नई दिल्ली: दुनिया कोविड-19 की वैक्सीन खोजने के लिए साथ आ रही है. सभी की निगाहें भारत पर हैं क्योंकि भारत वैक्सीन निर्माण का पावरहाउस है.
भारत दुनिया के 60 प्रतिशत टीकों का उत्पादन करता है और संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक वैक्सीन खरीद का 60-80 प्रतिशत हिस्सा है, दुनिया भर में टीकों के उत्पादन और वितरण के लिए कई भारतीय कंपनियों ने भी मदद की है.
भारत बायोटेक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ कृष्णा एला ने कहा, ‘दुनिया भारत की ओर देख रही है. कोविड-19 एक अनूठी चुनौती है, कंपनी टीम के साथ काम और वैश्विक भागीदारी सभी के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीका उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण होगी.’
पिछले महीने, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि अमेरिका और भारत कोविड-19 थेरेपी और टीके पर एक साथ काम कर रहे हैं.
वर्तमान में भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और जाइडस जैसे शीर्ष वैक्सीन निर्माता ही नहीं जो कोरोनोवायरस वैक्सीन विकसित करने के लिए होड़ में रहे हैं. यहां तक कि गुरुग्राम स्थित प्रेमास बायोटेक, अहमदाबाद स्थित हेस्टर बायोसाइंसेस और स्टार्ट-अप्स न्युबर्ज सुपेर्टेक और माइनेवैक्स जैसी कंपनियां भी इन प्रयासों में शामिल हुई हैं.
अनंत भान मंगलुरु के येनेपोया विश्वविद्यालय में बायोएथिक्स में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता ने कहा विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय निकायों के लिए ‘भारत टीके का ज्यादा निर्माण करता है, यह निश्चित रूप से जब भी यह तैयार होता है इसका लाभ उठाया जा सकता है.’
उन्होंने कहा, भारत इन टीकों की कीमत कम करने में मदद करेगा. ‘भारत अपनी उत्पादन क्षमता के कारण न्यूनतम, जितना संभव होगा के कीमत पर बेचने वाला एकमात्र देश होगा. उचित मूल्य ही विश्व भर में कोविड-19 वैक्सीन की पहुंच सुनिश्चित करने का एकमात्र कारक होगा.
एक व्यापक वैश्विक नेटवर्क स्थापित किया
वैक्सीन की बनाने की दौड़ में भारत के पक्ष में जो बात जाती है वह यह है कि वैश्विक वैक्सीन उद्योग में कई प्रमुख भारतीय फर्म शामिल हैं.
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया भर में उत्पादन और बेची जाने वाली दवा की संख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है. मुख्य रूप से पुणे में दो ब्रांच के साथ 50 वर्षीय यह पुरानी कंपनी हर साल 15 बिलियन दवाइयां बनाती है.’
यह पोलियो, डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस और बीसीजी (बेसिलस कैलमेट-गुएरिन) जैसे कई प्रकार के टीकों के बनाने में माहिर है. कंपनी के मुताबिक, इसके टीकों का इस्तेमाल दुनिया भर के करीब 170 देशों में उनके राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए किया जा रहा है.
अन्य भारतीय फर्मों ने महामारी के जवाब में अनुभव साबित किया है. हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने अब तक 16 वैक्सीन का व्यवसायीकरण किया है, जिसमें एच 1 एन 1 फ्लू भी शामिल है, जो 2009 में महामारी का कारण बना था.
एला ने कहा, ‘वह दुनिया में अमेरिका के पहले ज़ीका वैक्सीन के बारे में भविष्यवाणी करने, काम करने और पेटेंट कराने वाली पहली कंपनी थी. इसलिए, वायरल खतरों की पहचान करना भारतीय बायोटेक उद्योग का एक हिस्सा रहा है, जो हमें बहुत ताकत देता है.’
कंपनी के लगभग 90 प्रतिशत टीके निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बेचे जाते हैं. यह 160 वैश्विक पेटेंट की मालिक है और 65 से अधिक देशों में उत्पाद बेचती है.
एक अन्य फार्मा दिग्गज अहमदाबाद स्थित जाइडस समूह, जो 2010 में प्रकोप के दौरान स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए सबसे पहले विकसित और स्वदेशी रूप से वैक्सीन का निर्माण करने वालों में थी. यूरोप में अपनी शोध शाखा, एट्ना बायोटेक के माध्यम से कोविड-19 वैक्सीन भी विकसित कर रही है.
कंपनी अपनी मजबूत विनिर्माण सुविधाओं पर दांव लगा रही है, जो एक बार प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट स्थापित होने के बाद टीको के लिए उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने में सक्षम होगी.
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प्रेमास बायोटेक ने अपने वैक्सीन के लिए अमेरिका एकेर्स बायोसाइंसेज को लाइसेंस दिया है. प्रेमस टीका विकास के लिए पुनः संयोजक प्रोटीन बनाने में माहिर है. ये प्रोटीन सार्स-सीओवी-2 वायरस पर तीन प्रोटीनों को टारगेट करते हैं. स्पाइक प्रोटीन, एन्वेलप प्रोटीन और मेम्ब्रेन प्रोटीन, तीनों को टारगेट करने की क्षमता वैक्सीन को मज़बूती प्रदान करती है.
‘भारत कर्व से आगे है, इसे आगे जाना चाहिए’
उद्योग का यह भी मानना है कि भारत कोविड-19 कर्व से आगे है और टीके के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. एला ने कहा, ‘भारत निश्चित रूप से कर्व से आगे है, उन्होंने सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा सरकार ने नियामक मानदंडों और कंपनियों का साथ दिया है, इन्हें विकास के हर चरण में समर्थन की आवश्यकता है.’
डॉ प्रबुद्ध कुंडू प्रबंध निदेशक प्रेमसु बायोटेक ने कहा, ‘भारत को एक नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए और इस महामारी में एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में खुद को स्थापित करना चाहिए.’ बड़े पैमाने पर विनिर्माण, उचित वैक्सीन देने के लिए तेजी से अनुमोदन, दिशा-निर्देश और सामूहिक ज्ञान को सक्षम करना चाहिए.’
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने दिप्रिंट को पहले बताया था कि ‘देश के बड़े वैक्सीन निर्माताओं के पास पहले से ही वितरण नेटवर्क हैं. वे बहुत जल्दी दुनिया भर में पहुंच सकेंगे, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया उत्पादन शुरू करने का जोखिम उठा रहा है इससे पहले कि जब टीका क्लीनिकल परीक्षणों तक पहुंचा है.
सहयोग और साझेदारी
महामारी से निपटने के लिए टीका सबसे लंबी अवधि की रणनीति है, हालांकि कोरोनोवायरस उन सभी उपभेदों के लिए टीका हैं, जिन्हें हम अभी तक जानते हैं जैसे कि एसएआरएस, एमईआरएस और यहां तक कि सामान्य सर्दी. ये तेजी से उत्परिवर्तन के कारण विकसित करने के लिए कुख्यात है. म्यूटेशनों को बनाए रखने के लिए हर साल टीकों को परिष्कृत करने की उम्मीद की जाती है.
भारतीय बायोटेक कंपनियों द्वारा टीके के विकास के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संगठनों और वायरोलॉजिस्ट के साथ सहयोग में के साथ है.
एक बार टीके का विकास समाप्त हो जाने के बाद भारतीय कंपनियों को दुनिया भर में बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण में तेजी लाने की कला में महारत हासिल है.
सहयोग का नमूना
एक अग्रणी भागीदार ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय कोविड-19 वैक्सीन के लिए विकसित कर रहा है, जो सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ सहयोग कर रहा है. वैक्सीन ने रीसस बंदरों पर जानवरों के परीक्षणों में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, जिन्हें चिकित्सा परीक्षण के प्रयोजनों के लिए मनुष्यों के सबसे करीब माना जाता है. ChAdOx1 nCoV-19 नामक वैक्सीन, ChAdOx1 वायरस का एक कमजोर संस्करण है, जो चिंपैंजी को संक्रमित करता है.
हालांकि, अभी तक कोई क्लीनिकल प्रमाण नहीं होने के बावजूद टीका मनुष्यों पर काम करता है, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इसे तैयार करने की योजना बना रहा है. अगर सब ठीक हो जाता है, तो यह अगले साल 400 मिलियन दवाइयों का उत्पादन करने की योजना बना रहा है.
एसआईआई एक अन्य वैक्सीन बनाने के लिए अमेरिका स्थित जैव प्रौद्योगिकी फर्म कोडागेनिक्स के साथ साझेदारी कर रहा है. फरवरी के मध्य में पशु परीक्षण के पूर्व चरण तक पहुंचने के लिए यह शुरुआती भागीदारों में से एक था.
पूनावाला ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि ‘कंपनी संयुक्त रूप से लाइव-अटेन्डेड वैक्सीन विकसित कर रही है. इसका मतलब है कि टीके को एक जीवित वायरस का उपयोग करके बनाया जाएगा. लेकिन इसके विषाणु को कम करके, यह 2022 तक बाजार के लिए तैयार हो सकता है.’
इसी तरह, भारत बायोटेक ने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन और अमेरिका स्थित कंपनी फ्लुएंन के साथ एक टीका कोरो-फ्लू विकसित करने के लिए साझेदारी की है.
कंपनी यूडब्ल्यू-मैडिसन वायरोलॉजिस्ट और फ्लूजन सह-संस्थापक योशीहिरो कवाओका और गैब्रियल न्यूमैन द्वारा आविष्कार किए गए टीके का विकास करेगी. टीके को मौजूदा फ्लू वैक्सीन पर बनाया गया है, जिसे एम 2 एसआर कहा जाता है. इसमें कमजोर लाइव H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस होता है.
‘कावाओका की प्रयोगशाला सार्स सीओवी-2 से जीन अनुक्रमों को सम्मिलित करेगी, जो कोरोनोवायरस रोग का कारण बनता है, जो कोविड-19 को एम2एसआर में बदल देता है, जिससे नया वैक्सीन भी कोरोनावायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा का काम करेगा.’
उच्च मांग की प्रत्याशा में कंपनी ने कोविड-19 टीकों की सालाना 300 मिलियन खुराक का उत्पादन करने के लिए एक नई लाइन की स्थापना की है.
मूल्य का फैक्टर
भारत अर्थव्यवस्था की ऊंचाई के दम पर मूल्य सामर्थ्य में सक्षम रहा है. एक क्लासिक उदाहरण ‘रोटावायरस’ संक्रमण के लिए रोटावैक वैक्सीन है. भारत 2013 में इसे तत्कालीन बाजार लागत के लगभग एक-15वें हिस्से पर निर्माण और बिक्री करने में सक्षम था.
एक समान मूल्य निर्धारण प्रवृत्ति की उम्मीद है, जब दुनिया एक महामारी से जूझ रही है. उदाहरण के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि वह सिर्फ 1,000 रुपये में एक खुराक बेचेगी.
‘हम टीके के मूल्य निर्धारण को एक महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं मानेंगे. पूनावाला ने कहा कि आज भी हम अपने सभी टीकों को बहुत कम कीमत पर बेचते हैं.’
( बेंगलुरु से संध्या रमेश के इनपुट्स के साथ)
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