बेंगलुरू : फ्रांस के शोधकर्ताओं ने बुधवार को प्रकाशित एक स्टडी में कहा कि चिंता के समय में आपका दिल और दिमाग थोड़ी सी बातचीत के लिए एक-दूसरे के संपर्क में आ जाता है.
पिछले महीने नेचर मेंटल हेल्थ में प्रकाशित एक रिसर्च आधारित लेख बताता है कि मोटापे के लिए आनुवंशिक प्रवृत्ति दिमाग को शारीरिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से व्यवहार को प्रभावित करती है.
पिछले साल दिसंबर में अमेरिका और जर्मनी के शोधकर्ताओं ने पाया कि आंत में कुछ बैक्टीरिया गट-ब्रेन पाथवे को सक्रिय कर देते हैं. इससे डोपामाइन का इफेक्ट बढ़ता है और शरीर पर एक्सरसाइज का असर बढ़ने लगता है.
इंसानी दिमाग का वजन बमुश्किल 1.3 किलोग्राम है, लेकिन इसमें कई राज छिपे हुए हैं. धीरे-धीरे ही सही मगर निश्चित रूप से इसकी परतें खुलकर सामने आने लगी हैं. पिछले दो सालों में दिमाग को लेकर कई स्टडी की गईं. इनमें से कुछ अध्ययनों से ऐसी जानकारियां सामने आईं जिन्हें लेकर वैज्ञानिक पहले आश्वस्त नहीं थे या फिर जिन्हें मानने से इनकार करते थे.
यह रिसर्च न सिर्फ इंसानी दिमाग के अंदर होने वाले बदलावों और उसके काम-काज को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी बल्कि इनमें से कुछ अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के संकेतों का पता लगाने में भी मदद कर सकती है. जाहिर है कि उनकी रोकथाम और इलाज में यह रिसर्च काफी फायदेमंद साबित हो सकती है.
उदाहरण के लिए जनवरी में, बोस्टन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने अन्य संस्थानों के सहयोग से किए गए अपने अध्ययन में पाया कि उम्र बढ़ने के दौरान कुछ प्रकार की कोशिकाओं में असामान्य म्यूटेशन की गति दूसरों की तुलना में तेज हो जाती हैं. यह न्यूरो डीजेनरेशन और मस्तिष्क में ट्यूमर की शुरुआत के संकेत देते हैं. हालांकि, औपचारिक रूप से इस अध्ययन का अभी पीर-रिव्यू नहीं किया गया है.
‘इंसानों की उम्र के साथ-साथ मस्तिष्क कैसे बदलता है’ इस संबंध में पिछले साल कैम्ब्रिज और पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी की टीमों के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने डेटा इकट्ठा किया था.
ग्रोथ मैट्रिक्स यानी उम्र के साथ-साथ लंबाई और वजन, शारीरिक विकास और यहां तक कि व्यवहार में आने वाले बदलाव पर तो काफी कुछ लिखा और पढ़ा गया है, लेकिन दिमाग को लेकर शायद ही ऐसा कोई शोध हुआ हो. इस विषय पर काम करते हुए एमआरआई की मदद से इस अध्ययन ने मस्तिष्क के लिए ऐसा करने का प्रयास किया है.
इसके निष्कर्ष बताते हैं कि ब्रेन के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने वाला इंसानी दिमाग का व्हाइट मैटर 28 साल की उम्र में अपने विकास के चरम पर होता है, जिसके बाद यह घटने लगता है.
शोधकर्ताओं ने बताया कि इसका ग्रे मैटर, जो शरीर के अंगों को सूचना देने का काम करता है, 6 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाता है. सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड- जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को चोट से बचाता है और पोषक तत्व प्रदान करता है –दो साल की उम्र तक बढ़ता हुआ नज़र आता है, फिर 30 की उम्र में बढ़ता है और 60 की उम्र में तो काफी तेज़ी से बढ़ने लगता है.
इस अध्ययन से मिले निष्कर्षों को आगे के उन अध्ययनों के लिए एक संदर्भ या मानक के रूप में इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है, जहां न्यूरोइमेजिंग पर काम किया जा रहा है. इसमें न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर, एटिपिकल ब्रेन डवलपमेंट, लर्निंग डिसऑर्डर, मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर और बहुत कुछ शामिल हैं.
अध्ययन के निष्कर्षों की कार्यप्रणाली और विवरण नेचर जर्नल में एक स्टडी के रूप में प्रकाशित किए गए हैं. एमआरआई डेटा यहां एक इंटरैक्टिव रेफरेंस चार्ट के रूप में अपलोड किया गया है.
पिछले साल के एक और रिसर्च में एमआईटी के शोधकर्ताओं ने पाया था कि कभी-कभी ब्रेन में नए न्युरल कनेक्शन के लिए पर्याप्त रिसेप्टर्स सक्रिय नहीं हो पाते हैं और उन्हें जगाने के लिए जीवन भर की गतिविधि की आवश्यकता होती है.
यह भी पढ़ें : चिप्स और सॉफ्टड्रिंक पसंद हैं? स्टडी में दावा—ज्यादा सेवन से मृत्यु दर 28% तक बढ़ने का खतरा
मस्तिष्क के बारे में और जानना
यह महामारी के दौरान की गई अब तक की सबसे बड़ी स्टडी है जो बताती है कि हमारी उम्र का हमारे दिमाग के विकास पर क्या असर होता है.
यह समझने के लिए कि एक व्यक्ति की उम्र के साथ-साथ उसके दिमाग का आकार या स्वरूप कैसे बदलता है, शोधकर्ताओं ने कई अध्ययनों में उम्र और ब्रेन के विकास के सभी चरणों को ध्यान में रखते हुए 101,457 से ज्यादा लोगों के ब्रेन स्कैन पर शोध किया था. अध्ययन में सबसे कम उम्र का ब्रेन 16 सप्ताह के भ्रूण का था, जबकि सबसे ज्यादा उम्रदराज ब्रेन 100 साल की उम्र के व्यक्ति का था.
वैज्ञानिकों ने अपने पेपर में लिखा है, ‘‘मौजूदा रिसर्च इस सिद्धांत को सिद्ध करती है कि उम्र के साथ-साथ दिमाग के स्वरूप में आए बदलावों को समझने के लिए इस तरह के रेफ्रेंस चार्ट बनाना कारगर रहते हैं. और साथ ही एमआरआई डेटा के मानकीकृत मात्रात्मक मूल्यांकन की दिशा में तेजी लाने के लिए न्यूरोइमेजिंग अनुसंधान समुदाय के लिए खुले विज्ञान संसाधनों के लिए रास्ता दिखाता है.’’
अन्य बातों के अलावा, स्टडी में पाया गया कि ब्रेन की सबसे बाहरी परत, जिसे सेरेब्रल कॉर्टेक्स कहा जाता है, जो चेतना और भाषा से जुड़ी होती है, 2 साल की उम्र से पहले ही अपनी अधिकतम मोटाई तक पहुंच जाती है. ऐसा माना जाता है कि बढ़ी हुई कॉर्टिकल मोटाई का संबंध इंसान के ज्यादा बुद्धिमान होने से होता है.
इसने यह भी सुझाव दिया कि ब्रेन का सरफेस एरिया लगभग 11 साल की उम्र में चरम पर होता है, जबकि सेरेब्रम की कुल मात्रा 12 साल में ऐसा करती है.
हालांकि, पैटर्न व्यक्तियों में उच्च स्तर की स्थिरता दिखाता है, लेकिन लेखकों ने एमआरआई डेटा में सीमाओं और अन्य उपकरणों की अत्यधिक संवेदनशीलता के चलते निष्कर्षों की सीमाओं को स्वीकार किया है.
इसमें बड़ी उम्र में तेज़ी से कई डिजेनरेटिव बदलाव भी पाए गए, जैसे कि वेंट्रिकल्स के आकार में वृद्धि. इसमें फ्लूड होता और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों से जुड़े होते हैं.
जैसे-जैसे व्यक्ति बूढ़ा होता है, वैसे-वैसे उसके ब्रेन के अन्य भागों में बदलाव आने लगता है, शायद से यह उसके रोजमर्रा के जीवन और उनके अनुभवों के आधार पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, इंद्रियों से जुड़े मस्तिष्क के क्षेत्र अलग-अलग लोगों में अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्तरों तक पहुंचते हैं, स्टडी बताती है, लेकिन मस्तिष्क के अन्य हिस्सों की तुलना में मात्रा पहले चरम पर होती है और तेजी से गिरती है.
ग्रे और सफेद मैटर और ब्रेन के कुछ हिस्सों की मोटाई के पैटर्न के अलावा, टीम ने ब्रेन की उम्र के रूप में पहले से अप्रमाणित न्यूरोडेवलपमेंटल में काफी बढ़त हासिल की है .
उदाहरण के लिए जब एक किशोर अपनी अधिकतम लंबाई हासिल कर लेता है तो कुल सेरेब्रल वॉल्यूम, या ब्रेन के आकार में वृद्धि की दर चरम पर होती है.
हालांकि, यह तय है कि पूर्ण रूप से महिलाओं की तुलना में पुरुषों के मस्तिष्क-ऊतकों की मात्रा अधिक होती है, अध्ययन में क्लीनिकल या कॉग्निटिव परिणामों में कोई अंतर नहीं पाया गया.
सीमाएं
ब्रेन और उसके सभी न्यूरॉन्स जन्म के समय बनते हैं. लेकिन उनका आकार और न्यूरल नेटवर्क एक व्यक्ति के जीवन काल में बदलता रहता है. दरअसल यह जीवन के अनुभवों से आकार लेता है.
न्यूरोइमेजिंग की तकनीक में हालिया प्रगति ने वैज्ञानिकों को मानव मस्तिष्क को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम बनाया है. इसने कई खोजों को जन्म दिया है, जो लगातार आगे की तरफ बढ़ रहे हैं क्योंकि वे एक-दूसरे पर निर्भर रहते हुए काम करते हैं.
हालांकि, इनमें से कई स्टडीज की कई सीमाएं हैं जिनके बारे में लेखक बताने से नहीं हिचकिचाते हैं.
शोधकर्ताओं ने कहा, उदाहरण के लिए संकलन एमआरआई स्कैन का सबसे बड़ा डेटासेट होने के बावजूद, यह यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी वंश समूहों के प्रति पक्षपाती था.
उपलब्ध डेटा सभी आयु समूहों को ठीक ढंग से रिप्रजेंट नहीं करता है. भ्रूण, नवजात शिशु और मध्य-वयस्कता (30-40 उम्र) के लिए डेटा की कमी थी. लेखकों ने इस बात पर भी जोर दिया कि उनका अध्ययन उनके द्वारा मूल्यांकन किए गए प्राथमिक अध्ययनों में मौजूद किसी भी पूर्वाग्रह को समाप्त नहीं कर सका.
(अनुवाद : संघप्रिया | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
यह भी पढ़ें : बेंगलुरू का एक ग्रुप घुटने तक गंदे पानी में डूबा हुआ है—भविष्य की बीमारियों के रहस्यों की तलाश कर रहा है