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Saturday, 21 December, 2024
होमदेश‘पद का दुरुपयोग’- CJI रमना के शुरू किए मध्यस्थता केंद्र पर क्यों छिड़ी ऑप-एड वार

‘पद का दुरुपयोग’- CJI रमना के शुरू किए मध्यस्थता केंद्र पर क्यों छिड़ी ऑप-एड वार

हैदराबाद के आईएएमसी पर विवाद की शुरुआत अधिवक्ता श्रीराम पंचू के लेख के साथ हुई, जिनका आरोप है कि न्यायाधीशों ने ‘सेवानिवृत्ति के बाद लाभ’ पाने की कोशिश की, जिसे बार के अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने खारिज कर दिया.

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नई दिल्ली: हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन एंड मीडिएशन सेंटर (आईएएमसी) की स्थापना में पूर्व और मौजूदा न्यायाधीशों की भूमिका को लेकर सार्वजनिक स्तर पर वाद-विवाद छिड़ गया है, यह विवाद पिछले महीने से बार के तीन वरिष्ठ सदस्यों के बीच जारी है.

मध्यस्थता केंद्र को लेकर यह सारा विवाद मद्रास हाई कोर्ट के एक प्रमुख मध्यस्थ और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू की तरफ से 13 जून को द वायर में लिखे गए एक ऑप-एड के साथ शुरू हुआ. पंचू ने इस लेख में काफी कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा कि ‘भारत की मध्यस्थता प्रक्रिया’ पर ‘सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कब्जा कर लेने’ का खतरे बना हुआ है.

इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि आईएएमसी, जिसका उद्घाटन पिछले साल दिसंबर में देश के चीफ जस्टिस एन.वी. रमना और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने किया था, पर न्यायाधीशों की ये प्रवृत्ति नजर आ रही है कि वे ‘न्यायिक कार्यालय का उपयोग या तो अपने पूर्व सहयोगियों को लाभान्वित करने के लिए कर रहे हैं या फिर इसे खुद के ‘सेवानिवृत्ति लाभ’ का माध्यम बना रहे हैं.’

उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि जस्टिस रमना सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के गठन के कर्ता-धर्ता थे और जस्टिस हिमा कोहली और हाल ही में रिटायर जस्टिस एल. नागेश्वर राव ट्रस्टी. उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रस्ट ने ‘स्पष्ट तौर पर तेलंगाना की राज्य सरकार से भूमि और धन मुहैया कराने की मांग की और उसने भी खुशी-खुशी उपकृत किया.

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज के. कन्नन ने इसके जवाब में लिखे एक ऑप-एड में पंचू के तर्कों का जोरदारी से खंडन किया, जिन्होंने लाइव लॉ के लिए लिखे लेख में तर्क दिया कि सरकारी निकाय जहां ‘भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद’ से ग्रस्त है, न्यायाधीश ‘स्थायी रूप से गौरवशाली संस्थान’ स्थापित कर मिसाल बन सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने भी लाइव लॉ में पंचू की ‘निराधार आशंका’ पर सवाल उठाया. द वायर ने इन लेख के कुछ अंशों को भी प्रकाशित किया.

कन्नन और शंकरनारायणन दोनों ने पंचू के इस तर्क को गलत बताया कि आईएएमसी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों को ‘सेवानिवृत्ति के बाद अनुचित लाभ’ प्रदान किए. दोनों ने इस पर जोर दिया कि यह 2017 में स्थापित एक सार्वजनिक ट्रस्ट है, जिसमें तेलंगाना सरकार की तरफ से इसके कामकाज में किसी तरह के हस्तक्षेप के बिना ढांचागत समर्थन दिया गया.

इसके बाद पंचू ने इसी रविवार को द वायर के लिए एक अन्य ऑप-एड में न्यायाधीशों के ‘कदाचारों’ और ‘कार्य को अपने सेंटर में डायवर्ट करने के लिए पद का दुरुपयोग करने’ के अपने आरोपों को दोहराया.

दिप्रिंट ने पंचू और शंकरनारायणन से संपर्क किया, लेकिन दोनों ने इस सार्वजनिक बहस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

आईएएमसी क्या है

इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन एंड मीडिएशन सेंटर का उद्घाटन पिछले साल दिसंबर में मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने हैदराबाद के बाहरी इलाके नानकरामगुडा में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की उपस्थिति में किया था.

उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई रमना ने कहा था कि आईएएमसी मध्यस्थता के लिए शीर्ष संस्थान में से एक के तौर पर उभरेगा. उन्होंने मध्यस्थता केंद्र के लिए ‘विश्व स्तरीय’ बुनियादी ढांचा मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री का आभार भी जताया.

इस साल जनवरी में सीजेआई ने रायदुर्ग में केंद्र के नए भवन के निर्माण की आधारशिला रखी थी. राज्य ने आईएएमसी के लिए भूमि चिन्हित करने के अलावा इसके निर्माण के लिए 50 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता भी दी है.

ट्रस्ट डीड के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर.वी. रवींद्रन और एल.एन. राव दोनों आजीवन न्यासी हैं और दो पदेन ट्रस्टी तेलंगाना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (जो अभी सतीश चंद्र शर्मा हैं) और राज्य के कानून मंत्री (मौजूदा समय में ए. इंद्रकरण रेड्डी) हैं. तीन-तीन साल कार्यकाल वाले ट्रस्टी भी हैं, जिनमें से एक सुप्रीम कोर्ट की जज हिमा कोहली हैं.

सीजेआई रमना को इस ट्रस्ट डीड का ऑथर कहा जाता है और जस्टिस राव एक सेवारत सुप्रीम कोर्ट जज थे जब इस केंद्र का उद्घाटन किया गया था. इस साल जून में राव की सेवानिवृत्ति पर, सीजेआई रमना ने घोषणा की कि पूर्व न्यायाधीश को आईएएमसी के आजीवन ट्रस्टी के तौर पर शामिल किया जाएगा.

‘एक मोनोपॉली बनती जा रही’

आईएएमसी के मुद्दे पर बहस पंचू के ‘थैंक्स टू अवर जजेज, डार्कनेस नाउ क्लाउड्स इंडियाज मीडिएशन प्लेइंग फील्ड’ शीर्षक वाले पहले लेख से शुरू हुई थी.

13 जून को प्रकाशित लेख में पंचू ने तर्क दिया कि एक मध्यस्थ एक न्यायाधीश की तुलना में एकदम ‘विपरीत ध्रुव’ होता है. जज तो अपना फैसला सुनाता है लेकिन मध्यस्थ दोनों पक्षों को किसी आम सहमति पर पहुंचने की सुविधा मुहैया कराता है.’

हालांकि, उन्होंने कहा कि वह ‘नए उभरते पेशे’ में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का ‘स्वागत’ करेंगे, लेकिन उन्हें लगता है कि इसके लिए ‘उनमें उत्साह होना चाहिए.’

उनके मुताबिक, आईएएमसी एक ‘काफी परेशान करने वाला’ घटनाक्रम था, सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि सीजेआई और जस्टिस राव और कोहली एक आधिकारिक प्रतिनिधि क्षमता से ‘फीस के लिए वाणिज्यिक विवादों के समाधान की पेशकश करने वाली मध्यस्थता पहल’ नहीं कर सकते थे.’

पंचू ने आगे आरोप लगाया कि ‘निर्देश’ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी)—जो ‘उच्च मूल्य वाले वाणिज्यिक और कॉर्पोरेट विवाद सुलझाता है—के जजों को दरकिनार करके दिए गए और ‘तिलक मार्ग स्थित फर्स्ट कोर्ट’ (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायाधीशों की तरफ से नए स्थापित केंद्र को रिफर किए गए.

उन्होंने यह दावा भी कि यह एक तरह से ‘मोनोपॉली’ बनाने वाला कदम है जो हर दूसरे खिलाड़ी को ‘ऐसा मौका’ देगा.

कन्नन-पंचू के बीच वाद-विवाद

सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. कन्नन 22 जून को लाइव लॉ में प्रकाशित अपने लेख ‘व्हाट द डार्क क्लाउड्स ब्रिंग—जस्ट नॉट स्टॉर्म बट रेन!’ शीर्षक से पंचू के आरोपों का खंडन करने वाले पहले व्यक्ति थे.

पंचू को ‘मेरे दोस्त श्रीराम’ के तौर पर संदर्भित करते हुए कन्नन ने इस पर जोर दिया कि वकील के पास ‘क्रॉस-चेक’ करने वाले तथ्य थे या नहीं.

कन्नन ने सवाल किया कि पंचू को इसमें पूर्व या वर्तमान न्यायाधीशों के ट्रस्टी होने में क्या समस्या नजर आई. उन्होंने सवाल उठाया, ‘हम न्यायाधीशों से अदालतों और अदालती कामकाज से इतर समय में क्या करने की उम्मीद करते हैं…पूजा स्थलों पर जाएं या शादियों में शामिल हों?’

कन्नन ने यह तर्क भी दिया कि आईएएमसी के पास 7,500 से 1 लाख रुपये का ‘फीस स्केल’ था, जिसे कई करोड़ वाले विवादों के मामले में भी बढ़ाया नहीं किया जा सकता. उन्होंने लिखा, ‘यह मध्यस्थता सत्र में मार्गदर्शन के लिए वकील अपने मुवक्किलों से जो शुल्क लेते हैं, उसका एक अंश ही है.’

पंचू के इस दावे पर कि एनसीएलटी को मामले रेफर करने के लिए कहा गया था, कन्नन ने सीधे तौर पर रिकॉर्ड चेक करने पर जोर दिया.

उन्होंने कहा कि एनसीएलटी की हैदराबाद पीठ ने अब तक केवल दो मामले आईएएमसी को भेजे हैं- जिनमें से एक उन्हें और दूसरा पंचू को सौंपा गया. जस्टिस कन्नन के लेख में दावा किया गया है कि दोनों में से कोई भी मामले मुफ्त में नहीं निपटा रहा है.

पांच दिन बाद 27 जून को द वायर ने कन्नन के लेख पर पंचू की प्रतिक्रिया को प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि सेवारत न्यायाधीशों की तरफ से मध्यस्थता केंद्र स्थापित करना नैतिक कदम है.

उन्होंने लिखा, ‘समस्या तब पैदा हुई…जब तीन अलग-अलग न्यायाधीशों ने अपने मनमुताबिक एक संगठन बनाया है, जिसमें वे न तो अदालत के प्रतिनिधि क्षमता से शामिल थे और न ही किसी अन्य आधिकारिक क्षमता से. शीर्ष अदालत ने ऐसी किसी संस्था को स्वीकार नहीं किया है.’

इस लेख में, पंचू ने स्वीकारा कि उन्होंने भी वास्तव में आएएमसी की तरफ से मध्यस्थ के रूप में एक असाइनमेंट स्वीकार किया था.

‘सुप्रीम कोर्ट पर असाधारण हमला’

28 जून के लाइव लॉ के लेख में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पंचू पर ‘सुप्रीम कोर्ट पर सबसे असाधारण हमला’ बोलने और ‘इसके कुछ बेहतरीन मौजूदा और पूर्व न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा’ को धूमिल करने का आरोप लगाया.

शंकरनारायणन इसके बाद आईएएमसी के बारे में ‘तथ्य’ सामने रखने के लिए आगे आए. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार द्वारा आवंटित भूमि जस्टिस श्रीकृष्ण समिति की 2017 की रिपोर्ट के अनुरूप थी, जिसमें कहा गया था कि आर्बिट्रेशन या मध्यस्थता केंद्र में किसी हस्तक्षेप के बिना सरकार की तरफ से ढांचागत समर्थन दिया जाना चाहिए.

न्यासियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पुष्टि की है कि उनमें से किसी को भी सिटिंग फीस या कोई पारिश्रमिक नहीं मिला है.

इसके अलावा, उन्होंने लिखा कि एक सीईओ पर दिन-प्रतिदिन के मामलों का प्रभार होता है. मध्यस्थों को संबंधित पक्षों की आपसी सहमति से नियुक्त किया जाता है और विवाद के मामले में, सीईओ गवर्निंग काउंसिल के परामर्श से एक पैनल का प्रस्ताव करता है. उन्होंने कहा कि इस सबमें ट्रस्टियों की कोई भूमिका नहीं होती है.

आखिरी ऑप-एड?

पंचू 10 जुलाई को द वायर में एक और जवाबी हमले के साथ सामने आए, जिसमें उन्होंने फिर आईएएमसी के ‘त्रुटिपूर्ण कमांड और कंट्रोल’ पर अपनी चिंताओं को दोहराया.

उन्होंने अपने आरोप को दोहराया कि ट्रस्ट ने ‘तेलंगाना सरकार से एक बड़ी राशि’ मांगी और इसे हासिल भी किया. इसमें ‘250 करोड़ रुपये’ की कीमत वाली भूमि और ‘हैदराबाद के वित्तीय जिले में 25,000 वर्ग फुट का प्रमुख वाणिज्यिक निर्मित क्षेत्र’ शामिल था.

शंकरनारायणन के इस आरोप पर कि उन्होंने शीर्ष कोर्ट पर निशाना साधा है, पंचू ने लिखा, ‘बिल्कुल नहीं, महोदय, यह केवल तीन न्यायाधीशों के कदाचारों पर केंद्रित है जिनके कार्यों से संस्था की अखंडता पर हमला होता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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