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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशप्रवासी मजदूरों ने श्रमदान करके यूपी में एक नदी को लगभग जिंदा कर दिया, इस मेहनत को देख योगी देंगे भागीरथ सम्मान

प्रवासी मजदूरों ने श्रमदान करके यूपी में एक नदी को लगभग जिंदा कर दिया, इस मेहनत को देख योगी देंगे भागीरथ सम्मान

दस साल से भी अधिक समय से सूखी पड़ी घरार नदी में प्रवासी मजदूरों के अथक प्रयास से पानी आ गया है योगी सरकार इसे बड़ी उपलब्धी मानते हुए इन्हें 'भागीरथी सम्मान' से सम्मानित करने का फैसला लिया है.

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बुंदेलखंड: पानी को तरस रहे उत्तर प्रदेश के बांदा में वापस लौटे 53 प्रवासी मजदूूरों ने अपनी कड़ी मेहनत से सूखी पड़ी घरार नदी में पानी के स्रोत फिर से खोल दिए हैं. मजदूरों की इस मेहनत की खबर उत्तर प्रदेश सरकार तक भी पहुंची और इन मजदूरों को भागीरथी सम्मान से पुरस्कृत करने की घोषणा की है. हालांकि कब इन्हें सम्मानित किया जाएगा इसकी तारीख नहीं दी गई है.

दस साल से भी अधिक समय से सूखी पड़ी इस नदी में पानी आने से इन प्रवासी मजदूरों की प्रशंसा हो रही है वहीं सरकार ने भी इसे बड़ी उपलब्धी मानते हुए इन्हें ‘भागीरथी सम्मान’ से सम्मानित करने का फैसला लिया है.

इस गांव में कुल 2000 बीघा जमीन है, जिसमें 500 बीघा जमीन मालिकों ने इन मजदूर परिवारों को बटाई पर दी हैं.

लाॅकडाउन के दौरान ये 53 प्रवासी मजदूर पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात से बदहाल हालत में खुद और अपने परिजनों के साथ सैकड़ों किलोमीटर चलकर या फिर ट्रक बस आदि की मदद से अपने गांव भांवरपुर पहुंचे.

मजदूर नदी में काम करते और जरूरत पड़ने पर गांव वालें वहीं उनके लिए खाना भी बना देते/फोटो: अनिल शर्मा

2 किलोमीटर नदी और 8 दिन की मेहनत

इस अभियान से जुड़े जल जन जोड़ों के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘नदी का यह पूरा क्षेत्र 2 किलोमीटर का है. इसमें 8 जून से 16 जून तक मजदूरों ने न केवल नदी में उग आई बेसरम घासों और पतवारों को दिन रात मेहनत कर हटाया बल्कि जमीन की छिलाई भी की जिससे नदी का बंद पड़ा स्रोत फूट गया और पानी आ गया.’

इस दौरान 100 से अधिक ट्रकों में बेसरम और कटीला झाड़ फिकवाये गये. इसके बाद नदी में तीन फुट गहरायी तक मलबा निकाला गया, अभी तक श्रमदान करते हुए सिर्फ पांच दिन हुये थे, कि नदी के तल से अचानक मलवा हटते ही  जल स्रोत फूट पड़ा, और देखते ही देखते नदी में पानी भरने लगा, यह देख प्रवासी मजदूरों सहित पूरा गांव खुशी से झूम उठा सभी ने एक दूसरे को बतासे खिलाकर मुंह मीठा किया और मजदूर खुशी में नाचने और देवी-देवताओं के जयघोष करने लगे.

मजदूरों की इस कड़ी मेहनत में गांव में ही लोगों को मोटीवेट करने वाली विद्याधाम समीती के राजा भैया ने अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने न केवल मजदूरों की वापसी का स्वागत किया ब्लिक खेती किसानी और सूखी नदी को जीवित करने के लिए प्रोत्साहित किया. राजा भैया दिप्रिंट को बताते हैं, ‘ग्रामीणों के साथ मैंने कई दिन श्रमदान किया. उन्हें बताया कि फावड़ा, कुल्हाड़ी आदि से किस तरह से नदी को जीवित किया जाए.’

उन्होंने कहा,’ हालांकि इस प्रयास में गांववालों ने श्रमदान कर रहे मजदूरों के लिए रोजाना के भोजन का इंतजाम कराया.’

jराजा भैया कहते हैं हमारा मकसद ये था कि इतनी तकलीफ झेलकर वापस लौटे प्रवासियों को गांव में कैसे रोका जाए इसको लेकर प्रयास किया. अब सरकार से सहयोग मिले यही उम्मीद है.

घाघर नदी में पानी का स्रोत फूटने में आठ दिन का समय लगा/फोटो: अनिल शर्मा

अपने गांव वापस लौटे ये 53 प्रवासी मजदूर एक दशक पहले इसी गांव में खेती करते थे. इसी घरार नदी में ये पंपिंग सेट लगाकर खेतों की सिंचाई करते थे. लेकिन पानी की कमी और कम होती फसल की वजह से ये अपना काम छोड़कर रोजी-रोटी की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन कर गए थे.

लेकिन अब जब लॉकडाउन के दौरान इन मजदूरों ने अपने गांव की तरफ वापसी की है तो वह फिर से खेती-किसानी की तरफ मुड़ गए हैं. पिछले दस वर्षों से ये पहाड़ी नदी घरार पूरी तरफ से सूख गई थी नदी में बेसरम और कटीले, खरपतवार उग आए थे लेकिन इन मजदूरों ने न केवल उन्हें हटाया बल्कि इस नदी को जिंदा कर दिया है. इसके बाद नदी में बंद पड़े जल स्त्रोत फूट पड़े, और देखते ही देखते नदी में 2-3 फुट पानी भर गया. यह देखकर प्रवासी मजदूरों और ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गयी.

इन प्रवासी मजदूरों ने जिनमें महिला और पुरूष दोनों शामिल है, एक हफ्ते में  10 साल से अधिक समय से सूखी नदी को जीवित करने और साफ सफाई में जुटे रहे और आखिर सफल हुए. बीती मई में गांव वापस आये इन मजदूरों का कहना है कि अब गांव छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे और यहीं खेती-किसानी करेंगे.

महिलाओं ने मुमकिन किया

दरअसल गांव लौटने के बाद जब गांव में इन मजदूरों को 20-25 दिन बीत गये और कोई काम नहीं मिला तो सभी ने मिलकर गांव में घरार नदी के किनारे एक बैठक बुलायी, जिसमें बबीता पत्नी महेश, रानी पत्नी रामसजीवन, चन्दा पत्नी रतीराम, ललिता पत्नी लच्छू प्रसाद, बृजरानी पत्नी नन्नू, सियाप्यारी पत्नी महेसुरा, शांन्ति पत्नी कंधी, प्यारीबाई पत्नी रामविशाल, आशा पत्नी शिवविशाल, रन्ची पत्नी रामकृपाल, चंपा पत्नी छुटटे, सुनीता पत्नी राजकुमार, रूकिया पत्नी गोपी, राजाबाई पत्नी रामलाल सभी 53 प्रवासी मजदूर मौजूद थे.

इस बैठक में यह तय किया गया कि अब इस नदी को जीवित करना है और यहीं खेती किसानी करनी है. इसमें मदद की समाजसेवी राजा भईया और उनकी टीम की मीरा राजपूत ने  मजदूरों को संबोधित किया और नदी को पुर्नजीवित करने की सलाह दी

इस बैठक सबसे बड़ी बात यह थी कि सबसे पहले महिला मजदूर बबीता ने कहा, ‘हमें श्रमदान से अपनी नदी को पुर्नजीवित करना चाहिए और जो हमारी सभी प्रवासी मजदूरों की 500 बीघा जमीन बेकार पड़ी है, अगर नदी पुर्नजीवित हो जाये तो हम यही, उस नदी के सहारे खेती कर अपनी आजीविका का प्रबंधन कर लेंगे.’

बबीता की इस बात का सभी 53 प्रवासी मजदूरों ने एक स्वर से समर्थन किया. इस दौरान महिला रिंची, बृजरानी, ललिता, प्यारीबाई ने अपने पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘एक दशक पहले हम इसी घरार नदी में 500 बीघा जमीन में खेती करते थे, खेती के सिंचाई के लिए हम पम्पिंग सेटों का इस्तेमाल करते थे.

अब समय आ गया है कि  हम फिर से खेती के बारे में सोचे और घरार नदी को पुर्वजीवित करें. महिला मजदूरों ने कहा कि हमारी उपेक्षा के चलते घरार नदी सूख गयी है.

घाघर नदी में पानी का स्रोत फूटने में आठ दिन का समय लगा/फोटो: अनिल शर्मा

सौ वर्ष पुरानी परम्परा लौटी बुन्देलखण्ड में

जैसे ही घरार नदी में जल स्त्रोत फूटने की खबर पड़ोसी गांव कछियानपुरा, महाराजपुर, बंजारा गांव में पहुची तो वहां के प्रवासी मजदूर ओमप्रकाश, वृदावन, शिवभवन, भूरा, रामकृपाल सहित 25 मजदूर फावड़ा और कुदाल लेकर आ गये और खुदाई में जुट गये.

बुन्देलखण्ड में एक परम्परा थी कि जब तालाब खुदवाये जाते थे तो श्रमदान करने वाले लोगों के लिए पड़ोसी गांव के लोग खाने पीने का सामान लेकर उत्साह बढाने के लिए आगे आते थे और स्वयं भी श्रमदान करते थे, वही ग्रामीण कीर्तन मण्डलियां मनोरंजन कर रही है. नाच गाकर खुशी जता रही है. सुबह और शाम वही नदी के किनारे पेडो के नीचे सामुदायिक रसोई बनती है और सभी श्रमदानी एक साथ सहभोज करते हैं.

इस नदी मेें अभी श्रमदान का कार्य जारी है और प्रवासीय मजदूरों ने एक दशक से छोटे गये अपने 500 बीघा खेतों पर पुनः खेती करने का संकल्प लिया.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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2 टिप्पणी

  1. Khub khub anand hua. Pritvi aur nadi hamari maa he unke pas se jivan milta he lekin bina SHRAMDAAN nahi ap logo ne ye kar dikhaya

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