नई दिल्ली: पुलिस, सेना और सरकारी अधिकारियों के विरोधाभासी बयानों से पता चलता है कि मणिपुर पर सुरक्षा को लेकर बहस तेजी से आरोप-प्रत्यारोप के जाल में तब्दील हो रही है. जबकि जातीय हिंसा में नए सिरे से वृद्धि के बीच सोशल मीडिया पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि संवेदनशील स्थिति के लिए सभी हितधारकों द्वारा ठोस प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन संघर्षग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य में सुरक्षा तंत्र में समन्वय और आम सहमति की कमी है.
इसका एक उदाहरण भारतीय सेना के स्पीयर कोर द्वारा संदिग्ध कुकी उग्रवादियों के बारे में खुफिया जानकारी के लिए मणिपुर सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह से जानकारी मांगने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स का सहारा लेना था.
यह तब हुआ जब सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्होंने म्यांमार से 900 कुकी उग्रवादियों के प्रवेश के बारे में सुरक्षा बलों के साथ बैठक की थी और यह इनपुट “100 प्रतिशत सही है जब तक कि गलत साबित न हो जाए”. आर्मी यूनिट की इस पोस्ट को बाद में हटा दिया गया.
सुरक्षा सलाहकार द्वारा उक्त खुफिया इनपुट के बारे में बात करने के पांच दिन बाद, उन्होंने और पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह ने बुधवार को एक बयान में स्पष्ट किया कि इनपुट “जमीन पर प्रमाणित नहीं हो सके”.
बयान में कहा गया है कि फिलहाल ऐसी किसी भी जानकारी पर विश्वास करने का कोई आधार नहीं है. मणिपुर के मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी एक बयान जारी कर कहा कि अब यह पता चला है कि सशस्त्र समूहों द्वारा “ऐसी किसी भी दुस्साहस” की संभावना “दूर-दूर तक नहीं है.”
इसमें कहा गया है, “इस संबंध में लोगों को और अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.” ऐसा माना जा रहा है कि जहां सुरक्षा बल सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के दावों का खंडन कर रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री बीरेन सिंह डीजीपी और केंद्र के सुरक्षा सलाहकार से असहमत हैं.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इस महीने मणिपुर में हिंसा की ताजा घटनाओं के बावजूद मुख्यमंत्री नियमित रूप से डीजीपी राजीव सिंह से नहीं मिलते हैं, जिन्हें राज्य के आदेश पर नियुक्त किया गया था. दरअसल, सीएम का कार्यालय उनके पास “कोई अधिकार” न होने की शिकायत करता रहा है.
सीएम कार्यालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि डीजीपी उन कई खुफिया सूचनाओं पर “कोई ध्यान” नहीं देते हैं, जिन पर कार्रवाई करने के लिए उन्हें भेजा जाता है. हालांकि, पुलिस के सूत्रों ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि सभी सूचनाओं को “गंभीरता से लिया जाता है” और मुख्यमंत्री राजनीतिक खेल खेलने और अपने समुदाय को यह विश्वास दिलाकर खुद को पीड़ित के रूप में पेश करने के लिए गलत दावा कर रहे हैं कि वे शक्तिहीन हैं.
मणिपुर पिछले डेढ़ साल से जातीय हिंसा से त्रस्त है, जिसमें अब तक 250 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 50,000 लोग विस्थापित हो चुके हैं.
मुख्यमंत्री कार्यालय की खुफिया सूचनाओं के प्रति पुलिस की कथित उदासीनता और विभिन्न बलों द्वारा घटनाओं के बारे में विरोधाभासी बातें कहा जाना मामले को और भी बदतर बना रहे हैं. उदाहरण के लिए, 1 सितंबर को कोत्रुक में कथित ड्रोन बम विस्फोट की घटना के बारे में, पुलिस ने दावा किया कि इलाके में ड्रोन का उपयोग करके कच्चे और परिष्कृत बम गिराए गए थे, लेकिन असम राइफल्स और सेना ने इस तरह के बम विस्फोटों के किसी भी सबूत होने से इनकार किया.
एक पुलिस सूत्र ने कहा, “यह एक बेहद खतरनाक स्थिति है. जरा संघर्ष के दौर से गुजर रहे एक राज्य की कल्पना करें, जहां पुलिस के अधीन मुख्यमंत्री कहता है कि वह शक्तिहीन है और डीजीपी उसकी बात नहीं सुन रहा है. एक ऐसी जगह जहां बम गिराए जा रहे हैं, रॉकेट दागे जा रहे हैं, राज्य की मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है और सत्ता में बैठे लोग एक-दूसरे का विरोध कर रहे हैं,”
“यह एक गड़बड़ है. राज्य के विभाग और केंद्र द्वारा मणिपुर में भेजे गए तटस्थ दल आपस में मिलजुलकर नहीं रह रहे हैं. ऐसी स्थिति में शांति कैसे लौट सकती है? और इस सब में, गृह मंत्रालय मूकदर्शक बना हुआ है और राज्य जल रहा है.”
सूत्र ने दावा किया कि हालांकि, डीजीपी और सुरक्षा सलाहकार तटस्थ बने हुए हैं.
सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “कम से कम वे इस सब में तटस्थ रहे हैं. वे किसी समुदाय से संबंधित नहीं हैं. उनका कोई व्यक्तिगत हित नहीं है. लेकिन अगर उन्हें राज्य मशीनरी से समर्थन नहीं मिलता है, तो उन्हें स्थिति को संभालने में मुश्किल होगी, जो पिछले कई महीनों से हो रही है. सीएम को सुरक्षा बलों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, उनके खिलाफ नहीं.”
2 सितंबर को मणिपुर विधानसभा के सदस्य और मुख्यमंत्री के दामाद आर.के. इमो सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि केंद्रीय बलों को राज्य से हटा दिया जाए और एकीकृत कमान का नेतृत्व सीएम बीरेन सिंह को सौंप दिया जाए. यह उन छात्रों की भी एक प्रमुख मांग थी, जिन्होंने पिछले दो हफ्तों में इंफाल में विरोध प्रदर्शन किया था – जो हिंसक हो गया था.
एकीकृत कमान का उद्देश्य पुलिस, सेना, असम राइफल्स और विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों सहित विभिन्न बलों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना है. वर्तमान में इसका नेतृत्व सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी और मुख्यमंत्री के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने कहा, “मुख्यमंत्री के पास कोई शक्ति नहीं है. जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जब उनके पास कोई शक्ति नहीं है, तो वे कार्रवाई कैसे कर सकते हैं? हमने कई मौकों पर पुलिस को खुफिया जानकारी दी थी, जिस पर उन्होंने कार्रवाई नहीं की. या तो उन्हें हटा दिया जाए और पूरा नियंत्रण केंद्र के पास चला जाए, या उन्हें राज्य का पूरा प्रभार दे दिया जाए.”
सूत्र ने आगे कहा कि बीरेन सिंह के “गृह मंत्री अमित शाह के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध हैं और वे उन्हें नियमित आधार पर राज्य की स्थिति के बारे में जानकारी देते हैं”.
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पुलिस बनाम सेना, असम राइफल्स
1 सितंबर को, बिष्णुपुर जिले के कोत्रुक में पहाड़ी से ड्रोन की मदद से कथित तौर पर बम गिराए गए थे. पुलिस के अनुसार, यह पहली बार था जब सुरक्षा बलों और नागरिकों पर हाई-टेक ड्रोन के ज़रिए रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड (RPG) दागे गए थे, जो मणिपुर में चल रहे संघर्ष में “काफी वृद्धि” को दर्शाता है.
हालांकि, इस घटना ने कुकी और मैतेई के बीच दावों और प्रतिदावों की जंग छेड़ दी. इसके अलावा, घटना के आधिकारिक संस्करण भी इस बात पर निर्भर करते हैं कि किससे पूछा गया था.
मणिपुर पुलिस ने दावा किया कि ड्रोन का इस्तेमाल कच्चे और फैक्ट्री में बने बमों को गिराने के लिए किया गया था, हालांकि वे बहुत घातक नहीं थे. सुरक्षा बलों ने कहा है कि ड्रोन बमबारी के दावों का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है.
बस इतना ही नहीं. असम राइफल्स के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पी.सी. नायर (सेवानिवृत्त) ने भी इस दृष्टिकोण को दोहराया और कहा कि पुलिस भी जातीय आधार पर बहुत विभाजित है. इस पर मणिपुर पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नायर की टिप्पणियों को “अपरिपक्व” बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की.
पुलिस महानिरीक्षक (ऑपरेशन) आई.के. मुइवा ने कहा कि बल कई बिंदुओं, विशेष रूप से पूर्व असम राइफल्स प्रमुख द्वारा किए गए ‘मैतेई पुलिस’ संदर्भ का “दृढ़ता से खंडन” करता है.
मुइवा ने इंफाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “मणिपुर पुलिस में सभी समुदायों के लोग शामिल हैं, चाहे वे मुख्य भूमि से, नागा, कुकी या मैतेई हों. उन्होंने जो बयान दिया, वैसी कोई बात नहीं है. यह एक अपरिपक्व बयान है, जो एक संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है. हम इसका खंडन करना चाहते हैं,”
इसके बाद, मीडिया रिपोर्ट्स ने संकेत दिया कि सेना ने कहा कि उसे मणिपुर में ड्रोन के इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं मिला है. हालांकि, पुलिस ने कहा कि उनके पास “मजबूत सबूत” हैं.
यह पूछे जाने पर कि सेना और पुलिस के पास घटना के बारे में दो अलग-अलग बयान क्यों हैं, पुलिस के एक सूत्र ने कहा, “जब बम गिराए जा रहे थे, तब एसपी (पुलिस अधीक्षक) और आईजी (महानिरीक्षक) सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर थे. पुलिस द्वारा एकत्र किए गए सबूतों से पता चलता है कि यह फैक्ट्री में बने और कच्चे बमों का मिश्रण था. बम पर एक रिंग, एक ड्रॉप पिन भी है, जिसका इस्तेमाल हमें संदेह है कि ड्रोन पर बम को लटकाने के लिए किया गया था. इस सबूत को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है?”
सूत्र ने कहा, “जब यह घटना हुई, तब सेना मौके पर नहीं थी. सिर्फ़ कुछ वीडियो से यह पता नहीं चल सकता कि यह हुआ या नहीं. हमें नहीं पता कि असम राइफल्स या सेना ऐसे दावे क्यों और कैसे कर रही है.”
हालांकि, रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि कथित घटना को लेकर “काफ़ी प्रचार” किया जा रहा है. एक सूत्र ने कहा कि दोनों पक्षों द्वारा पहले भी ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है.
“दिसंबर में बम गिराने के लिए मैतेई लोगों ने इनका इस्तेमाल किया था. स्थानीय कुकी लोगों के पास वे संसाधन नहीं हैं. अगर वे ड्रोन का इस्तेमाल भी करते हैं, तो वे कुछ ही बम गिरा सकते हैं, 50 नहीं, जैसा कि दावा किया जा रहा है.”
दिप्रिंट से बात करते हुए एक दूसरे पुलिस सूत्र ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि सुरक्षा बलों के बीच तालमेल में गड़बड़ी है. उन्होंने कहा, “काम हो रहा है. सुरक्षा बलों की कार्यशैली अलग हो सकती है, लेकिन समन्वय है. कई बार वे हमसे सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन इससे हमारे काम में बाधा नहीं आती है.”
स्पीयर कॉर्प्स द्वारा रविवार को की गई एक्स पोस्ट के बारे में सूत्र ने कहा, “सीएम कार्यालय से वह इनपुट (म्यांमार से 900 कुकी उग्रवादियों द्वारा घुसपैठ का प्रयास) प्राप्त हुआ था और हमने उस पर कार्रवाई की. सुरक्षा सलाहकार ने आम जनता को आश्वस्त करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है और सुरक्षा बल विवरणों की पुष्टि कर रहे हैं और इस पर गौर कर रहे हैं. एक बैठक भी बुलाई गई थी.”
सूत्र ने आगे कहा, “हमें नहीं पता कि उस पोस्ट के पीछे क्या कारण था. हमें यह भी नहीं पता कि यह असली था या नकली, क्योंकि यह स्पीयर कॉर्प्स के हैंडल पर नहीं था.”
सूत्र ने आगे कहा कि कुलदीप सिंह ने यह नहीं कहा कि 900 कुकी म्यांमार से घुसपैठ कर आए हैं. “उन्होंने बस इतना कहा- जब तक यह गलत साबित न हो जाए, यह 100 प्रतिशत सही है.”
सूत्र ने आगे कहा, “अगर हमें राज्य से खुफिया इनपुट मिला है, तो हम निश्चित रूप से इसकी जांच करेंगे. माननीय सिंह का मतलब यह था कि सूचना को हल्के में नहीं लिया गया है और इस तरह के इनपुट के मद्देनजर सभी जिला पुलिस प्रमुखों और असम राइफल्स और सेना को अलर्ट भेजा गया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इनपुट ने घाटी में दहशत फैला दी थी.”
पुलिस बनाम मुख्यमंत्री कार्यालय
हालांकि मणिपुर पुलिस और मुख्यमंत्री कार्यालय के बीच तनाव लंबे समय से था, लेकिन जून में जिरीबाम जिले में हिंसा भड़कने के बाद मतभेद और असहमति उजागर हुई.
मुख्यमंत्री कार्यालय ने मणिपुर पुलिस को भेजी गई एक खुफिया रिपोर्ट को “लीक” कर दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि जनवरी में चूड़ाचांदपुर से जिरीबाम की ओर 200 कुकी-जो उग्रवादियों की आवाजाही के बारे में पुलिस को सचेत किया गया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने डीजीपी और सुरक्षा सलाहकार को दो बार सचेत किया था, लेकिन उन्होंने “इसे दबा दिया”.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पुलिस ने कहा कि इनपुट जनवरी में भेजा गया था, जबकि घटना जून में हुई थी.
एक दूसरे पुलिस सूत्र ने कहा, “जिरीबाम में लंबे समय से कुछ नहीं हुआ. यह इनपुट हमें जनवरी में भेजा गया था, और हम उस जगह को सुरक्षित करने में सफल रहे और पांच महीने तक शांति रही. हमें रोजाना 100 से ज़्यादा ऐसे इनपुट मिलते हैं और हम कई कारकों के आधार पर आकलन करते हैं,” .
सीएम कार्यालय के सूत्रों ने आरोप लगाया कि 1 सितंबर की घटना से पहले डीजीपी, सुरक्षा सलाहकार, मुख्य सचिव और गृह आयुक्त को बम गिराने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के बारे में एक और खुफिया इनपुट दिया गया था.
सूत्र ने कहा, “हम इन खुफिया सूचनाओं को उनके साथ पहले से ही साझा करते रहे हैं. लेकिन चूंकि वे उन पर कार्रवाई नहीं करते, इसलिए चीजें हाथ से निकल जाती हैं. चूंकि सीएम की शक्तियां और भूमिका सीमित हैं, इसलिए वे केवल इतना ही कर सकते हैं.”
हालांकि, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इन सभी सूचनाओं को “बेहद गंभीरता” के साथ लिया जाता है.
अधिकारी ने कहा, “इस सप्ताह, एक और ऐसी सूचना मिली: ड्रोन-आधारित बमों के इस्तेमाल में हाल ही में प्रशिक्षित 900 से अधिक कुकी उग्रवादी म्यांमार से मणिपुर में घुस आए हैं. क्या हमने इसे अनदेखा किया? नहीं, हम इस पर कार्रवाई कर रहे हैं. तुरंत एक बैठक बुलाई गई. यह सिर्फ़ रोना-धोना है.”
पुलिस के एक तीसरे सूत्र ने कहा कि यह मुद्दा मणिपुर की सुरक्षा और शांति से ज़्यादा राजनीतिक है.
सूत्र ने कहा, “सीएम और उनके समर्थक डीजीपी और सलाहकार को हटाने की मांग कर रहे हैं. हर दूसरे दिन उनके समर्थक विरोध प्रदर्शन करते हैं, जिसमें पेट्रोल बम फेंके जाते हैं, गुलेल और यहाँ तक कि फायरआर्म्स का भी इस्तेमाल किया जाता है. ये प्रदर्शनकारी कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए छात्रों को आगे कर देते हैं. ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री किसी तरह अपनी स्थिति को सुरक्षित रखना चाहते हैं. पुलिस या सुरक्षा बल तटस्थ हैं और उनका कोई हित नहीं है,”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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