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Saturday, 18 May, 2024
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सही मायने में भारत के एकमात्र वर्ल्ड क्लास एथलीट से मिलिए, और यह विराट कोहली नहीं है

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टोक्यो ओलंपिक में जेवलिन थ्रो (भाला फेंक) में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा से 2018 में जकार्ता गेम्स में पदक जीतने के बाद दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता से की गई बातचीत पढ़ें.

शेखर गुप्ता ने जकार्ता गेम्स में भारत को एशियाई खेलों में अपना पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले 21 वर्षीय जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा के साथ लंबी बातचीत की.

पेश है इसी बातचीत की विस्तृत ट्रांसक्रिप्ट, जिसे स्पष्टता के लिए थोड़ा-बहुत संपादित किया गया है.

शेखर गुप्ता (एसजी): हेलो और वाक द टॉक में आपका स्वागत है. मैं शेखर गुप्ता हूं और आज मेरे मेहमान सिर्फ एक चैंपियन नहीं है, बल्कि शायद, या फिर निश्चित तौर पर सही मायने में भारत के एकमात्र वर्ल्ड क्लास एथलीट हैं, और मैं आपको बता दूं, उनका नाम विराट कोहली नहीं है. क्योंकि क्रिकेट ही कोई ऐसा खेल नहीं है जिसे हर कोई खेलता है.

वह एक ऐसे खेल से संबंध रखते हैं जिसे सभी खेलों की जननी माना जाता है और वह है एथलेटिक्स. वैसे तो आपने अब तक अनुमान लगा लिया होगा, हमारे साथ मौजूद हैं भाला फेंकने वाले नीरज चोपड़ा.

हर थ्रो के साथ आप अपने रिकॉर्ड में सुधार करते रहे हैं. और दो या ढाई साल की अवधि में आपने आठ मीटर दूरी बढ़ाने के साथ अपने प्रदर्शन में सुधार किया है.

नीरज चोपड़ा (एनसी): हां, सर. साल 2016 में यह 82 थी और अब 88 हो गई है.

एसजी: आपने छह मीटर की दूरी बढ़ाई है. हमारे दर्शकों को समझाने के लिए यह आपकी अपनी ऊंचाई से करीब चार गुना है.

एनसी: वैसे कहने में तो छह मीटर बहुत कम लगता है. अब जब मैं 88 मीटर छू चुका हूं, तो लोग मुझसे पूछते हैं कि 90 मीटर कब पहुंचूंगा? यह कोई आसान काम नहीं है, और इसके लिए मुझे और मेहनत करनी होगी.

एसजी: हर चैंपियनशिप में अपने प्रदर्शन में सुधार करने से पहले शुरू में आप 82 मीटर के मार्क पर थे.

एनसी: जब मैंने शुरुआत की थी तो रिकॉर्ड 80 मीटर का था, जो हरियाणा के अनिल का था, और फिर केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में हरियाणा के राजेंद्र सिंह के प्रदर्शन के साथ यह बढ़कर 82.23 मीटर हो गया. इसके बाद मैंने इसे साउथ एशियन फेडरेशन (सैफ) गेम्स में और बढ़ाया.

एसजी: मुझे लगता है कि आप अब 21 साल के हो जाएंगे, है ना?

एनसी: हा, सर. और अब मेरा लक्ष्य 90 मीटर तक पहुंचना है.

‘भाला फेंक को लोकप्रियता हासिल होगी’

एसजी: अभी आप दुनिया में भाला फेंकने में छठी सबसे अच्छी दूरी का रिकॉर्ड रखते हैं, जो किसी भारतीय एथलीट के लिए एक दुर्लभ बात है. हमारे पास बहुत कम एथलीट हैं जैसे डिस्कस थ्रो विकास गौड़ा, महिला रिले टीम में पी.टी. ऊषा और कृष्णा पुनिया, मिल्खा सिंह और ऐसे ही अन्य लोग हैं.

एनसी: जेवलिन थ्रो कभी एक प्रमुख खेल नहीं रहा. लेकिन मुझे लगता है कि समय के साथ इसे लोकप्रियता हासिल होगी.

एसजी: अब जब हमारे पास खेल में आप जैसा चैंपियन है, तो लोग इस खेल के बारे में जानना शुरू कर सकते हैं. क्योंकि मैं सालों से खेल देख रहा हूं और मुझे नहीं याद कि हमारे देश में भाला फेंकने में कोई चैंपियन था. एक समय में शॉट-पुटर, हैमर थ्रोअर, डिस्कस थ्रोअर और डिकैथलीट तो हुए हैं, लेकिन भाला फेंकने वाले नहीं रहे.

क्या भारत में जेवलिन के न बढ़ने की कोई खास वजह है?

एनसी: भारत शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में हमेशा मजबूत स्थिति में रहा है लेकिन हैमर और जेवलिन थ्रो में नहीं. लेकिन अब नई टीमों के आने के साथ पहली बार ऐसी स्थिति है कि भारत में चार खिलाड़ी हैं जिन्होंने 80 मीटर का निशान पार किया है. शीर्ष चार खिलाड़ियों के साथ विश्व रैंकिंग पर नजर डालें तो भारत जर्मनी और चेक रिपब्लिक के बाद तीसरे स्थान पर है.

एसजी: यदि जेवलिन रिले हो तो लगता है कि आप पदक ले आएंगे. इस सबके बीच, हमारा रिकॉर्ड 80 के पार नहीं गया और हमारे पास चार एथलीट हैं जो उस मार्क को पार कर चुके हैं. आपको क्या लगता है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

एनसी: चीजें तब बदलीं जब राजेंद्र वासु ने बाधाएं तोड़ीं और 82 अंक को छू लिया. इसके बाद, जब मैंने इसे पोलैंड में वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में आगे बढ़ाया, तो हमें भरोसा होने लगा कि हम विश्व स्तर पर भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इसके अलावा हमारे यहां नए युवा भी आगे आ रहे हैं.

एसजी: एक धारणा थी कि कोई 80 मीटर का आंकड़ा पार नहीं कर सकता. जब एक ने रिकॉर्ड तोड़ना शुरू किया, तो फिर कई खिलाड़ियों ने ऐसा कर दिखाया.

एनसी: सर, बात यह है कि एक बार राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा तो चीजें अपने आप बदलने लगेंगी.

एसजी: तो, क्या यह एक मेंटल ब्लॉक है या फिर यह आपकी बाहों की ताकत पर निर्भर है?

एनसी: दोनों ही बातें हैं, क्योंकि खेल में शारीरिक शक्ति और मानसिक ताकत समान रूप से ही अहमियत रखती हैं. हमें दोनों को संतुलित करने की जरूरत है.

‘पब्लिक का शोर ध्यान बंटाता है’

एसजी: वैसे, भाला फेंकने से पहले आपके दिमाग में क्या चलता रहता है? क्या आप लक्ष्य के बारे में सोचते हैं या सिर्फ प्रार्थना करते हैं? क्योंकि इस खेल में हर सेकंड मायने रखता है, सब कुछ उस पल पर निर्भर करता है जब आप आगे बढ़ाते हैं.

एनसी: जहां तक मेरी बात है, मुझे बस इसे फेंकना होता है, बस सारी कड़ी मेहनत और तकनीक को ध्यान में रखते हुए. साथ ही, यह भी बहुत मायने रखता है कि पब्लिक के कारण हमारा ध्यान न बंटे.

एसजी: क्या पहले कभी ऐसा हुआ है कि आप पब्लिक के शोर से या अपने प्रतिद्वंद्वी को देखकर विचलित हो गए हों?

एनसी: अपने किसी प्रतिद्वंद्वी के प्रदर्शन को देखकर तो वास्तव में में अधिक प्रेरित होता हूं. लेकिन, शोर-शराबे और पब्लिक की मौजूदगी ने पूर्व में मेरा ध्यान बंटाया है और मेरे प्रदर्शन को प्रभावित किया है.

एसजी: एशियाई खेलों में आपने 88.06 मीटर छूकर एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया, लेकिन मैंने सुना कि आपका थ्रो थोड़ा बाईं ओर चला गया था. अगर यह एक सही थ्रो होता, तो और भी आगे जाता.

एनसी: हां, सर आप सही कह रहे हैं. यह बाईं ओर गया और थ्रो की ऊंचाई भी अधिक थी. इससे भी दिक्कत हुई. फ्लैट थ्रो के साथ यह बेहतर होता.

एसजी: तो वास्तव में भाला फेंकने की टेक्नीक क्या है? बेशक आपकी बाहों में दम है, लेकिन टेक्नीक क्या है?

एनसी: इस खेल में टेक्नीक बहुत मायने रखती है. मैंने कई पॉवरफुल जेवलिन थ्रो देखे हैं जो खराब टेक्नीक के कारण फेल हो गए. अटैक से पहले का हर सेकेंड और टेक्नीक बहुत मायने रखती है.

एसजी: आप भी इसे अटैक कहते हैं?

एनसी: हां, सर कबड्डी की तरह हम इसे भी अटैक कहते हैं. तो सर, हमें बहुत सी बातों का खयाल रखने की जरूरत होती है. हमें लाइन का भी ध्यान रखना होता है कि कहीं इसमें कोई चूक न हो जाए.

‘फास्ट बॉलिंग की तरह, लेकिन उससे अलग’

एसजी: आप अपनी दौड़ में कितनी दूरी तय करते हैं?

एनसी: मैं भाला फेंकने से पहले 29-30 मीटर दौड़ता हूं.

एसजी: क्रिकेट में एक तेज गेंदबाज की तरह?

एनसी: हां, सर.

एसजी: भाला फेंकने वाले में और तेज गेंदबाज में क्या अंतर है?

एनसी: कहा जाता है कि यह काफी हद तक एक जैसा है लेकिन एक छोटा-सा अंतर है. फेंके जाने के तरीके में अंतर है.

एसजी: आपके खेल में लगभग 6-8 प्रतिद्वंद्वी हैं. आप सबमें क्या अंतर है?

एनसी: हर किसी की अपनी टेक्नीक होती है. कोई शक्तिशाली होता है तो कोई तेज.

एसजी: आपकी तकनीक क्या है?

एनसी: सर, स्पीड और थ्रो मेरी ताकत है.

एसजी: भाले के बारे में एक बहुत ही अजीब बात है. मुझे लगता है कि यह एकमात्र ऐसा खेल है जहां मौजूदा विश्व रिकॉर्ड पहले के विश्व रिकॉर्ड की तुलना में काफी पीछे है. प्लीज, इस पर थोड़ा समझाइये क्योंकि बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं.

एनसी: हां, सर. मेरे कोच उवे होन, जो जर्मनी से हैं, अब तक के एकमात्र ऐसे जेवलिन थ्रोअर हैं जिन्होंने 100 मीटर का आंकड़ा पार किया है. पहले भाले की पकड़ अब की तुलना में बहुत अलग थी. यह आसानी से अधिक दूरी तय कर लेता था. अब, उन्होंने खेल में नियम बदल दिए हैं. क्योंकि इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन (आईएएएफ) को लगा कि यह थोड़ा जोखिम भरा है.

एसजी: जिस गति से यह (भाला) दूरी तय करता है, उसे देखते हुए दर्शकों को भी नुकसान पहुंच सकता था.

एनसी: जी बिल्कुल. और, उसके बाद चेक गणराज्य से जान जेलेज्नी आए जिन्होंने 98.48 मीटर का आंकड़ा छुआ.

एसजी: आपका मतलब है नए एथलीटों में? मतलब यह है कि भाले का वजन नहीं बदला बल्कि ग्रिप बदल दी. उन्होंने इसे आगे से भारी बना दिया है ताकि गुरुत्वाकर्षण का केंद्र बदल जाए.

आपके बाद, लोगों ने जेवलिन के बारे में और अधिक रिसर्च करना शुरू कर दिया है और उन्हें अचरज होता है कि यह कैसे हो सकता है कि नया रिकॉर्ड पहले की तुलना में बहुत पीछे है.

एसजी: आपका लक्ष्य क्या है? आप अब सिर्फ 21 वर्ष के हैं.

एनसी: मैं हर प्रदर्शन के साथ इसमें सुधार की पूरी कोशिश करता हूं. लेकिन मैं 90 मीटर का बैरियर तोड़ना चाहता हूं.

एसजी: यदि आप 90 मीटर के निशान तक पहुंच जाते हैं, तो क्या वर्ल्ड रैंकिंग में शीर्ष पर होंगे?

एनसी: हां, सर. इसके साथ ही यह गोल्ड मेडल हो सकता है.

हरियाणवी दबाव में क्यों नहीं आते

एसजी: क्या आप बड़े टूर्नामेंट के दौरान किसी दबाव में आते हैं?

एनसी: नहीं, सर. मैंने वर्ल्ड टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है लेकिन बिना किसी दबाव के अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.

एसजी: आमतौर पर, हरियाणवी लोग किसी तरह के दबाव में नहीं आते. वे दूसरों पर तो दबाव बढ़ा देते हैं लेकिन खुद दबाव में नहीं आते.

एनसी: नहीं, सर. जब हम कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं तो दबाव क्यों लें?

एसजी: आपकी दिनचर्या क्या है?

एनसी: मुख्य तौर पर सुबह से शाम तक 7-8 घंटे का प्रशिक्षण चलता है. बीच में आराम और हल्के-फुल्के खान-पान का समय होता है. कुछ दिन, जब मैं बाहर होता हूं, तो मैं अपने लिए खाना बनाता हूं. फ्री होता हूं तो दोस्तों के साथ हैंगआउट भी करता हूं.

एसजी: खाने में किसी तरह की कोई पाबंदी?

एनसी: कैंप में तो हम लोग आम तौर पर वही खाते हैं जो वहां परोसा जाता है. जब हम अपने लिए खुद खाना बनाते हैं, तो भारतीय खाना खाने की पूरी कोशिश करते हैं.

एसजी: भारतीय शिविरों में खाना कैसा है? क्या यह हेल्दी है?

एनसी: हां, सर. अब, धीरे-धीरे यह बेहतर होता जा रहा है, वास्तव में काफी बेहतर.

एसजी: क्या आप अतिरिक्त बल्किंग सप्लीमेंट लेते हैं या मांसाहारी भोजन करते हैं?

एनसी: मैं धीरे-धीरे मांसाहारी खाना खाने लगा हूं क्योंकि यूरोप में बहुत मुश्किल हो जाता है, और ज्यादातर टूर्नामेंट वहीं होते हैं. हम अपना खाना नहीं ले जा सकते और इसके कारण अपना प्रदर्शन प्रभावित नहीं होने दे सकते. तो हम वही खाते हैं जो हमें मिलता है. हमें अब इसकी आदत भी हो गई है.

एसजी: अपने कंधे की देखभाल के लिए क्या करते हैं? ज्यादातर तेज गेंदबाजों के कंधे तो अक्सर चोटिल होते रहते हैं.

एनसी: हमेशा चोट लगने का डर रहता है. हम सिर्फ फिजियोथेरेपिस्ट और अपने कोच से सुझाव लेते हैं. वे हमारी प्रतिरोधक बढ़ाने की कोशिश करते रहते हैं और हमारी मदद भी करते हैं.

एसजी: इसके लिए आपको बहुत ताकत लगाने की जरूरत पड़ती है. तो, जब आप दौड़ रहे होते हैं, तो आपकी गति क्या होती है?

एनसी: वास्तव में कभी इसे देखा नहीं, लेकिन मैं अधिकतम गति से दौड़ने का प्रयास करता हूं.

एसजी: चूक होने की कितनी संभावना होती है?

एनसी: मैं बहुत फाउल करता हूं और बहुत गिरता भी हूं.

एसजी: कृपया ऐसा खतरा न उठाएं. अब आप एक नेशनल एथलीट हैं.

एसजी: मुझे अपने थ्रो के एंगल तो दिखाइए.

एनसी: (इसका प्रदर्शन करते हैं)

एसजी: आपकी टीम अब वास्तव में अच्छा कर रही है, कम से कम एशियाई स्तर पर. मुझे अपने कोच उवे होन के बारे में कुछ बताइए, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जेवलिन थ्रोअर भी हैं.

एनसी: वे बहुत शांत स्वभाव के व्यक्ति हैं, वह अपने एथलीटों के अलावा ज्यादा किसी से नहीं मिलते. वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था. वह करीब 22-23 वर्ष के थे जब उन्होंने रिकॉर्ड बनाया था लेकिन चोट लगने के कारण उसका करियर बहुत छोटा रहा. अगर ऐसा नहीं होता तो वह मीलों आगे निकल जाते.

एसजी: हमें उनके प्रशिक्षण के तरीके के बारे में बताएं.

एनसी: वह ताकत पर बहुत ध्यान केंद्रित करते हैं. पहले गैरी कैल्वर्ट हमारे कोच थे और उन्होंने फिटनेस पर ध्यान दिया, जैसे दौड़ना और इसी तरह की चीजें. लेकिन उवे हमें भारोत्तोलन और उस तरह की चीजें कराते हैं. उनका स्टाइल गैरी से अलग है.

एसजी: और टेक्नीक में क्या अंतर है?

एनसी: वह थ्रो से पहले अपने शरीर को पीछे की ओर झुकाते हैं और मैं थ्रो से पहले अपने शरीर को स्विंग करता हूं. मेरा मानना है कि अगर मैं पीछे की ओर झुकूंगा तो इससे मेरी गति प्रभावित होगी.

एसजी: क्या आपको हवा की दिशा के मुताबिक प्रशिक्षित किया जाता है? क्या इससे कुछ बदलाव आता है?

एनसी: वे हमें प्रशिक्षित करते हैं, लेकिन मैं वही करता रहता हूं जो मैं कर पाता हूं और अपना 100 प्रतिशत देता हूं.

एसजी: क्या कोच आपको इन सब बातों के बारे में नहीं बताते हैं?

एनसी: वह बताते हैं, लेकिन एक बार जब मैं मैदान पर होता हूं तो मेरे दिमाग से सब कुछ निकल जाता है.

विदेशी कोचिंग के लाभ

एसजी: क्या आपने अपनी कोई टेक्नीक विकसित की?

एनसी: मेरे सीनियर जयवीर ने मुझे जो सिखाया, मैं उसी का पालन करता हूं.

एसजी: क्या आपको विदेशी कोचिंग से कोई लाभ मिला है?

एनसी: हां, यह बहुत मददगार है क्योंकि उन्हें विश्व चैंपियन की निगरानी में ट्रेनिंग मिली होती है या हमारे कोच की तरह खुद विश्व चैंपियन हैं. वे बेहतरीन टेक्नीक के साथ आते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि अगर हम देश से बाहर हैं, तो हमें विश्व स्तर के एथलीटों के साथ काम करने का मौका मिलता है.

एसजी: आमतौर पर, आपका प्रशिक्षण कहां होता है?

एनसी: यह आमतौर पर पटियाला स्थित राष्ट्रीय खेल संस्थान में होता है लेकिन अक्सर, अगर हम भारत से बाहर हैं, तो ट्रेनिंग यूरोप में होती है.

एसजी: आप साल में कितनी बार उवे होन से मिलते हैं?

एनसी: पटियाला या यूरोप में प्रशिक्षण सत्र के दौरान वह आमतौर पर हमारे साथ ही होते हैं. वैसे मैं इसी साल उवे से जुड़ा हूं.

एसजी: आप सेना में क्यों शामिल हुए और इसने आपको क्या सिखाया?

एनसी: विश्व जूनियर चैंपियनशिप से लौटने के बाद मुझे सेना के अलावा कहीं अन्य से ऑफर नहीं मिला. मेरी आर्मी में गहरी दिलचस्पी भी है. हरियाणा के तमाम लोग हैं जो सेना में शामिल हुए हैं.

एसजी: क्या आपके परिवार का कोई सदस्य सेना में है?

एनसी: नहीं, सर. मैं पहला हूं. अब मुझे सेना की तरफ से काफी मदद मिल रही है. वे खेलों के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं.

एशियाड में वह पाकिस्तान मोमेंट

एसजी: जब आपने एशियाई खेलों में पदक हासिल किया, तो आपने अपने पाकिस्तानी प्रतिद्वंद्वी के प्रति बहुत ही अच्छा हाव-भाव दर्शाया. मैंने इसकी बहुत सराहना की, मैंने इसे ट्वीट भी किया और कहा कि यह स्पोर्ट्समैन स्पिरिट है. मुझे उन पलों के बारे में कुछ बताएं.

एनसी: जरूर, सर. मैं बीच में खड़ा हुआ और पाकिस्तानी और चीनी दोनों खिलाड़ियों से हाथ मिलाया. लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ी के साथ फोटो वायरल हो गई क्योंकि भारत-पाकिस्तान का रिश्ता एकदम अलग ही है.

एसजी: भारत और चीन के बीच भी वही बात है.

एनसी: यह सच है. यह सबसे अहम है कि हम खेल भावना को सर्वोपरि रखें. हार-जीत तो खेल का हिस्सा है.

एसजी: मुझे आपके साथ यह चर्चा खत्म करने का मन नहीं है क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है कि हमें किसी एथलेटिक चैंपियन के साथ बातचीत करने का मौका मिले. आपके कोच की क्या सलाह आपके लिए सबसे खास है?

एनसी: वह इस बात पर जोर देते रहते हैं कि मुझे वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने की जरूरत है, लेकिन उन्होंने कभी आंकड़ों का जिक्र नहीं किया. इसलिए, मैं इसे हमेशा ध्यान में रखता हूं.

एसजी: क्या वह आपको डांटते हैं?

एनसी: नहीं. मैं उनके सभी निर्देशों का पालन करता हूं.

एसजी: लेकिन जब एशियाई खेलों के दौरान आपका भाला बाईं ओर चला गया, तो क्या उन्होंने कुछ नहीं कहा?

एनसी: उस समय तो नहीं, लेकिन जब मैंने कॉन्टिनेंटल कप के दौरान फाउल किया था तो उन्होंने मुझे डांटा था. लेकिन, बाद में उन्होंने यही कहा कि चिंता मत करो और यह सब होता रहता है.

एसजी: उन्होंने आपको अंग्रेजी में डांटा था या जर्मन में?

एनसी: उन्होंने मुझे अंग्रेजी में डांटा…लेकिन मुझे ठीक से याद नहीं कि उन्होंने क्या कहा.

एसजी: अभी जब आप केवल 21 वर्ष के हैं, तो आपके पास और रिकॉर्ड तोड़ने के लिए चार से छह साल हैं. कोई ऐसा रिकॉर्ड कायम कीजिए जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखें. कुछ वैसा जैसा मिल्खा सिंह ने 50 साल पहले किया था.

एनसी: वैसे इस एशियाई खेलों में हमने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया.

एसजी: सही बात है. खासकर इस साल हमारे भारतीय पुरुष धावक काफी अच्छे रहे हैं.

एनसी: महिला धावक भी.

एसजी: भारत में महिला धावक हमेशा से बेहतर रही हैं. साथ ही ड्रग्स की समस्या भी घटी है.

एनसी: हां, सर. वित्तीय संकटों के बीच भी यह सब हो रहा है.

एसजी: अपना खयाल रखें नीरज. आपको अभी मीलों आगे जाना है. अगर कोई भारतीय नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड लिस्ट में शामिल हो जाए तो बहुत अच्छा होगा.

एनसी: जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड है और मैं सीनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हासिल करने की पूरी कोशिश करूंगा.

एसजी: ऑल द बेस्ट, नीरज.

(इस बातचीत को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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