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Friday, 22 November, 2024
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मंगलसूत्र, महिलाओं के लिए शैम्पू और त्योहारों पर मिठाइयां – यूपी में अब नया जेल मैनुअल

यूपी ने अपने ब्रिटिश-युग के मैनुअल को खत्म कर दिया है, कुछ पुराने नियमों को हटा दिया है जैसे कि 'काला पानी' की सजा, और पहले से ही कैदियों को दिए जा रहे बुनियादी फायदों को 'ऑफिशियल' कर दिया गया है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की जेलें अब ‘आधिकारिक तौर पर’ अपनी महिला कैदियों को मंगलसूत्र पहनने की अनुमति देंगी, और उन्हें सिर्फ साड़ी के बजाय सलवार-कमीज पहनने का विकल्प भी देगी.

राज्य मंत्रिमंडल ने मंगलवार को एक नई जेल नियमावली के कार्यान्वयन को मंजूरी दी, जिसमें केंद्र सरकार और अदालतों द्वारा समय-समय पर जारी किए गए दिशा-निर्देशों को शामिल किया गया और कुछ पुराने नियमों और कदाचारों को हटा दिया गया, जिन्हें रोजमर्रा के कार्यान्वयन में हटा दिया गया था, जो 1941 में लिखित मैनुअल का एक हिस्सा बना रहा था.

यूपी की एक प्रमुख जेल में सेवारत एक जेलर ने दिप्रिंट को बताया, ‘ पुरानी नियमावली में कैदियों को ज्वैलरी और कीमती सामान पहनने की अनुमति नहीं थी, हालांकि, मंगलसूत्र पहनने की अनुमति लंबे समय से दी गई है. पुरानी नियमावली के अनुसार एक कैदी के लिए साड़ी आधिकारिक पोशाक रही है, लेकिन अब सलवार कमीज पहनने की भी अनुमति होगी, ‘

यूपी जेल मैनुअल 2022 के तहत महिला कैदियों के लिए अन्य प्रावधानों में गर्भवती और नर्सिंग माताओं के लिए अतिरिक्त पौष्टिक भोजन के साथ साथ स्वास्थ्य सेवाएं, नारियल का तेल और शैम्पू शामिल किया गया है.

पुरुष कैदियों को पर्सनल हाइजिन बनाए रखने के लिए अन्य सामग्रियों के साथ अपनी दाढ़ी बनाने के लिए बंदी कल्याणकारी (कैदी कल्याण) कैंटीन से डिस्पोजेबल रेजर खरीदने की अनुमति होगी.

मीडियाकर्मियों से बात करते हुए जेल और होमगार्ड राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मवीर प्रजापति ने कहा, ‘उनके दांत साफ करने के लिए उन्हें बबूल [छाल], दातून और कुचला हुआ कोयला उपलब्ध कराया जाएगा. वे अपने खर्च पर टूथपेस्ट पाउडर भी खरीद सकते हैं. ‘

इन प्रावधानों के साथ, कैदियों के पास अब जेल प्रशासन को अपनी ओर से आवेदन लिखने के लिए एक लेखक भी उपलब्ध होगा.

प्रजापति ने कहा कि अब तक पालन की जा रही नियमावली को समय-समय पर आवश्यकतानुसार अपडेट और सही किया गया है.

गृह मंत्रालय (एमएचए) के आदेश के अनुसार, 2003 और 2016 में, एमएचओ को सभी राज्यों से एक जैसा [मॉडल] मैनुअल का गठन किया गया था और उम्मीद की थी की सभी राज्य इसे लागू करेंगे.

उन्होंने कहा, ‘इसी क्रम में, कुछ संशोधन और कुछ परिवर्धन किए गए और जेल नियमावली में नई व्यवस्थाएं पेश की गईं.’

नई नियमावली में पेश किए गए परिवर्तनों पर विस्तार से बताते हुए, प्रजापति ने कहा कि जेल परिसर के भीतर ‘लॉक-अप’ जेलों की व्यवस्था, यूरोपीय लोगों के लिए अलग जेल, नेपाल, भूटान, सिक्किम और कश्मीर से संबंधित कैदियों की मुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित नियम में बदलाव किए गए (जिसमें से दो स्वतंत्रता के बाद भारत का हिस्सा बन गए) को भी हटा दिया गया है, साथ ही रजवाड़ा (रियासतों) के समय से बचे हुए पुरातन नियमों को भी समाप्त कर दिया गया है. जैसे कालापानी सजा को भी अब आधिकारिक तौर पर हटा दिया गया है.

‘काला पानी’ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में औपनिवेशिक युग की सेलुलर जेल को संदर्भित करता है जिसे कैद का सबसे क्रूर रूप माना जाता था और अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों जैसे दीवान सिंह, बटुकेश्वर दत्त, शादान चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह भखना, फजल-ए-हक खैराबादी और वी.डी. सावरकर को कैद करने के लिए इस्तेमाल किया गया था.


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‘स्वीट्स’, ‘नामकरण सेरेमनीज’

नए मैनुअल में त्योहारों पर मिठाइयों और उपवास के दौरान खाने पीने की विशेष चीजों के प्रावधान भी शामिल किए गए हैं.

दिप्रिंट से एक जेल अधीक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अभी तक कैदियों को मिठाई नहीं दी जाती थी.’

जहां हिंदू और मुस्लिम त्योहारों पर खीर, सेवइयां और हलवा पुरी दी जाएगी, वहीं किसी भी धर्म के उपवास करने वालों को खजूर और गुड़ भी दिया जाएगा.

मैनुअल में कैदियों को एक साइकिल, चाय और बिस्कुट की सुविधा के साथ-साथ एक स्वावलम्बी (आत्मनिर्भर) बेकरी की सुविधा का भी उल्लेख किया गया है.

अब जेल परिसर के अंदर पैदा हुए बच्चों के लिए उनके माता-पिता की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नामकरण (नामकरण) समारोह आयोजित करेगी, और जन्म पंजीकरण, टीकाकरण और बच्चों के लिए पार्क की सुविधा भी प्रदान करेगी.

प्रजापति ने कहा, ‘चिल्ड्रन पार्क का उद्देश्य जेल में अपनी मां के साथ रहने वाले इन बच्चों को वहां होने वाली बातचीत से प्रभावित होने से बचाना है. यहां महिला कैदी अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की चर्चा करती हैं. इसे कुछ जेलों में लागू भी कर दिया गया है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, ऊपर जिन जेलर से बात हुई उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों के लिए उल्लिखित अधिकांश लाभ पहले से ही जेलों के अंदर महिला कैदियों और उनके बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अंतर्गत आते हैं.

उन्होंने कहा, ‘दिशानिर्देशों में उल्लेख किया गया है कि हर जेल में एक क्रेच की व्यवस्था की जानी चाहिए, जहां न केवल महिला जेल कर्मचारियों के बच्चों बल्कि कैदियों के बच्चों को भी रखा जा सकता है. हालांकि, कुछ ही जेलों में क्रेच की सुविधा है. अधिकांश में अभी भी नहीं हैं. ‘ कुछ में, खिलौनों वाला एक कमरा क्रेच के लिए है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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