गुरुग्राम: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मई 2025 के उस आदेश से उलट, जिसमें चंडीगढ़ के मनीमाजरा इलाके से स्ट्रीट वेंडरों को हटाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी गई थी और याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना भी लगाया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नगर प्रशासन को इलाके से अतिक्रमण हटाने के लिए सख्त 48 घंटे की समय-सीमा दी.
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोतिस्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश मनीमाजरा व्यापार मंडल के अध्यक्ष मलकीत सिंह और रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. इस याचिका में हाई कोर्ट के 23 मई के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की गई थीं. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर 50-50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया था और उनकी ‘एलीट क्लास’ मानसिकता पर तीखी टिप्पणी की थी.
मंगलवार को जारी अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “वेंडर अगले 48 घंटों के भीतर अपने सामान को निश्चित रूप से हटा लें और वेंडिंग ज़ोन में उन्हें दिए गए स्थानों पर शिफ्ट हो जाएं. जिन लोगों को अभी तक वेंडिंग ज़ोन में जगह आवंटित नहीं की गई है, वे संबंधित प्राधिकरण से संपर्क करें, जो कानून के अनुसार इस मामले का निपटारा करेगा.”
अदालत ने आगे कहा, “यह भी स्पष्ट किया जाता है कि प्राधिकरण सभी अतिक्रमण हटाने के लिए एक विशेष अभियान चलाएगा और उन वेंडरों को भी हटाएगा, जो अनधिकृत स्थानों पर अपना सामान बेच रहे हैं.”
अदालत ने नगर प्रशासन को 18 दिसंबर को अनुपालन हलफनामा (एफिडेविट) दाखिल करने का निर्देश दिया है.
मंगलवार के आदेश से पहले, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील अनंत पल्ली को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था, क्योंकि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन, एस्टेट ऑफिसर या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ था.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल अगस्त में हाई कोर्ट के मई वाले आदेश पर रोक लगा दी थी.
हाईकोर्ट का आदेश
23 मई को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने उन याचिकाकर्ताओं पर कड़ी टिप्पणी की थी, जिन्होंने सार्वजनिक रास्तों से फल विक्रेताओं और फेरीवालों को हटाने की मांग की थी.
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई. मेहता ने अपने कड़े शब्दों वाले फैसले में इस याचिका को “प्रथम दृष्टया प्रेरित याचिका” बताते हुए खारिज कर दिया था और कहा था कि इसका मकसद स्ट्रीट वेंडरों की आजीविका को नुकसान पहुंचाना है.
दुकानदारों ने हाई कोर्ट में दायर अपनी सिविल रिट याचिका में शिकायत की थी कि वेंडर मनीमाजरा में स्थानीय बस स्टैंड, राणा हवेली, एक प्राथमिक स्कूल, पुलिस बीट बॉक्स और मुख्य बाजार के पास सार्वजनिक रास्तों पर कब्जा किए हुए हैं, जिससे ट्रैफिक जाम होता है और उनके कारोबार पर बुरा असर पड़ता है.
इसके बाद उन्होंने विशेष अनुमति याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश को कई आधारों पर चुनौती दी.
उनका कहना था कि हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ व्यक्तिगत और तीखी टिप्पणियां करके गलती की, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जजों को न्यायिक आदेशों में व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से सावधान करते हैं.
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, हाई कोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 19(1)(d) और 21 के तहत मिले उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ कानूनी उपाय पाने के अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया था, लेकिन अदालत की टिप्पणियों के कारण उन्हें सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते समय उस इलाके की खास परिस्थितियों पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने बताया कि मनीमाजरा की मुख्य सड़क पर सिविल अस्पताल, बच्चों का पार्क, सरकारी स्कूल और बस स्टैंड है, जहां लोगों की भारी भीड़ रहती है और रास्तों का साफ होना ज़रूरी है.
उन्होंने कहा कि इस सार्वजनिक सड़क पर बड़ी संख्या में वेंडरों द्वारा किया गया अतिक्रमण गंभीर ट्रैफिक जाम पैदा कर रहा है, जिससे एंबुलेंस का अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है और स्कूली बच्चों व यात्रियों के लिए खतरनाक हालात बनते हैं.
फोटो सबूतों के साथ अपनी बात रखते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सड़क पर काम कर रहे कई वेंडर गैर-जरूरी सेवाएं देने वाले हैं, जो कपड़े, एक्सेसरीज़ और अन्य सामान बेचते हैं. नियमों के मुताबिक ऐसे वेंडरों को तय वेंडिंग ज़ोन तक सीमित होना चाहिए, लेकिन हाई कोर्ट इसे समझने में असफल रहा.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि नगर निगम के अपने रिकॉर्ड में सेक्टर 13 में मनीमाजरा बस स्टैंड के पास के इलाके को वेंडिंग ज़ोन के रूप में पहले ही खारिज किया जा चुका है.
याचिकाकर्ताओं ने यह शिकायत भी की कि हाई कोर्ट के मई के फैसले के बाद उन्हें गंभीर परिणाम झेलने पड़े. कई मीडिया संस्थानों और अखबारों ने इस आदेश को प्रमुखता से छापा और ‘एलीट क्लास’ व्यवहार वाली टिप्पणियों को उछाला. इसके व्यापक प्रचार से उन्हें समाज में मजाक और बदनामी का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति पर असर पड़ा.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने उनकी याचिका यह देखे बिना खारिज कर दी कि मामले में केवल नगर निगम ने जवाब दाखिल किया था, जबकि प्रतिवादी संख्या 1, 4 और 5 यानी यूटी प्रशासन, एस्टेट ऑफिसर और एसएसपी ने नोटिस मिलने के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया था. उनका कहना था कि इस तरह एकतरफा सुनवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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