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Friday, 22 November, 2024
होमदेशरेमडेसिवीर के चौथे चरण के ट्रायल्स के लिए मोदी सरकार के पैनल ने 3 फर्मों के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी, बस एक क़दम बाकी

रेमडेसिवीर के चौथे चरण के ट्रायल्स के लिए मोदी सरकार के पैनल ने 3 फर्मों के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी, बस एक क़दम बाकी

कमिटी का ये फैसला 13 अगस्त को हुई एक बैठक में, विस्तृत विचार-विमर्श के बाद लिया गया. तीन कम्पनियों की ओर से पेश प्रस्तावों पर, अंतिम फैसला अब डीसीजीआई को लेना है.

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नई दिल्ली: तीन फार्मा कंपनियों को, जिनके पास भारत में कोविड-19 की संभावित दवा रेमडेसिवीर बनाने का लाइसेंस है, इसका असर तय करने के लिए, आख़िरी चरण के क्लीनिकल ट्रायल की मंज़ूरी मिलने वाली है.

भारतीय फर्म्स हेटेरो लैब्स और सिपला, और अमेरिकन कंपनी माइलान की ओर से दाख़िल इस आशय के प्रस्तावों को, विषय एक्सपर्ट कमिटी से हरी झंडी मिल गई है, जो शीर्ष नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) को, कोविड-19 से संबंधित नई दवाओं, वैक्सीन्स, या क्लीनिकल ट्रायल्स के, मंज़ूरी मांगने के आवेदनों पर सलाह देती है.

इन तीन कंपनियों को मई में रेमडेसिवीर की पेरेंट जिलीड साइंसेंज़ की ओर से दवा बनाने की अनुमति मिल गई थी. अमेरिकी कंपनी से निर्माण का लाइसेंस हासिल करने वाली, ये पहली कंपनियां थीं, लेकिन उसके बाद से इस सूची में कई और नाम जुड़ गए हैं.

कमिटी का ये फैसला 13 अगस्त को हुई एक बैठक में, विस्तृत विचार-विमर्श के बाद लिया गया, जिसकी जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय की एक संस्था- केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ)- की वेबसाइट पर अपलोड की गई है, जो देश में निर्मित दवाओं, और वैक्सीन्स की क्वालिटी को नियंत्रित करती है. सीडीएससीओ की अगुवाई डीसीजीआई करता है.

इन तीन कम्पनियों की ओर से पेश प्रस्तावों पर, अंतिम फैसला अब डीसीजीआई को लेना है.

रेमडेसिवीर कोविड-19 का वो इलाज है, जिसपर सबसे अधिक नज़र रखी जा रही है. मध्यम से गंभीर मरीज़ों में, इसके आपात इस्तेमाल को मंज़ूरी मिली हुई है, लेकिन सरकार निर्देशों में इसे ऐसे मरीज़ों के लिए प्रतिबंधित किया गया है, जिनमें ख़राब लिवर के लक्षण हों, जिनके गुर्दे कमज़ोर हों, जो महिलाएं गर्भवती या दूध पिलाने वाली हों, या 12 साल से कम उम्र के बच्चे हों.

अंतिम चरण के ट्रायल्स फेज़ 4 या पुष्टिकरण ट्रायल्स कहलाते हैं, और इन्हें दवा के असर से जुड़े, कुछ अहम सवालों के जवाब जानने के लिए किया जाता है.


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फेज़ 4 के लिए कमिटी की सिफारिशें

क्लीनिकल ट्रायल के पहले तीन चरणों में, प्रयोगात्मक दवा के चिकित्सकीय प्रभाव का अनुमान लगाया जाता है, और बाज़ार में उतारने से पहले, इसके जोखिम और प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं का आंकलन किया जाता है. फेज़ 4 में “मार्केटिंग के बाद की निगरानी” की जाती है. इस फेज़ के दौरान, किसी दवा की गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को नोट करके, डीसीजीआई को भेजा जाता है.

एसईसी ने कुछ शर्तें तय कीं हैं जिनका तीनों कंपनियों को, फेज़ 4 के ट्रायल शुरू करते समय पालन करना होगा.

एक ये कि, ‘स्टडी के शीर्षक में सिर्फ ‘गंभीर’ शब्द की जगह ‘मध्यम से गंभीर’ शब्द होने चाहिएं, जिससे स्पष्ट हो सके कि ये इलाज, दोनों वर्गों के मरीज़ों को दिया जा सकता है’.

इसने ये भी सुझाव दिया है कि ट्रायल में, मरीज़ के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के दौरान, 7वें और 14वें दिन “वायरल लोड” के क्लियरेंस का भी उल्लेख ज़रूर होना चाहिए.

एसईसी ने दवा निर्माताओं से ये भी कहा है, कि स्टडी के अहम उद्देश्य के तौर पर, अतिरिक्त रूप से “28 दिन की मृत्यु दर” भी जोड़ दें. इसका मतलब है कि कंपनियों को ब्यौरा देना पड़ेगा, कि मरने वाले मरीज़ों में कितनों को रेमडेसिविर दी गई थी, और कितनों को नहीं.

कंपनियों को एक विश्लेषण योजना दाख़िल करने के लिए भी कहा गया है, जिसमें चौथे चरण के ट्रायल के नतीजों की, रेमडेसिविर पर प्रकाशित अभी तक के साहित्यिक डेटा से, तुलना की गई हो.

आशाजनक नतीजे

रेमडेसिवीर को भारत में ‘आपात इस्तेमाल’ के लिए तब लॉन्च किया गया, जब गिलीड साइंसेज़ ने दो ग्लोबल क्लीनिकल ट्रायल्स के डेटा पेश किए- मध्यम से गंभीर लक्षणों वाले कोविड मरीज़ों में, एक प्लेसीबो नियंत्रित फेज़ 3 स्टडी, जिसे यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिज़ीज़ेज़ ने किया था, और कंपनी की ग्लोबल फेज़ 3 स्टडी, जिसमें बीमारी के गंभीर मरीज़ों के लिए, रेमडेसिविर के असर का आंकलन किया गया था.

जून में घोषित हुए कंपनी ट्रायल के, फेज़ 3 के नतीजों के अनुसार, ‘रेमडेसिविर के पांच दिन के इलाज के नतीजे में, अकेली देखभाल के मानक के मुक़ाबले, कहीं बेहतर क्लीनिकल सुधार देखे गए’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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