लखनऊ: इसमें शायद ही किसी को शंका हो कि सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन की कोच और कप्तान मायावती ही हैं. सीट बंटवारे में भी ये साफ दिखा. जानकार कयास लगाते रहे कि पिछले चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर ही सीटें तय होंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने संगठन की ताकत व तैयारियों का ध्यान रखते हुए अपनी सीटों का चुनाव किया.
यही कारण है कि सीट बंटवारे में लगभग दो दर्जन सीटें ऐसी रहीं जिन पर पिछले चुनाव में नंबर 2 पर होने के बावजूद उस दल के खाते में वह सीट नहीं गई. बताया जा रहा है इसके पीछे जातीय समीकरण व उम्मीदवार की साख अहम फैक्टर है. जैसे की गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) सीट पर बसपा पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर थी, लेकन स्थानीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए माया ने इसे अपने खाते में ले लिया. वहीं सपा-बसपा गठबंधन में पांच सीटें ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस पिछले चुनाव में नंबर 2 पर थी वे सपा के खाते में गई हैं. इसके पीछे क्या कारण है ये तो फिलहाल स्पष्ट नहीं, लेकिन सपा से जुड़े सूत्र कह रहे हैं कि ये ‘बहन जी’ की इच्छा थी.
इन लोकसभा सीटों पर नंबर 2 पर थी कांग्रेस
कुशीनगर
सहारनपुर
गाजियाबाद
बाराबंकी
कानपुर
लखनऊ
सहारनपुर के अलावा बाकि सभी सीटें सपा के खाते में गई हैं. इन सीटों पर कांग्रेस का अभी भी काफी प्रभाव है. इनमें लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी व कुशीनगर सीट पर ‘प्रियंका फैक्टर’ भी अहम साबित हो सकता है. वहीं कांग्रेस से जुड़े सूत्र कहते हैं कि अभी पूरी तरह से ‘गठबंधन’ की संभावना खत्म नहीं हुई हैं. अगर गठबंधन नहीं भी हुआ तो कुछ सीटों पर कांग्रेस व सपा ‘म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग’ के आधार पर चुनाव लड़ेंगे, ताकि अल्पसंख्यक वोट का बिखराव न हो.
हालांकि, कई जानकार ये भी कह रहे हैं कि अगर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी में सहमति बनी तो सपा अपने हिस्से की 5 सीटें कांग्रेस को दे सकती है. ये वो 5 सीटें हैं, जहां 2014 में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी. इसके बदले में कांग्रेस भी सपा के लिए कुछ सीटें छोड़ सकती है. वहीं कुछ सीटों पर बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए जातीय समीकरण के आधार पर उम्मीदवार खड़ा सकती है, जिसका लाभ महागठबंधन को मिलेगा.
छोटे दलों पर नज़र
बीजेपी से नाराज़ चल रहे अपना दल, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, शिवपाल यादव की प्रसपा, राजा भैया की जनसत्ता दल, निषाद पार्टी, पीस पार्टी व आम आदमी पार्टी का जल्द रुख स्पष्ट होने की उम्मीद है. सपा-बसपा गठबंधन में जगह न मिलने के कारण इनमें से कई दल कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं. उपचुनाव में सपा-बसपा को समर्थन देने वाली निषाद पार्टी व पीस पार्टी इस बार अपना रुख बदल सकती हैं.
ऐसे हुआ सीटों का बंटवारा
बहुजन समाज पार्टी की 38 सीटें- सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा, फतेहपुर सीकरी, आंवला, शाहजहांपुर, धौरहरा, सीतापुर, मिश्रिख मोहनलालगंज, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, जालौन, हमीरपुर, फतेहपुर, अम्बेडकरनगर, कैसरगंज, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीरनगर, देवरिया, बांसगांव, लालगंज, घोसी, सलेमपुर, जौनपुर, मछलीशहर, गाजीपुर, भदोही.
समाजवादी पार्टी की 37 सीटें-कैराना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, गाजियाबाद, हाथरस, फिरोज़ाबाद, मैनपुरी, एटा, बदायूं, बरेली, पीलीभीत, खीरी, हरदोई, उन्नाव, लखनऊ, इटावा, कन्नौज, कानपुर, झांसी, बांदा, कौशाम्बी, फूलपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, फ़ैजाबाद, बहराइच, गोंडा, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, आजमगढ़, बलिया, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और राबर्ट्सगंज सीट से सपा चुनाव लड़ेगी. वहीं मुज़्ज़फरनगर, बागपत व मथुरा में आरएलडी चुनाव लड़ेगी.
रिज़र्व सीटें ज़्यादा बसपा के खाते में
यूपी में कुल 17 रिजर्व सीटें हैं. सपा-बसपा के बीच हुए इस बंटवारे में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर बसपा ज्यादा मजबूत है. इसी कारण इनमें से बीएसपी के हिस्से में 10 तो सपा के हिस्से में सात सीटें आईं हैं. इसके अलावा 2014 में जिन पांच लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी, वे भी उसी के ही हिस्से में ही आई हैं.
वीआईपी सीटों पर सपा करेगी मुकाबला
रायबरेली-अमेठी को कांग्रेस के लिए छोड़ा गया है. वहीं पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चुनौती देने के लिए सपा कैंडिडेट उतारेगी. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखपुर, उद्योग नगरी कानपुर, इलाहाबाद, फैजाबाद और लखनऊ जैसी चर्चित सीटों पर भी सपा चुनाव लड़ेगी. खास बात ये है कि बरेली, लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद और कानपुर ऐसी शहरी लोकसभा सीटें हैं, जहां सपा को अभी तक जीत नहीं मिली हैं. इसके राजनीतिक मायने ये भी निकाले जा रहे हैं कि सीट बंटवारे के वक्त ‘बुआ जी’ ने अपने गढ़ व संगठन की तैयारी का पूरा ध्यान रखा, लेकिन ‘भतीजे’ के लिए राह अपनी अपेक्षा थोड़ी ज्यादा चैलेंजिंग बना दी.