scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमएजुकेशनआईआईटी, आईआईएम की फैकल्टी हायरिंग में जाति आधारित आरक्षण सुनिश्चित हो : मोदी सरकार

आईआईटी, आईआईएम की फैकल्टी हायरिंग में जाति आधारित आरक्षण सुनिश्चित हो : मोदी सरकार

आईआईटी, आईआईएम और आईआईएसईआर फैकल्टी की हायरिंग में आरक्षण के मानदंडों का पालन नहीं करते थे. सरकार ने अब सभी शिक्षण पदों पर कोटा लागू करना अनिवार्य कर दिया है.

Text Size:

नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) में भर्ती के लिए जाति आधारित आरक्षण के विवादास्पद मुद्दे पर ध्यान देने का निर्णय लिया है.

प्रमुख संस्थानों के साथ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) फैकल्टी की हायरिंग करते समय संवैधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण मानदंडों का पालन नहीं करते थे.

हालांकि, इस हफ्ते की शुरुआत में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने वरिष्ठ पदों सहित शिक्षण पदों पर आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार के सभी तकनीकी संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम और आईआईएसईआर को एक निर्देश जारी किया है.

इसके अनुसार संविधान में प्रावधानों के अनुसार सभी सरकारी संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देना अनिवार्य है.


यह भी पढ़ें : मोदी सरकार की आईआईटी और आईआईएम की तर्ज पर लिबरल आर्ट्स विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना


संस्थानों ने पुराने डीओपीटी आदेश के माध्यम से कोटा को बायपास किया

आईआईटी और आईआईएम संपूर्णता के साथ आरक्षण लागू नहीं कर रहे थे.

उदाहरण के लिए आईआईटी केवल प्रवेश स्तर पर सहायक संकाय में दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए आरक्षण प्रदान करते हैं.

इस नए निर्देश के अनुसार संस्थानों को अब वरिष्ठ संकाय पदों के साथ-साथ प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसर पदों पर आरक्षण सुनिश्चित करना होगा. यही नियम आईआईएसईआर पर लागू होगा, केंद्र सरकार के संस्थान पूरी तरह से अनुसंधान के लिए समर्पित हैं.

वहीं दूसरी ओर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के 40 साल से अधिक पुराने आदेश का हवाला देकर, जिसमें कहा गया है कि तकनीकी पद पर आरक्षण को बढ़ाया नहीं जाएगा. आईआईएम में संकाय नियुक्ति के लिए जाति-आधारित आरक्षण का पालन नहीं किया जा रहा था.

आईआईएसईआर जो कि विशुद्ध रूप से अनुसंधान-आधारित संस्थान हैं, आरक्षण को अस्वीकार करने के लिए आदेश इसी तरह के आदेश का भी हवाला देता है. 1975 से पहले आए डीओपीटी के आदेश के अनुसार, सभी ‘वैज्ञानिक और तकनीकी’ पद जाति-आधारित आरक्षण से मुक्त हैं.

हालांकि, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अब सभी आईआईएम को फैकल्टी नियुक्त करते हुए नवीनतम निर्देश पर विचार करने के लिए कहा है. नए निर्देश ने सभी पुराने आदेशों और निर्देशों को बदल दिया है.

आईआईएम, आईआईटी में विविधता की कमी

आईआईटी और आईआईएम के संकाय में विविधता की भारी कमी है.

दिसंबर 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, एससी, एसटी और ओबीसी कुल फैकल्टी आईआईटी में केवल 9 प्रतिशत और आईआईएम में 6 प्रतिशत हैं.

आईआईटी के लिए, अधिकांश दलित, आदिवासी और ओबीसी फैकल्टी एंट्री लेवल पर हैं, जहां पर संस्थानों ने आरक्षण प्रदान किया है.


यह भी पढ़ें : आर्थिक मंदी का आईआईटी के प्लेसमेंट पर नहीं पड़ा कोई असर


आईआईएम में जहां अभी तक आरक्षण नहीं है, 90 प्रतिशत फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं. सरकार के साथ डेटा साझा करने वाले 18 आईआईएम में से (आईआईएम अहमदाबाद और इंदौर को छोड़कर), 16 में एक भी एसटी फैकल्टी का सदस्य नहीं था और 12 में एससी वर्ग से कोई प्रतिनिधित्व नहीं था. सात आईआईएम में ओबीसी संकाय नहीं था. एससी, एसटी कुल फैकल्टी का 15 प्रतिशत है.

आईआईएम में फैकल्टी आरक्षण एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. केंद्र सरकार ने अतीत में आईआईएम को जाति-आधारित आरक्षण सुनिश्चित करने का आदेश दिया था, लेकिन यह पहली बार है कि उसने इस तरह का स्पष्ट निर्देश जारी किया है और संस्थानों से इसका पालन करने को कहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments