नई दिल्ली: हर तीन मिनट में एक भारतीय सुसाइड कर रहा हैं और अगर यह सिलसिला यूहीं चलता रहा तो लगभग 2030 तक आत्महत्या के लिस्ट में भारत सबसे टॉप पर हो सकता है. “शरीर की बीमारी सिर्फ एक व्यक्ति को ही प्रभावित करती है लेकिन आपके मेंटल हेल्थ से सिर्फ आप नहीं पूरा एक परिवार प्रभावित होता है.” दिल्ली एम्स के मनोरोग विभाग के डॉ. राजेश सागर कहते हैं, अगर हमारा शरीर बीमार होता है तो वो केवल हमें ही तकलीफ देता है लेकिन यदि हमारा दिमाग बीमार होता है, अर्थात हमारा मेंटल हेल्थ केवल हमें ही नहीं हमसे जुड़े लोगो को भी प्रभावित करता है.
मेंटल हेल्थ एक ऐसा विषय है जिस पर बात करने से हम अक्सर ही कतराते है या फिर इसे बात करने लायक विषय ही नहीं मानते है. लेकिन कोविड के दौरान और उसके बाद मेंटल हेल्थ लाइमलाइट पर आ गया है और बाकि बीमारियों की तरह इसे भी एक समस्या मानते हुए इसपर बात की जाती है.
डॉ. राजेश कहते हैं, ऐसा नहीं है मेंटल हेल्थ जैसी समस्या पहले नहीं थी फर्क बस इतना आया हैं कि कोविड-19 के बाद से यह समस्या समाज में बढ़ गयी है और लोग इसे एक बीमारी समझकर इसका इलाज करवाना चाहते है और इसपर खुलकर बात करते है.
2015 और 2016 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 13% भारतीय किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है. मानसिक स्वास्थ्य पर बात करते हुए, डॉ सुनील मित्तल, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, कॉसमॉस इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज, उपाध्यक्ष, वर्ल्ड फेडरेशन मानसिक स्वास्थ्य (डब्ल्यूएफएमएच) ने बताया कि “दुनिया में सुसाइट के होने वाले मामलों में एक-तिहाई महिला और एक-चौथाई पुरूष भारत के हैं. हर तीन मिनट में एक भारतीय सुसाइट कर रहा है. देश में मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों की कमी है.”
उन्होंने कहा कि देश में मनोचिकित्सकों की संख्या केवल नौ हजार के आसपास है और मनो वैज्ञानिक दो हजार के आसपास हैं और मेंटल हेल्थ को लेकर हमारे देश में जागरूकता की भी बहुत कमी है.
कोविड का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ा हैं और इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि यह समस्या समाज में बढ़ती ही जा रही है.
महामारी के बाद इसके बढ़ने के कारण मुख्य रूप से महामारी फैलने का भय, परिवार के सदस्यों को खोने का दुख, और सबसे बड़ा फैक्टर पैसा हो सकता है. लेकिन हमारे समाज में कम से कम 50% ऐसे कारण है जिसके वजह से हमारा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता हैं. डॉ. अनुराधा का कहना हैं, हमारे आस पास या फिर हमारे साथ हुई छोटी से छोटी घटना भी हमारे मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर सकती हैं, इसके लिए हमेशा कोई बड़ी वजह या घटना होने की जरुरत नहीं होती हैं.
किसी भी काम में मन न लगना
डॉ. अनुराधा जैन कहती हैं कि हमारे समाज में एक बड़ी परेशानी यह हैं कि कोई भी मानसिक स्वास्थ्य पर बात ही नहीं करना चाहता है और यदि कोई करता भी हैं तो उसे पागल करार दिया जाता है.
दिप्रिंट से बात-चीत में डॉ. जैन बताती हैं कि “किसी भी काम में हमारा मन न लगना, और खास कर यदि ऐसा बार बार होता है तो हो सकता है हम मेंटली डिस्टर्ब है. कोई चीज़ हमें परेशान कर रही है और ऐसी ही चीज़ो पर हम बात करने से बचते है जो आगे चलकर डिप्रेशन और एंग्जाइटी का रूप ले लेते हैं.”
उन्होंने आगे बताया कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य का असर हमारे शरीर पर भी पड़ता है जिस वज़ह से यदि हम बीमार न भी हो तो ये हमें बीमार कर देता है.
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में हेल्थकेयर पर जीडीपी का एक फीसदी खर्च होता है, जबकि बांग्लादेश हमसे ज्यादा खर्च करता है.
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ओवरथिंकिंग
डॉ. अनुराधा ने दिप्रिंट को आगे बताया कि किस तरह सिर्फ कोविड ने ही हमारे मेंटल हेल्थ पर असर नहीं किया है बल्कि इस समस्या का बढ़ने का एक मुख्य कारण सोशल मीडिया है. उनका कहना है कि आज के दौर में हम सोशल मीडिया या फिर किसी भी प्रकार के मीडिया प्लेटफार्म में जो भी देखते है, सुनते है उसका हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही गहरा असर पड़ता है. ये हमें जहां एक तरफ खुश कर सकते है तो दूसरी तरफ हमें डिप्रेशन की ओर भी ले जा सकते है.
ओवरथिंकिंग यानि कि किसी भी चीज़ को बार बार सोचना जिंदगी में शार्टकट ढूंढ़ने के तरीके इन सब चीज़ों के कारण भी समाज में मेंटल हेल्थ की समस्या बढ़ती ही चली जा रही है. हम अपने अतीत से बहार नहीं निकलना चाहते है उसे बार बार सोच कर दुखी होते है, दूसरो की तरह रहने और बनने की कोशिश हम जितना करेंगे हम मेंटली उतना ही बीमार होते जाएंगे. इसलिए ओवरथिंकिंग की जगह चीज़ो को जस का तस अपनाकर उस पर खुद काम करना बहुत जरुरी है. इससे हम और हमारे आस पास के लोग दोनों को फायदा होगा.
हेल्थ सेक्टर और कोविड
इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि कोविड-19 ने न केवल विश्वभर के हेल्थ सेक्टर को हिला कर रख दिया था बल्कि यह एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में भी सामने आया था. जहां एक तरफ कोविड से हेल्थ सेक्टर और मानव जीवन को बहुत बड़ा नुकसान हुआ तो वहीं हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि कोरोना की वजह से ही दुनिया भर के हेल्थ सेक्टर में बहुत सारे इन्नोवेशंस हुए है और बहुत नई तरह की इमरजेंसी गैजेट भी निर्मित हुए हैं.
साइकेट्रिस्ट संदीप कहते हैं कि कोरोना के बाद मेंटल हेल्थ एक बड़ी समस्या बन गई जिससे लड़ने और इसके इलाज के लिए बहुत तरह के एप्प्स, वेबसाइट डिज़ाइन किए गए. उन्होंने कहा कि एक सबसे बड़ी सुविधा यह आई कि हम बैठे बैठे भी ऑनलाइन अपने डॉक्टर से मिल सकते है बात कर सकते है.
उन्होंने कहा कि बढ़ते मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम को देखते हुए अब बहुत तरह के सेशंस किए जाते है, इससे जुड़ी काउंसलिंग होती हैं. कोरोना के आने के बाद एक बड़ा बदलाव ये भी आया हैं कि अब लोग मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेते है और इसका इलाज करवाने से हिचकिचाते नहीं है.
यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) और इंडो-अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया (आईएसीसी) ने दिल्ली में एक नए एमओयू पर साइन किया हैं जिसके तरत ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी, यूथ के जेंडर इश्यू, क्लाइमेंट जेंच, एग्रीकल्चर और एज्युकेशन जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर काम करने के साथ साथ खास तौर पर कोविड के बाद मेंटल हेल्थ पर फोकस किया जाएगा.
नज़रिया बदले खुद से प्यार करें
एमओयू में मेंटल हेल्थ पर बातचीत में डॉक्टर उपासना ने कहा कि मेंटल हेल्थ के एफेक्ट होने के बहुत सारे कारण है और शायद आगे ये कारण बढ़ते ही जाएंगे लेकिन जरुरी है इससे लड़ना, और इसकी शुरूआत हमें अपनी सोच और खुद को बदलकर ही करना होगा.
डॉ. उपासना ने कहा कि “अपने मेंटल हेल्थ को ठीक रखने के लिए जरुरी हैं कि हम चीज़ो को अपनाना और उससे लड़ना सीखे. परेशानियां जीवन में आते ही रहेंगे लेकिन हम उनसे भागने की कोशिश करेंगे तो वो हमें तकलीफ ही देंगे.” उन्होंने कहा कि किसी भी हालात में विक्टिम की तरह खुद को न देखकर हमें चीज़ो को हैंडल करने का नया तरीका ढूंढ़ना चाहिए और उसका सामना करना चाहिए.
अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए हमें सबसे पहले नेगेटिव सोचना बंद करना चाहिए कि मेरे साथ ही ऐसा होता हैं, मेरी किस्मत खराब है ऐसे ख्याल और दूसरों की तरह बनने की सोच को दूर करना होगा.
उन्होंने आगे कहा कि दूसरों से बात करना उनसे मदद लेना बहुत जरुरी है, लेकिन सबसे पहले खुद की मदद करना और खुद से प्यार करना बहुत जरुरी है.
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