नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा वो संविधान की धारा 124ए यानी राजद्रोह के कानून की समीक्षा करने के लिए तैयार है.
उसने अदालत से अनुरोध किया कि वह राजद्रोह के दंडनीय कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए क्योंकि उसने (केंद्र ने) इस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच के समक्ष ही हो सकता है.
केंद्र ने यह भी कहा कि वह ‘इस महान देश की संप्रभुता और अखंडता की’ रक्षा करते हुए नागरिक स्वतंत्रताओं के बारे में अनेक विचारों और चिंताओं से अवगत है.’
गृह मंत्रालय ने एक हलफनामे में औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों का जिक्र करते हुए कहा कि वह नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं और इसी भावना से 1500 अप्रचलित हो चुके कानूनों को खत्म कर दिया गया है.
चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने पांच मई को कहा था कि वह इस कानूनी प्रश्न पर दलीलों पर सुनवाई 10 मई को करेगी कि राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदारनाथ सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1962 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं.
गृह मंत्रालय के एडिशनल सेकरेट्री मृत्युंजय कुमार नारायण द्वारा दाखिल हलफनामे के मुताबिक इस विषय पर अनेक विधिवेत्ताओं, शिक्षाविदों, विद्वानों और आम जनता ने सार्वजनिक रूप से विविध विचार व्यक्त किए हैं.
हलफनामे में कहा गया, ‘इस महान देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने और उसके संरक्षण की प्रतिबद्धता के साथ ही यह सरकार राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किए जा रहे अनेक विचारों से पूरी तरह अवगत है और उसने नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों की चिंताओं पर भी विचार किया है.’
इसमें कहा गया कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है.
हलफनामे में कहा गया, ‘इसके मद्देनजर, बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर आईपीसी की धारा 124ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए जहां संवैधानिक रूप से इस तरह के पुनर्विचार की अनुमति है.’
हलफनामे के अनुसार, ‘प्रधानमंत्री इस विषय पर व्यक्त अनेक विचारों से अवगत रहे हैं. उन्होंने समय-समय पर अनेक मंचों पर नागरिक स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्ष में अपना स्पष्ट रुख व्यक्त किया है.’
इसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि विविधतापूर्ण विचारों का यहां बड़ी खूबसूरती से आकार लेना देश की एक ताकत है.
हलफनामे में कहा गया, ‘प्रधानमंत्री मानते हैं कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो हमें एक राष्ट्र के तौर पर उन औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के लिए और परिश्रम करना होगा जिनकी उपयोगिता खत्म हो चुकी है. इनमें अप्रचलित हो चुके औपनिवेशिक कानून और प्रक्रियाएं भी हैं.’
पहले दाखिल एक और लिखित दलील में केंद्र ने राजद्रोह कानून को और इसकी वैधता को बरकरार रखने के एक संविधान पीठ के 1962 के निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि ये प्रावधान करीब छह दशक तक खरे उतरे हैं और इसके दुरुपयोग की घटनाएं कभी इनके पुनर्विचार को उचित ठहराने वाली नहीं हो सकतीं.
सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
केंद्र सरकार ने हलफनामा में इस बात पर चुप्पी साधी हुई है कि धारा 124ए कानूनी रूप से वैध है या नहीं.
हालांकि, सरकार ने इसके दुरुपयोग पर उठाई गई चिंताओं को स्वीकार किया है. उसने माना है कि देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने वाले विभाजनकारी प्रकृति के गंभीर अपराधों से निपटने के लिए वैधानिक प्रावधानों की जरूरत पर अलग-अलग विचार थे, यह कानून स्थापित सरकार को अस्थिर करने के लिए कार्य करता है और कानून द्वारा अधिकृत नहीं है या प्रतिबंधित नहीं है.
भद्रा सिन्हा के इनपुट से
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