नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस के नेता, राज्य सभा सदस्य और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने एक साक्षात्कार में दिप्रिंट को कहा कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की जीत ने समूचे विपक्ष के लिए ‘टॉनिक’ का काम किया है क्योंकि इसने यह दिखाया है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह टेफ्लन-कोटेड नहीं हैं और उन्हें हराया जा सकता है.
ओ ब्रायन ने यह भी कहा कि सारा विपक्ष एकजुट है और किसी को भी तृणमूल कांग्रेस द्वारा कुछ विपक्षी कार्यक्रमों में ना शामिल होने को इसके द्वारा दूसरी पार्टियों पर हावी होने की कोशिश के रूप में नहीं लेना चाहिए.
तृणमूल के इस राज्य सभा संसद ने कहा, ‘यह एक शक्तिवर्धक टॉनिक है. यह क्रिकेट मैच में ड्रेसिंग रूम के अंदर हर किसी को उत्साहित करने जैसा है. आप आओ और आप जीतो. हम दूसरों पर हावी नही होने चाहते हैं. हम जानते हैं कि हम सब को मिलकर काम करना होगा. हम यह भी जानते हैं कि फिलहाल हमारी सभी सीटें केवल बंगाल से हैं. हम इसे बखूबी समझते हैं और हम धीरे-धीरे अपना राजनैतिक विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे पास यह स्वीकार करने के लिए ज़रूरी विनम्रता भी है कि हम पूरी तरह से परिपूर्ण भी नहीं हैं. इस बड़ी जीत के बावजूद हमने पिछले समय में कुछ गलतियां की हैं. हम उन्हें ज़रूर सुधारेंगे.’
ज्ञात हो कि मानसून सत्र को अचानक स्थगित करने और संसद के सुरक्षा कर्मचारियों द्वारा महिला सांसदों के साथ कथित तौर पर शारीरिक छेड़छाड़ के विरोध में संयुक्त विपक्ष द्वारा गुरुवार को संसद से विजय चौक तक निकले गये विरोध मार्च में तृणमूल के न शामिल होने की वजह से विपक्षी एकता पर सवाल उठने लगे हैं. इन मुद्दों के खिलाफ एक दर्जन से भी अधिक विपक्षी नेताओं द्वारा जारी किए गये एक संयुक्त बयान पर भी तृणमूल को ओर से दस्तख़त नहीं किए गये थे.
यह पूछे जाने पर कि विपक्षी एकता कैसे आगे बढ़ रही है, ओ’ब्रायन ने कहा कि इसे ‘गिलास आधा भरा हुआ है’ के रूप में हीं देखना होगा.
ओ’ब्रायन ने कहा, ‘हम आशावादी हैं. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. कांग्रेस, तृणमूल, द्रमुक, राजद, राकांपा, शिवसेना, माकपा, भाकपा सब साथ हैं. आपको हमसे विपक्षी एकता के बारे में सवाल नहीं पूछने चाहिए. इसके बजाय, आपको प्रधान मंत्री और गृह मंत्री से यह पूछना चाहिए कि क्या उनकी सरकार ने नौकरियों, अर्थव्यवस्था, संघवाद आदि पर कोई काम किया है. यह हैकिंग का मामला क्या है, जिसे वे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?’
तृणमूल नेता ने कहा कि उन्होंने इन सभी मुद्दों पर मोदी और शाह से सात सवाल किए हैं और उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं.
‘विपक्ष चाहता था कि संसद चले, सरकार ने इसमें व्यवधान डाला’
संसद के हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र, जिसे बार-बार हो रहे व्यवधान के कारण निर्धारित समय से दो दिन पहले हीं अचानक स्थगित कर दिया गया था, के बारे में पूछे जाने पर ओ’ब्रायन ने कहा कि जो कुछ कहा-बताया जा रहा है उसके विपरीत तथ्य यह है कि विपक्ष संसद को चलाना चाहता था, लेकिन सरकार ने इसे बाधित कर दिया.
ओ’ब्रायन पूछते हैं, ‘सरकार ने आंतरिक सुरक्षा, पेगासस और कृषि कानूनों पर चर्चा की अनुमति क्यों नहीं दी जैसा कि विपक्ष चाहता था? इन्हीं वजहों से संसद बाधित हुई. वे अब एक कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘देखिए किस प्रकए से संसद बाधित की गई’. विपक्ष को इस तरह की प्रतिक्रिया के लिए उत्तेजित करने वाला कारक आख़िर क्या था?’
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तृणमूल संसद का कहना है कि संसद के संचालन के तरीके से समझौता किया जा रहा है. चाहे वह कानून बनाने के नजरिए से हो, या फिर मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिहाज से हो या फिर संसद चलाने के लिए ज़रूरी संसाधन के मामले में हो.
तृणमूल नेता ने कहा ‘आपने (सरकार ने) ज़ोर-ज़बरदस्ती के साथ कृषि कानूनों को पारित किया. परिणाम क्या हुआ? आपने किसानों को 11 महीने से सड़क पर खड़ा किया हुआ है… भाजपा को कानून निर्माण की अवधारणा को समझना होगा’
यह पूछे जाने पर कि विपक्ष राज्यों द्वारा अपनी ओबीसी सूची को अधिसूचित करने की शक्ति बहाल करने का प्रावधान करने वाले विधेयक को पारित करने के लिए तो एक साथ आया और उसने सरकार का समर्थन भी किया, पर सामान्य बीमा विधेयक जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दो पर ऐसा क्यो नहीं हुआ? ओ ब्रायन ने कहा कि इसका संदर्भ अलग था.
उन्होने कहा, ‘ओबीसी बिल एक सेलेक्ट कमेटी (प्रवर समिति) से पारित हो कर आया था. साधारण बीमा विधेयक अब तक किसी भी सेलेक्ट कमेटी के पास नहीं गया है. आप 50 साल बाद बीमा से संबंधित नियम बदल रहे हैं. क्या इस बिल की और छानबीन/जांच-पड़ताल नहीं होनी चाहिए?’
तृणमूल नेता ने कहा कि चूंकि अब संसद सत्र समाप्त हो गया है, इसलिए वे (तृणमूल) संसद के बाहर सड़कों पर अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे.
वे कहते हैं, ‘हम आम लोगों के मुद्दों- मूल्य वृद्धि, किसान आंदोलन .. पर लड़ रहे हैं. हम भाजपा की तरह नहीं हैं, जो बंगाल में चुनाव से चार महीने पहले वोट मांगने के लिए आए थे. हम पूरे साल भर जमीन पर काम करते हैं.‘
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