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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशकिताब में दावा—पुलवामा के बाद डोभाल के ऑफिस और रॉ ने ISI से बात करने के लिए 2 विदेशी पत्रकारों पर भरोसा किया

किताब में दावा—पुलवामा के बाद डोभाल के ऑफिस और रॉ ने ISI से बात करने के लिए 2 विदेशी पत्रकारों पर भरोसा किया

पत्रकार एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट-क्लार्क ने अपनी नई किताब में दावा किया है कि पाकिस्तान ने 2019 के पुलवामा हमले में शामिल होने की बात से इनकार किया, लेकिन इस पर भारतीय एजेंसियों को विश्वास नहीं हुआ.

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नई दिल्ली:  2018-19 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के दफ्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने दो विदेशी पत्रकारों—एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट-क्लार्क के माध्यम से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के अधिकारियों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान किया था. इन दोनों पत्रकारों की तरफ से लिखी गई किताब में यह दावा किया गया है.

किताब के अनुसार, फरवरी 2019 में पुलवामा हमले, जिसमें सीआरपीएफ के लगभग 40 जवान शहीद हो गए थे, के बाद बैक-चैनल बातचीत भी हुई थी.

किताब में दावा किया गया है कि आईएसआई अधिकारियों ने यह कहते हुए खुद को इस हमले में संलिप्तता से दूर कर लिया कि इसकी साजिश अफगानिस्तान में रची गई थी. उन्होंने भारत के आरोपों का भी खंडन किया कि एक कश्मीरी आत्मघाती हमलावर आदिल डार को पाकिस्तान ने ‘प्रशिक्षित करके भेजा था.’

इसी सप्ताह रिलीज होने जा रही किताब स्पाई स्टोरीज: इनसाइड द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ द रॉ एंड आईएसआई का दावा है कि भारतीय एजेंसियों ने पाकिस्तान की बातों पर भरोसा नहीं किया और कहा कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी गुट जैश-ए-मोहम्मद ने ही कथित तौर पर ‘डार को हथियार मुहैया कराए’ थे और इसलिए वही हमले के लिए जिम्मेदार है.

पत्रकारों ने आगे लिखा कि इस्लामाबाद ने यह भी दोहराया कि ऐसे किसी हमले को अंजाम देने से पाकिस्तान के लिए ‘पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में ग्रे लिस्ट से ब्लैकलिस्ट में जाने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा’ और ‘काली सूची में डाले जाने की आशंका को इस हमले में पाकिस्तान की कोई प्रत्यक्ष भागीदारी न होने का जोरदार कारण करार दिया’. हालांकि, भारतीय एजेंसियों ने इन सब बातों पर भरोसा नहीं किया.

पत्रकारों का दावा है कि उन्होंने आईएसआई के पूर्व सी-विंग प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नुसरत नईम; पूर्व रॉ प्रमुख राजिंदर खन्ना, जो अब डिप्टी एनएसए हैं और सैन्य रक्षा अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल विनोद खंडारे के साथ बातचीत की थी.

किताब में कहा गया है कि पाकिस्तान की तरफ से यही दावा किया गया कि उसका जैश से कोई लेना-देना नहीं है.

ऐसे ही एक वाकये का जिक्र करते हुए पत्रकारों ने लिखा है कि जब वे बातचीत कर रहे थे तभी ‘पाक खुफिया एजेंसी के एनालिसिस सेक्शन ए विंग से एक आईएसआई अधिकारी की तरफ से कुछ संदेश आए, जिसमें जोर देकर कहा गया था कि जैश आईएसआई के निशाने पर है और वह आतंकियों के ‘सफाये की लिस्ट’ में है.

किताब के मुताबिक, ‘हमने इसमें से एक संदेश खंडारे को पढ़कर सुनाया, जिसमें कहा गया था—पिछले सोलह सालों से जैश की तरफ से बार-बार मुशर्रफ और कई अन्य अधिकारियों को मारने की साजिश रचे जाने की कोशिशों के बीच आईएसआई उसके आतंकियों को ढूंढ़कर रही है और मार गिरा रही है. ये न भूले कि वे हमारे क्रॉसहेयर हैं.’

हालांकि, किताब में किए गए दावे के मुताबिक खंडारे इससे असहमत थे.

किताब में खंडारे के हवाले से लिखा गया है, ‘आप जानते हैं कि आतंक का कोई कारण या मौसम नहीं होता है. साजिशों के बीज बो दिए जाते हैं और फिर इंतजार किया जाता है. फिर एक छोटे से इशारे पर उन्हें रॉकेट की गति से अंजाम दे दिया जाता है. किसी अमानवीय कृत्य को सिर्फ घटना के समय के आधार पर मत आंकिए. पाकिस्तान को उसके रिकॉर्ड के आधार पर जज करें. पुलवामा हमलावर आदिल डार एक कश्मीरी था. यह बात सही है. लेकिन वह एक ऐसे संगठन से प्रभावित था, जिसका ठिकाना पाकिस्तानी सरजमीं पर है…’

लेखकों के मुताबिक, एनएसए अजीत डोभाल ने उन्हें ‘आश्वास्त’ किया था कि पुलवामा पर एक रिपोर्ट आ रही है और यह आईएसआई की संलिप्तता का ‘खुलासा’ कर देगी.

लेखकों के मुताबिक, भारत ने तब बालाकोट हवाई हमले किए थे, जिसे डोभाल ने कथित तौर पर ‘भारत के लिए जरूरी’ बताया था.

डोभाल के हवाले से लिखा गया है, ‘जो बात वास्तव में मायने रखती है वह यह ऑपरेशन ही है, जिसने बता दिया कि भारत ने अपना रणनीतिक आकलन बदल दिया है.’


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‘डर्टी पुलिस’

2016 के पठानकोट एयरबेस हमले, जिसमें सात सुरक्षाकर्मी मारे गए थे, के बारे में चर्चा करते हुए लेखकों का दावा है कि ‘भ्रष्ट स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर एयरबेस की छानबीन करने का संदेह था.’

किताब में दावा किया गया है, ‘जैश ने 350 किलो विस्फोटक के लिए भुगतान किया था, लेकिन वे भारत में खरीदे गए थे और इन्हें ढोकर वहां पहुंचाए जाने के लिए भारत की तरफ के छापेमारी दल की प्रतीक्षा की जा रही थी. भ्रष्ट स्थानीय पुलिस अधिकारियों सहित भारतीय सहयोगियों पर एयरबेस को खंगाले जाने का संदेह था.’

लेखकों के अनुसार, एक ‘डर्टी’ पुलिस कर्मचारी ने ऐसा क्षेत्र खोज लिया था जो ‘कई खामियों’ के कारण इसके मुफीद था, जहां फ्लडलाइट्स खराब थी और सीसीटीवी कैमरों की भी कोई कवरेज नहीं थी. किसी प्रकार का कोई निगरानी उपकरण नहीं था और चारदीवारी के बगल में एक बड़ा पेड़ उग आया था जिसे एक लिखित रिपोर्ट में सुरक्षा खतरे के रूप में पहचाना भी गया था.

लेखकों के मुताबिक, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक अधिकारी ने उन्हें यह भी बताया था कि पुलिस अधिकारी या उनके सहयोगियों में से किसी ने ही ‘ऊपर चढ़कर रस्सी बांधी थी.’

आईबी अधिकारी के हवाले से बताया गया है, ‘हमलावरों ने इसका इस्तेमाल 50 किलो से अधिक गोला-बारूद, और 30 किलो ग्रेनेड, मोर्टार और एके-47 वहां पहुंचाने के लिए किया.’

किताब में यह भी कहा गया है कि लगातार चेतावनियों के बावजूद तमाम सुरक्षा उपायों का कुछ ‘अता-पता नहीं’ था.

लेखकों ने उन्हें जानकारी देने वाले एक बीएसएफ अधिकारी को उद्धृत किया, ‘पंजाब सीमा पर 91 किलोमीटर से अधिक इलाके में बाड़ नहीं लगाई गई थी. कम से कम चार रिपोर्टों ने सुझाव दिया था कि नदियां (और सूखी खाड़ियां) असुरक्षित ठिकाने बनी हुई हैं, लेकिन वहां पर कोई जाल नहीं लगाया गया. छह लिखित अनुरोधों के बावजूद अतिरिक्त गश्त का कोई इंतजाम नहीं किया गया था. निगरानी की तकनीक और मूवमेंट ट्रैकर्स भी तैनात नहीं किए गए थे. यहां बीएसएफ जवानों की संख्या कम थी क्योंकि उसने सारा ध्यान कश्मीर में अपनी गतिविधियों पर केंद्रित कर रखा था, और जवानों की मांग किए जाने के उसके अनुरोधों को बार-बार नजरअंदाज कर दिया गया था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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