को ट्विटर पर शेयर करते हुए चुटकी ली और कहा, ‘बस अब पैर पकड़ना बाकी है’, इसने कथित तौर पर नीतीश को एक बार यह कहते हुए भी उद्धृत किया : ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा पर भाजपा में नहीं जाऊंगा.’

13 साल के अंतराल में ली गई ये दो तस्वीरें इन दोनों नेताओं के बीच बदलते समीकरणों को दर्शाती हैं – उस समय से लेकर जब मोदी 2002 के गुजरात दंगों के बाद बिहार में ‘अवांक्षित व्यक्ति’ हो गए थे और नीतीश के मन में भाजपा के साथ संबंध तोड़ने के बारे में विचार उभर रहे थे, से लेकर अब तक, जब भाजपा ने बिहार विधानसभा में अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथी जद(यू) के 45 विधायकों की तुलना में अपने 77 विधायकों के साथ उसे काफी पीछे छोड़ दिया है.

एक भाजपा विधायक ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘पहिया एक पूरा चक्कर लगा चुका है’.

उन्होंने कहा, ‘2009 में, नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का एक ऐसा संभावित उम्मीदवार माना जाता था जो नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकते थे. 2021 में नीतीश कुमार के पास भाजपा के साथ रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि राजद भी अब उन्हें सीएम के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. ये दो तस्वीरें यही कहानी बयां करती हैं.’

उधर, भाजपा और जद(यू) ने इस आलोचना को सिरे से खारिज कर दिया. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘राजद वाले हताश है क्योंकि वे जानते हैं कि सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी एकजुट होकर बिहार में उसकी वापसी की संभावनाओं पर पानी फेर देंगे. वे भाजपा और जदयू के बीच फूट की झूठी अफवाह फैलाते रहते हैं.’

योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण के समय ली गई इस ताजातरीन तस्वीर का जिक्र करते हुए, जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि यह ‘एक मुख्यमंत्री द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री के प्रति शालीनता भरा प्रदर्शन’ था.

उन्होंने कहा, ‘नीतीश कुमार को हमेशा सार्वजनिक रूप से शालीनता कायम रखने के लिए जाना जाता है. अगर राजद को लगता है कि पीएम का अभिवादन करने वाला कोई सीएम आत्मसमर्पण कर रहा है, तो वे मानसिक रूप से बीमार हैं.’


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ताजा तस्वीर

नीतीश और मोदी की शुक्रवार की ली गई तस्वीर पर लालू प्रसाद यादव की राजद के साथ-साथ कई अन्य लोगों ने भी सोशल मीडिया द्वारा जमकर हमला किया.

इस समारोह में देर से पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री सीधे मोदी और आदित्यनाथ की ओर बढ़ गए.

एक यूजर ने टिप्पणी करते हुए लिखा, ‘इस उम्र में भी वह 90 डिग्री झुक सकते हैं. कमाल है’; जबकि एक दूसरे टिप्पणी, पंकज भारतीय, ने की: ‘मोदी शरणं गच्छामि.’

इस बीच, राज्य विधानमंडल के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी ने दावा किया कि नीतीश कुमार लखनऊ में प्रधानमंत्री के ‘पैरों पर गिर गए’. साथ ही उन्होंने कहा, ‘कुछ मज़बूरी होगी’.

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने ट्वीट किया, ‘नीतीश तो पीएम मोदी के पैर छूने के लिए तैयार थे. मोदी ने ही उन्हें रोका.’

दूसरी तस्वीर

2009 की तस्वीर में नीतीश कुमार और मोदी, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, जालंधर में शिरोमणि अकाली दल की एक रैली में हाथ पकड़े हुए दिखाई दे रहे हैं, उसी साल बिहार में लोकसभा चुनाव हुए थे. 2010 में, यही तस्वीर स्थानीय समाचार पत्रों में तब एक पूरे पन्ने के विज्ञापन के एक हिस्से के रूप में दिखाई दी, जब भाजपा पटना में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कर रही थी.

बिहार के मुख्यमंत्री को इस बैठक में शामिल होने वाले भाजपा नेताओं के लिए एक रात्रिभोज की मेजबानी करनी थी, लेकिन उन्होंने गुस्से की वजह से इसे रद्द कर दिया. उन्होंने कहा कि वह 2008 में बिहार में आई बाढ़ के पीड़ितों के लिए गुजरात सरकार द्वारा भेजे गए 5 करोड़ रुपये भी वापस कर देंगे.

यहां तक कि उन्होंने भाजपा के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन तोड़ने के बारे में भी सोचा था. अंततः उन्होंने 2013 में यह गठबंधन तोड़ ही दिया जब यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी भाजपा में पीएम पद के उम्मीदवार होंगे. जद(यू) के पूर्व सांसद रह चुके शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘नीतीश द्वारा रात्रिभोज रद्द किये जाने के बाद, मैंने नीतीश को भाजपा से संबंध तोड़ने के लिए कहा था. लेकिन अन्य कई नेताओं ने उन्हें गठबंधन जारी रखने के लिए मना लिया.’

बदलते समीकरण

2002 के गुजरात दंगों के बाद, भाजपा नेताओं द्वारा मोदी के नाम का सार्वजनिक रूप से उच्चारण भी नहीं किया जाता था, और 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी ने अपने पोस्टरों पर अपने स्वयं के नेताओं के फोटो की बजाय नीतीश की तस्वीरें लगाईं.

2013 आते-आते मोदी ने पटना के गांधी मैदान में बड़ी सी ‘हुंकार’ रैली की. इसके अलावा उनके बिहार आगमन का केवल एक और अवसर तब आया था जब वे उसी वर्ष नवंबर में गुजरात के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय कैलाशपति मिश्रा को श्रद्धांजलि अर्पित करने बिहार आए थे. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उस समय प्रोटोकॉल को न्यूनतम स्तर पर रखा गया था और केवल मुट्ठी भर राज्य भाजपा नेता ही उनके स्वागत के लिए मौजूद थे.

नीतीश कुमार द्वारा उठाए गए इस मोदी विरोधी रुख का मकसद बिहार की 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को लालू प्रसाद यादव की पकड़ से दूर करना और खुद को एक स्वतंत्र राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करना था. लेकिन, इस सब के बावजूद 2014 के लोकसभा चुनाव में मुसलमान लालू के राजद के साथ ही डटे रहे और भाजपा एवं उसके सहयोगियों ने 32 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की. जद(यू) को सिर्फ दो सीटें और 15 फीसदी वोट ही मिल पाया. मुसलमानों ने 2015 के विधानसभा चुनावों में जद(यू) के उम्मीदवारों के लिए तब मतदान किया, जब यह पार्टी लालू के राजद और कांग्रेस के साथ एक महागठबंधन का हिस्सा थी.

जद(यू) के एक सांसद ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘नीतीश कुमार का 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन में वापस आना इस गणना पर आधारित था कि जद(यू)-भाजपा गठबंधन मुस्लिम वोटों के बिना भी राजद को हराने में सक्षम होगा.’

2017 में जिस दिन नीतीश महागठबंधन छोड़ भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हुए, उस दिन पीएम मोदी ने ही सबसे पहले एक ट्वीट के जरिए उनका स्वागत किया. तब से, उनके बीच के रिश्ते काफी बदल गए हैं. जातीय जनगणना और एनआरसी जैसे कई मुद्दों पर नीतीश अपनी स्वतंत्र राय रखने में सफल रहे हैं. लेकिन साथ ही, पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने तथा बिहार को विशेष दर्जा देने जैसे उनके कई अनुरोधों को नजरअंदाज भी कर दिया गया है. इसके अलावा, केंद्रीय मंत्रिमंडल में और अधिक पदों के लिए उनके आग्रह की भी अनदेखी कर दी गयी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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