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Friday, 22 November, 2024
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मानसिक तनाव, सोशल मीडिया में सक्रियता ने बनाया 8वीं की छात्राओं को मास हिस्टीरिया का शिकार

अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि आठवीं कक्षा की वह छात्रा जिसे देखकर दूसरे बच्चे भी हिस्टीरिया के शिकार हुए काफी दिनों से तनावग्रस्त थी. यह छात्रा इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में भी काफी सक्रिय है.

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बागेश्वर: उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित राजकीय जूनियर कन्या हाई स्कूल रैखोली में मास हिस्टीरिया का वीडियो वायरल होने के बाद अधिकारियों का कहना है कि राज्य के कई स्कूलों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिसका कारण छात्राओं में मानसिक तनाव, पोषण की कमी या फिर सोशल मीडिया के अत्यधिक सक्रियता हो सकता है. अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि आठवीं कक्षा की वह छात्रा जिसे देखकर दूसरे बच्चे भी हिस्टीरिया के शिकार हुए काफी दिनों से तनावग्रस्त थी. यह छात्रा इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में भी काफी सक्रिय है.

अधिकारियों के अनुसार 26 और 27 जुलाई को दो अलग अलग घटनाओं में स्कूल के आठ छात्र छात्राओं में अचानक ऐंठन, थरथराहट, बेहोशी, सिरदर्द, घबराहट और चिल्लाने के लक्षण दिखाई दिए. घटना का वीडियो दो दिन बाद 28 जुलाई को वायरल हुआ था, हालांकि स्कूल द्वारा इसकी जानकारी प्रशासन को तुरंत दे दी गई थी.

जानकारी मिलने के बाद अधिकारियों और चिकित्सकों के एक टीम द्वारा स्कूल का दौरा किया गया जहां उन्होंने दो छात्राओं में हिस्टीरिया के लक्षण स्वयं देखा. अब अधिकारियों और चिकित्सकों का कहना है कि बच्चे पूरी तरह से ठीक हैं लेकिन इस घटना के पीछे छात्राओं में पोषण तत्वों की कमी, मानसिक तनाव और सोशल मीडिया पर अधिक सक्रियता हो साकती है.

बागेश्वर जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) गजेंद्र सिंह सौम ने हमें बताया, ‘रैखोली कन्या जूनियर हाई स्कूल प्रशासन द्वारा मास हिस्टीरिया के लक्षणों की जानकारी मिलने के बाद चिकित्सकों और अधिकारियों की एक टीम ने 28 जुलाई को वहां का दौरा किया. दो छात्राओं को इस दिन भी हिस्टीरिया के दौरे पड़े थे जिसे टीम ने स्वयं देखा. पीड़ित छात्राओं को डॉक्टरों ने कुछ देर आराम कराया और फिर कुछ विटामिन्स और कैल्शियम की टेबलेट दिया जिससे दोनों कुछ ही मिनटों में ठीक हो गई.’

‘इन छात्राओं में आयरन और कैल्शियम की कमी की शिकायत भी सामने आयी हैं. मास हिस्टीरिया की शिकार सभी छात्राएं आठवीं कक्षा की हैं लेकिन पूर्व में ज्यादातर शिकायतें दसवीं और उससे ऊपर की छात्राओं में मिलती थी. मनोवैज्ञानिक इसे कुछ बच्चों में उनकी दबी हुई भावनाओं को जाहिर करने का जरिया भी मानते. इसकी शुरुआत किसी एक छात्रा से होती है और जल्द ही उस छात्रा से भावनात्मक लगाव रखनेवाली दूसरी छात्राएं भी संक्रमित हो जाती है. मनोवैज्ञानिक इसे मास हिस्टीरिया कहते हैं. राज्य में ऐसी घटनाएं करीब सभी जिलों से मिलती रहतीं हैं.’

बागेश्वर के एडिशनल चीफ मेडिकल ऑफिसर (ACMO) और स्कूल का दौरा करने वाली टीम के सदस्य डॉक्टर हरीश पोखरिया ने हमें बताया कि मास हिस्टीरिया के शिकार बच्चों में पोषण की कमी और मोबाइल में सोशल मीडिया के प्रति अत्यधिक सक्रियता हो सकती है.

डाक्टर पोखरिया कहते हैं, ‘हम मास हिस्टीरिया के शिकार छः बच्चों के परिजनों से उनके गांव में मिले. परिजनों का कहना है कि घर में सभी बच्चे सामान्य हैं. उनको हिस्टीरिया के दौरे स्कूल में ही पड़ते हैं. जांच में यह भी सामने आया कि जिस छात्रा से स्कूल में हिस्टीरिया के दौरों की शुरुआत हुई उसने 2-3 महीनों पहले अपने घर के पास किसी महिला के शव को देख था जिससे वह मानसिक तनाव में भी थी. यह छात्रा सोशल मीडिया में भी बहुत सक्रिय है और इंस्टाग्राम में उसका अपना एकाउंट है. दूसरे छात्रों ने बताया कि 26 जुलाई को इस छात्रा का दूसरी छात्रा के साथ किसी मोबाइल नंबर को साझा करने को लेकर आपस में नोकझोक भी हुई थी.’ डॉक्टर पोखरिया आगे कहते हैं, ‘ये बच्चे न्यूट्रिशन की कमी से भी ग्रसित हैं.’

‘ज्यादातर छात्राएं मिड डे मील के भरोसे स्कूल सुबह आ जाती हैं. वे घर से भोजन के बिना ही निकल जाती हैं. हालांकि अभी सब कुछ सामान्य है लेकिन मास हिस्टीरिया की शिकार छात्राओं के मंगलवार को छुट्टी से लौटने के बाद पता चलेगा. मंगलवार को एक मेडिकल टीम पूरे दिन इन छात्राओं को मॉनिटर करेगी. यदि हिस्टीरिया के दौरे रिपीट होते हैं तो इन बच्चों का हॉस्पिटल में एंग्जायटी का इलाज किया जाएगा.’

उत्तराखंड के डायरेक्टर जनरल (डीजी) स्कूल शिक्षा, बंसीधर तिवारी ने बताया कि विभाग द्वारा गठित जांच दल की रिपोर्ट में सभी पीड़ित छात्र छात्राओं का स्वास्थ्य सामान्य पाया गया है लेकिन स्कूल के वातावरण को और खुशनुमा बनाने पर बल दिया गया है.

तिवारी के अनुसार, ‘टीम द्वारा उक्त सभी छात्र छात्राओं का स्वास्थ्य परीक्षण कर उनके अभिभावकों की काउंसिलिंग की गई थी. इसमें स्कूल का माहौल खुशनुमा बनाने, मोबाइल का उपयोग न करने, बच्चों को तनाव से दूर रखने, उनके खान पान पर ध्यान देने और योग एवं व्यायाम पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया गया. शिक्षा विभाग के स्थानीय अधिकारियों को इस दिशा में कार्यवाही के लिए निर्देश दिए गए हैं.’


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