उदयपुर: पिछले महीने उनके पिता अरविंद सिंह मेवाड़ की मृत्यु के बाद सत्ता के औपचारिक हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ को 2 अप्रैल को उदयपुर सिटी पैलेस के दरबार हॉल में आयोजित ‘गद्दी उत्सव’ के दौरान मेवाड़ राजवंश का 77वां संरक्षक नियुक्त किया गया.
यह उत्सव विरासत को लेकर जारी पारिवारिक विवाद के बीच हुआ, जिसने मेवाड़ के घराने को विभाजित कर दिया है. दिप्रिंट को दिए खास इंटरव्यू में, जब इस बदलाव के बाद आने वालीं चुनौतियों के बारे में पूछा गया, तो लक्ष्यराज ने राजनीतिक दावे के बजाय आध्यात्मिक विश्वास के साथ जवाब दिया.
उन्होंने कहा, “मैं केवल इतना ही कहूंगा कि पूरा ब्रह्मांड गुरु में समाया हुआ है.” सदियों से, मेवाड़ के शासकों ने इस विश्वास को कायम रखा है कि असली राज एकलिंगजी का है — जो इस क्षेत्र के शाश्वत शासक हैं.”
उन्होंने कहा, “जब आपके पास गुरु, माता-पिता और भगवान का आशीर्वाद हो, तो यह बहुत खुशी की बात है. उनके मार्गदर्शन से जिम्मेदारियां आसान हो जाती हैं. मेरा मानना है कि अगर भगवान, माता-पिता और गुरु हमारे सामने साक्षात मौजूद हों, तो यह सर, यह पगड़ी, सबसे पहले मेरे गुरु के चरणों में झुकेगी.”
उन्होंने कहा, “गुरु जो करते हैं, वह हमेशा भले के लिए होता है और हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बताए रास्ते पर चलें.”
लक्ष्यराज ने मेवाड़ के राजवंश के संरक्षक के रूप में ताज धारण करने के बोझ को खारिज करते हुए कहा, “अगर, आप ध्यान से देखें, तो इस सिर पर कोई मुकुट नहीं है और पिछले 1,500 वर्षों में कभी ऐसा नहीं हुआ.”
उन्होंने बताया, “मेवाड़ के शासक हमेशा से इसके सेवक रहे हैं, राजा नहीं. असली ताज एकलिंग नाथ जी के सिर पर है और हमारा परिवार सदियों से उनकी सेवा में लगा हुआ है.”
अपनी नई भूमिका को भार समझने की बजाय, लक्ष्यराज इसे एक चुनौती मानते हैं — जिसके लिए दृढ़ता, आत्म-सम्मान और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है, भले ही उनके आसपास की हवा का रुख क्यों न बदल जाए.
उन्होंने कहा, “जो मेवाड़ के नियम और नींव हैं, चाहे परिस्थिति, हालात, हवाएं, रुख कुछ भी हो, जो एक स्वाभिमान की सोच रहती है, उसी पर बने रहना और उस पर काम करने जैसी चुनौतियां रहती हैं. हालात और परिस्थितियां बदलती रहती है सोच नहीं डगमगानी चाहिए और उस पर कायम रहने का प्रयास रहता है.”
अतीत के राजघरानों के विपरीत, जिन्होंने जनता से दूरी बनाए रखी, लक्ष्यराज ने सोशल मीडिया और आधुनिक जुड़ाव को अपनाया है. वे खुद को “साइंटिफिक साधु” कहते हैं, एक ऐसा वाक्यांश जो कई लोगों को आकर्षित करता है.
उन्होंने बताया, “इंसानी जीवन मुझे बहुत मुतासिर करता है, मुझे पसंद है, कहीं न कहीं यह कायनात, यह दुनिया यह ब्रह्मांड जो है, वह शुरू हुए होंगे और मैं यह मानता हूं कि, वह साधु जो लोग उस दौर में रहे होंगे, वह कैसे रहे होंगे, आज इस तकनीक की दुनिया में जहां, मोबाइल, इंटरनेट है, जिसमें आप चुटकी बजाते ही इधर की बात को उधर सात समुद्र पार पहुंचा सकते हैं, तो यह पूरा सफर मुझे बड़ा दिलचस्प लगता है, तो इस वजह से मैंने “साइंटिफिक साधु” कहा, उस दौर और सफर को समझने के लिए.”
फिर भी, आधुनिकता को अपनाने के बावजूद, वे इस बात पर जोर देते हैं कि मेवाड़ के नेतृत्व का सार अपरिवर्तित है — प्रजा से सीधे जुड़े रहने में निहित है.
उन्होंने कहा, “मेवाड़ की संस्कृति हमेशा से ही घुलमिल कर रहने वालों की रही है. चाहे वह मेरे पिता हों, दादा हों या महाराणा प्रताप, वह सभी सीधे अपने प्रजा से जुड़े थे. मेवाड़ के शासक कभी भी दूर नहीं रहे.”
राजशाही और शाही परंपराएं इन दिनों वैश्विक आकर्षण बन गए हैं, लेकिन हाल ही में नेपाल में राजशाही की वापसी के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “मैं नेपाल की विशेष स्थिति पर टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन अगर यह किसी चीज़ को अनुशासनित बनाने, एक अच्छे मर्यादित दायरे में रहने के लिए किसी को प्रेरित करती है, तो यह इसमें हमें खुशी है. यह अनुशासन से बंधी हुई सोच है और उसी से चलती है.”
उन्होंने कहा, “परंपराएं, क्या है एक अनुशासन है एक गरिमा है, एक संस्कृति को ज़िंदा रखने का एक तरीका है.”
लक्ष्यराज ने यह भी कहा कि भारत में अनूठी परंपराएं हैं जिन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए.
सिंह ने कहा, “मैं जितना देश-दुनिया घूमा हूं, उस हिसाब से मैंने यह पांव छूने का कल्चर भारत के बाहर कही नहीं देखा है, वह केवल भारत देश में है, इन सभी चीज़ों को ज़िंदा रखने के लिए हमें संस्कृति से जुड़े रहना होगा तो लोग ऐसा कर रहे हैं, तो यह अच्छा है.”
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