नई दिल्ली: भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुंदजे का कहना है कि भारत को उन तालिबान नेताओं को बातचीत की प्रक्रिया में जोड़ना चाहिए जो सुलह के इच्छुक हैं और पुनर्गठन की प्रक्रिया और अफगानिस्तान के संवैधानिक लोकतांत्रिक ढांचे में भरोसा करते हैं.
दिप्रिंट को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा कि भले ही युद्धग्रस्त देश में कुछ हिस्सों में ‘जबर्दस्त लड़ाई जारी है’ लेकिन अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद काबुल तालिबान के हाथों में नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि अफगान सुरक्षा बल तालिबान को पीछे धकेलने और प्रांतों पर फिर से कब्जा करने में सक्षम रहे हैं.
मामुंदजे ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम तालिबान के लिए भारत के संदेशों का स्वागत करेंगे—क्षेत्रीय आतंकवादी गुटों के साथ संबंध तोड़ें, हिंसा का रास्ता छोड़ें, और तालिबान को बताएंगे कि पिछले 20 सालों में जो हासिल हुआ है उसे संरक्षित करें और एक संवैधानिक लोकतांत्रिक ढांचे में विश्वास करें. यह (संवैधानिक ढांचा) ही है जिसे हमने पिछले दो दशकों में विकसित किया है, जिस पर हमें गर्व है. इसमें हमारे समाज के हर वर्ग की एक भूमिका और स्थान नियत है, खासकर सरकार में, संसद में, नागरिक समाज, शिक्षा और मीडिया में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.’
राजदूत ने यह भी कहा कि अफगान लोग उन ‘फायदों को गंवाना’ नहीं चाहेंगे जो उनके समाज ने पिछले दो दशक के दौरान हासिल किए हैं.
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘इसलिए हम चाहते हैं कि भारत की तरफ से उन तालिबानी तत्वों को कड़ा संदेश मिले जिनके साथ सुलह करना संभव है, जो अफगान समाज में पुन: एकीकरण की प्रक्रिया में भरोसा करते हैं और संभवत: मुख्यधारा के राजनीतिक जीवन का हिस्सा बन जाएंगे.’
पिछले हफ्ते एक वर्चुअल सेमिनार को संबोधित करते हुए आतंकवाद और संघर्ष समाधान के मसले देख रहे कतर के विशेष दूत मुतलाक बिन मजीद अल-कहतानी ने कहा था कि भारतीय अधिकारियों ने कुछ तालिबान नेताओं से मिलने के लिए दोहा, कतर की एक ‘गोपनीय यात्रा’ की थी.
इस बयान के संदर्भ में मामुंदजे ने कहा कि अफगान सरकार इसे सत्यापित करने में असमर्थ है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि भारत हमेशा ही अफगान-पहल वाली और अफगान-नेतृत्व वाली शांति प्रक्रिया का समर्थक रहा है.
‘भारत के साथ रक्षा, सुरक्षा सहयोग’
भविष्य में जब सभी अंतरराष्ट्रीय सैनिक पूरी तरह से अफगानिस्तान से बाहर चले जाएंगे, के संदर्भ में मामुंदजे ने कहा कि काबुल नई दिल्ली के साथ परस्पर सैन्य सहयोग बढ़ाने की कोशिश करेगा.
उन्होंने कहा कि भारत और अफगानिस्तान ही केवल दो ऐसे दक्षिण एशियाई देश हैं जिन्होंने ‘रणनीतिक भागीदारी समझौता’ कर रखा है जिस पर 2011 में हस्ताक्षर हुए थे.
उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि भारत हमारे अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए आवश्यक तकनीकी सहायता मुहैया कराने में हमारे सुरक्षा और रक्षा प्रतिष्ठानों का सहयोग करना जारी रखेगा. (यह एक ऐसा क्षेत्र है) जहां भारत अपनी कुछ बेहतरीन सैन्य अकादमियों में अफगान कैडेटों को मौके देने के प्रति बेहद उदार रुख अपनाए रहा है. हम आने वाले वर्षों में अपने सुरक्षा बलों के लिए यह सहायता चाहते हैं.’
अफगानिस्तान को भारत की तरफ से सैन्य हेलिकॉप्टरों का तोहफा दिए जाने की सराहना करते हुए, जो उनके मुताबिक, ‘साजो-सामान और युद्धक सहायता पहुंचाने में बेहद अहम साबित हो रहे हैं, मामुंदजे ने कहा कि नई दिल्ली को इस तरह की पहल जारी रहनी चाहिए.
हालांकि, उन्होंने इस बात से इनकार किया कि अफगानिस्तान भारतीय सैन्य कर्मियों को वहां तैनात करने के लिए कह रहा है और कहा कि काबुल नई दिल्ली की तरफ से केवल सैन्य, वित्तीय और तकनीकी सहायता का इच्छुक है.
‘तालिबान अफगान समाज का हिस्सा’
राजदूत ने यह भी कहा कि तालिबान अफगान समाज का हिस्सा है और इन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता. उन्होंने बताया कि उसके बीच के कई सदस्य ऐसे हैं जो बदलते अफगानिस्तान का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरने के साथ ही 20 साल लंबी जंग का गवाह बना है.
उन्होंने कहा, ‘तालिबान अफगान समाज का हिस्सा है. हम इन्हें खारिज नहीं कर सकते. लेकिन सिर्फ वो तालिबान जो अफगान समाज में विश्वास करते हैं, जो अफगान जीवनशैली में विश्वास करते हैं, यही तालिबान वो तालिबान हैं जो सुलह में भरोसा करते हैं, जो मुख्यधारा में लौट सकते हैं और समाज में फिर से शामिल हो सकते हैं, और विभिन्न तरीकों से समाज को कुछ लौटा भी सकते हैं.’ साथ ही जोड़ा कि इसमें तमाम ऐसे लोग हैं.
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हालांकि, उन्होंने ऐसे तालिबान नेताओं के नाम नहीं लिए, जिनके बारे में उनका मानना है कि शांतिपूर्ण हस्तांतरण को तैयार हैं, लेकिन उन्होंने कहा, ‘हम निश्चित रूप से ऐसे लोगों को जानते हैं जो अफगान समाज की प्रगति चाहते हैं, और उस स्थिति के खिलाफ है जहां तालिबान ने उन्हें 20-21 साल पहले पहुंचा दिया था. इसलिए निश्चित रूप से ऐसे कई लोग हैं जो समाज से फिर जुड़ना चाहते हैं.’
‘अमेरिका, नाटो सैनिकों के जाने के बाद जिहाद का कोई औचित्य नहीं’
अफगान राजदूत के अनुसार, 11 सितंबर तक अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के चले जाने के बाद अफगानिस्तान में कोई नाटो या सैन्य जेल नहीं होगी और इसलिए तालिबान के पास अपनी ‘जिहाद’ को उचित ठहराने का कोई कारण नहीं होगा.
उन्होंने कहा, ‘चूंकि अंतरराष्ट्रीय सेनाएं अफगानिस्तान से वापस जा रही हैं, अफगानिस्तान में कोई नाटो या सैन्य जेल नहीं रहेगी और इसलिए अफगानों, अफगान राष्ट्रीय सेना, अफगान सुरक्षा बलों के खिलाफ ‘जिहाद’ का कोई औचित्य नहीं होगा.’ साथ ही कहा कि अफगानिस्तान में युद्ध ‘अफगानों के बीच जंग नहीं’ है.
उन्होंने कहा, ‘अब समय आ गया है कि वे खूनखराबा बंद करें और सह-अस्तित्व की भावना को अपनाएं और सभी अफगानों के साथ शांति और सद्भाव के साथ मिलजुलकर रहें.’
‘तालिबान के हाथ में नहीं जाएगा काबुल’
मामुंदजे ने यह तो माना कि अफगानिस्तान में हाल के महीनों में हिंसा तेज हो गई है ‘क्योंकि तालिबान को ऐसा लगता है कि वह सैन्य क्षमता के बूते अफगानिस्तान पर कब्जा कर सकते हैं.’ उन्होंने कहा कि यह आकलन करना ‘गलत’ होगा कि काबुल या अफगानिस्तान ‘तालिबान के हाथों में चला जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे तो नहीं लगता कि हम अगले 6 से 12 महीनों की अवधि में ऐसी स्थिति में होंगे जिसमें काबुल या अफगानिस्तान तालिबान के हाथों में चला जाए. मुझे नहीं लगता कि जमीनी स्थिति का यह आकलन सही है.’
अफगानिस्तान में हिंसा जारी रहने के बीच अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच लड़ाई तेज हो चुकी है, और तालिबान देश के उत्तरी हिस्से के कुछ प्रमुख शहरों में दाखिल हो चुके हैं.
उन्होंने कहा, ‘कई जिले तालिबान के नियंत्रण में आ गए हैं और पिछले पांच दिनों में हमने कई जिलों को तालिबान के कब्जे से मुक्त भी करा लिया है. यह उन कई प्रांतों में, उन कई जिलों में चल रही है जंग है. हम ऐसा नहीं मानते है कि अगले छह से 12 महीनों में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो जाएगा. हमें नहीं लगता कि ऐसा कुछ होने जा रहा है.’
मामुंदजे ने कहा, ‘पिछले तीन, छह या बारह महीनों में तालिबान किसी प्रांतीय राजधानी पर कब्जा नहीं कर पाया है, इस तथ्य के बावजूद कि यहां पर 34 प्रांत हैं. सभी रणनीतिक जिले, सभी रणनीतिक प्रांत, देश के सभी रणनीतिक स्थान जहां हमारी बड़ी आबादी रहती है, हमारे लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान और जहां राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा है, ऐसी सभी जगहों को अफगान सुरक्षा बलों की तरफ से सुरक्षित रखा जा रहा है.’
अमेरिका के साथ ‘नया अध्याय’
मामुंदजे ने कहा कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और हाई काउंसिल फॉर नेशनल रिकंसीलिएशन का नेतृत्व संभालने वाले अब्दुल्ला अब्दुल्ला की हालिया अमेरिका यात्रा का उद्देश्य अन्य देशों खासकर नाटो सदस्यों के साथ-साथ ‘अमेरिका के साथ साझेदारी का एक नया अध्याय शुरू करना और उसे आगे बढ़ाना’ था
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत होगी. यह एक अंतरराष्ट्रीय जंग है; इसमें अगले पांच-दस सालों तक अफगान सुरक्षा बलों को अधिक संसाधन मुहैया कराने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता होगी.’
26 जून को व्हाइट हाउस में अपनी पहली व्यक्तिगत बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने गनी और अब्दुल्ला से कहा था कि अमेरिका अफगानिस्तान के साथ मजबूती से ‘जुड़ा’ रहने जा रहा है.
अपने देश से अमेरिकी सेनाओं की वापसी पर गनी ने कहा कि वे अब अफगानिस्तान में ‘स्थिरता’ का इंतजार कर रहे हैं.
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