scorecardresearch
Monday, 13 May, 2024
होमदेशअपनी ही कमेटी की रिपोर्ट पर चुप बैठी है मोदी सराकर, 11 करोड़ आदिवासियों के स्वास्थ्य पर सिफारिश अधर में

अपनी ही कमेटी की रिपोर्ट पर चुप बैठी है मोदी सराकर, 11 करोड़ आदिवासियों के स्वास्थ्य पर सिफारिश अधर में

तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, जनजातीय मामलों के मंत्री ओराम, एवं दोनों मंत्रालयों और आईसीएमआर के अन्य प्रतिनिधियों ने दिल्ली के एक समारोह में रिपोर्ट का स्वागत किया, इसकी सिफारिशों पर कार्रवाई का वादा किया पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.

Text Size:

गढ़चिरौली: मोदी सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए तमाम कदम उठाने की बात करती है. उनके बनाए उत्पादों को बेचने के लिए वैश्विक स्तर का बाजार विकसित करना चाहती है लेकिन उनके स्वास्थ्य के प्रति वह लापरवाह नजर आती है. सरकार 2018 में आदिवासियों के स्वास्थ्य से जुड़ी अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें लागू करने का वादा करके भी इस पर कोई कदम नहीं उठा रही है.

सिफारिश का स्वागत किया, वादा किया पर मुकर गए

दिल्ली के निर्माण भवन में 9 अगस्त 2018 को एक समारोह में, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, जनजातीय मामलों के मंत्री ओराम, एवं दोनों मंत्रालयों और आईसीएमआर के अन्य प्रतिनिधियों की उपस्थिति में यह रिपोर्ट पेश की गई. नड्डा ने स्वागत करते हुए इसकी सिफारिशों पर कार्रवाई का वादा किया. नीति अयोग ने भी लागू करने की बात की लेकिन दो साल बाद भी कुछ भी नहीं हुआ है. 11 करोड़ आदिवासियों के स्वास्थ्य सुधार का कार्य अब अधर में है.

इन दो सालों में 15 लाख आदिवासियों की मौत का अनुमान

इन दो सालों में, लगभग 15 लाख आदिवासीयों की विभिन्न वजहों से मौत का अनुमान हैं. जिसमे मलेरिया, कुपोषण, नवजात निमोनिया और डायरिया, नवजात रुग्णता, तपेदिक, सर्पदंश, शराब, आत्महत्या और तेजी से बढ़ रहे गैर-संक्रामक रोग आदि शामिल हैं.

7 अगस्त 2018 में, ‘भारत में जनजातीय स्वास्थ्य– खाई कैसे मिटायें?: भविष्य के लिये मार्गदर्शन’ नामक रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर भारत सरकार को प्रस्तुत की गयी थी. यह रिपोर्ट पद्मश्री डॉ. अभय बंग–जाने-माने आरोग्य विशेषज्ञ और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सर्च नामक एक स्वयंसेवी संगठन के संस्थापक-संचालक- की अध्यक्षता में 12 सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों की ‘द एक्स्पर्ट कमेंटी ऑन ट्राइबल हेल्थ’ ने रिपोर्ट तैयार की थी. समिति का गठन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और आदिवासी मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था.

इसका मकसद आदिवासी स्वास्थ्य की स्थिति की समीक्षा करने और भविष्य के रोडमैप की सिफारिश करना था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

(पूरी रिपोर्ट और सिफारिशें www.tribalhealthreport.in एवं www.mohfw.gov.in पर उपलब्ध हैं)

क्य कहती कमेटी की रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 11 करोड़ अनुसूचित जनजातियों की स्वास्थ्य की स्थिति सबसे खराब है. 2011 में, लगभग 146,000 आदिवासी बच्चों की मौत हुई. आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा बेहद कमजोर है- सेवा के ढांचे और आदिवासियों के जीवन शैली (अक्सर जंगलों और पहाड़ियों) में एक बेमेल है. यह उनकी सांस्कृतिक या सामाजिक संरचनाओं और विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओ के अनुरूप नहीं है.

रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के बुनियादी ढांचे की स्थिति और स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता में कमी एक गंभीर विषय हैं. 30-80% डॉक्टर के पद खाली हैं. जहां डॉक्टर मौजूद भी हैं, वहां अनुपस्थिति आम और मनोबल कमजोर है. समिति का निष्कर्ष है कि आदिवासी इलाको में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ‘यह एक कम निवेश, कम गुणवत्ता, कम उत्पादन और कम परिणाम वाली प्रणाली है.’

बतौर रिपोर्ट आदिवासी स्वास्थ्य पर रिकॉर्ड और डेटा का रखाव भी बेहद चिंताजनक है. भारत के आदिवासी जनसंख्या में शिशु मृत्यु दर और आयु-संभाव्यता (life-expectancy) जैसे मुलभूत सुचकांकों की गणना नहीं की जाती. न ही इन आंकड़ों को जानने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों में कोई गंभीरता होती है.

आखिर इसमें कैसे होगा सुधार?

विशेषज्ञ समिति कुछ दीर्घकालिक उपाय और विशेष समस्याओं (जैसे मलेरिया या बाल मृत्यु) के लिए समाधान सुझाती है. इसके अलावा एक विशिष्ट राशि यानी रु 2500 प्रति आदिवासी पर हर साल या सालाना लगभग रु 27500 करोड़ केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से खर्च किए जाने की सिफारिश भी यह समिती करती है.

बाकि सिफारिशें यह हैं-

1- खाई को पाटने और 2027 तक आदिवासियों के स्वास्थ्य को राज्य के औसत स्तर पर लाने के लक्ष्य के साथ एक आदिवासी स्वास्थ्य कार्ययोजना की शुरुआत.

2- केंद्र और राज्य के कुल स्वास्थ्य बजट का 8.6% आदिवासीयों के स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया जाना चाहिए.

3- सुचारू निर्णय प्रक्रिया और संचालन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एक आदिवासी स्वास्थ्य परिषद, आदिवासी स्वास्थ्य निदेशालय और आदिवासी स्वास्थ्य अनुसंधान कक्ष की स्थापना करना.

4- आदिवासी ग्रामसभा, आदिवासी युवा, आशा, आदिवासी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों, मोबाइल आउटरीच क्लीनिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली को आदिवासी समुदायों की ओर मोड़ना.

5- आदिवासीयों को सर्वोत्तम संभव सेवा प्रदान करने के लिए पारंपरिक आदिवासी चिकित्सा, आधुनिक चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के एकीकरण की सुविधा.

6- आदिवासी स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान और विस्तृत डेटा उत्पन्न करना. इनमें शामिल है- जनजाति विशिष्ट सर्वेक्षण, आदिवासी स्वास्थ्य डेटा का संग्रह, राष्ट्रीय सर्वेक्षणों जैसे कि एनएफएचएस और सैंपल रजिस्ट्रेशन प्रणाली द्वारा जनजाति- विशिष्ट आंकड़ों और अनुमानों का समावेश, महामारी विज्ञान रिसर्च, मातृ एवं शिशु मृत्यु लेखा परीक्षण, आदिवासी स्वास्थ्य सूचकांक, वगैरह. क्या भारत सरकार और राज्य सरकार 11 करोड़ आदिवासियों के स्वास्थ्य के लिये सक्रिय बनेगी?

share & View comments