नई दिल्ली: केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बड़ा बदलाव किया है. सरकार ने अपनी चयन नीति में बदलाव करते हुए तय किया है कि दो साल तक निदेशक या उपनिदेशक स्तर पर काम करने वाला अधिकारी ही संयुक्त सचिव बन सकता है, इस पर सिविल सेवा अधिकारियों की मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है.
यह फैसला 2007 और उसके बाद के बैच वाले अधिकारियों पर लागू होगा. इससे पहले के बैच वाले अधिकारी अपने राज्य कैडर से सीधे नियुक्ति के जरिये केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दे सकते हैं. दिप्रिंट को मिले एक ऑफिस मेमोरेंडम के मुताबिक, ‘कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 18 जून के अपने आदेश में कहा है कि केंद्र और राज्य स्तर पर अनुभव के साथ पेशेवर तौर पर प्रशिक्षित अधिकारियों का एक मजबूत कैडर तैयार करने के उद्देश्य से नियुक्ति मामलों की कैबिनेट कमेटी ने 2007 बैच के आगे के आईएएस अधिकारियों के संदर्भ में फैसला किया है कि केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर की नियुक्ति के लिए सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम के तहत उपसचिव/निदेशक स्तर पर कम से कम दो साल का अनुभव जरूरी होगा.’
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केंद्रीय रिक्तियों की समस्या हल करने की कवायद
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यह फैसला केंद्र सरकार में निदेशक और उप सचिव स्तर पर खाली पदों की समस्या हल करने के उद्देश्य से लिया गया है.
अधिकारी ने कहा, ‘हम राज्य सरकारों को लगातार लिखते रहे हैं कि केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए कुछ अधिकारियों को मुक्त कर दें….यहां पर निदेशक और उप सचिवों के स्तर पर तमाम पद खाली पड़े हुए हैं और अधिकारियों के इस पदों के लिए आगे आने और अपनी सेवाएं देने की जरूरत है. सरकार ने इसी को प्रोत्साहित करने के लिए यह फैसला किया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जाहिर है कि यदि अधिकारी को केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर काम करने का अनुभव है तो यह सरकार और अधिकारी दोनों के लिए फायदेमंद होगा.’
हालांकि, दिप्रिंट ने जिन आईएएस अधिकारियों से बात की उनकी इस पर मिलीजुली प्रतिक्रिया थी. कुछ ने इसे आईएएस अधिकारियों पर निर्भरता घटाने की धारणा के विपरीत इसे उन्हें आगे बढ़ाने की मोदी सरकार की मंशा का नतीजा माना. वहीं अन्य का कहना है कि इससे आईएएस अधिकारियों का कैरियर ग्राफ बाधित होगा.
सरकार विभिन्न स्तरों पर आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति चाहती है
2016 बैच के एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसी राय है, खासकर मीडिया में, कि यह सरकार आईएएस अधिकारियों के प्रति बैर भाव रखती है और तमाम आईएएस अधिकारियों की जगह अन्य सेवाओं या पिछले दरवाजे से नियुक्तियों को तरजीह देना चाहती है.’
अधिकारी ने कहा, यह कदम इस धारणा को गलत साबित करता है कि सरकार किसी भी तरह आईएएस अधिकारियों को कम ही बदलना चाहती है… बल्कि यह बताता है कि वह चाहती है कि आईएएस अफसर विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर काम करें. अधिकारी ने कहा कि यह अलग बात है कि खुद अधिकारी केंद्र में आने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि यहां पर काम का बोझ ज्यादा है.
उन्होंने कहा, ‘अधिकारी या तो आना नहीं चाहते हैं और अगर आना भी चाहते हैं तो शीर्ष स्तर पर…कोई भी उपसचिव/निदेशक के स्तर पर नहीं आना चाहता क्योंकि ये नेतृत्व वाले पद नहीं हैं-ये मंत्रालय के सबसे ज्यादा कामकाज वाले पद हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार इसी मानसिकता को खत्म करना चाहती है.’
अधिकारी ने आगे बताया, फील्ड पोस्टिंग की तुलना में केंद्र में प्रतिनियुक्ति को लेकर, खासकर कनिष्ठ और मध्य स्तर पर, भी अनिच्छा का भाव रहता है। फील्ड पोस्टिंग में केंद्र की तुलना में और ज्यादा भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं.
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एक नई बाधा
हालांकि, हर कोई युवा अधिकारियों के उत्साह को साझा नहीं करता, लेकिन विपक्ष शासित राज्य में सचिव के समकक्ष रैंक पर अपनी सेवाएं दे रहे एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने उपरोक्त अफसर के इस आखिरी तर्क से सहमति जताई. उक्त अधिकारी ने कहा, ‘आप आईएएस अधिकारियों के केंद्र में आने के लिए शर्तें नहीं रख सकते हैं… कनिष्ठ और मध्य स्तर पर तो अधिकारी अपने राज्यों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि यह क्षेत्रीय अनुभव हासिल करने के साथ-साथ भत्ते आदि के लिहाज भी अधिक फायदेमंद है.’
उन्होंने कहा, ‘इस नीति का असल प्रभाव यह होगा कि इस पात्रता वाले कम अधिकारी ही प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में आएंगे… अधिकारियों के केंद्र में आने की प्रक्रिया को आपको आसान बनाना चाहिए, न कि कठिन.’
वरिष्ठ अधिकारी ने साथ ही कहा, इस तरह से सिर्फ वही अधिकारी केंद्र में आएंगे जो ‘राज्य कैडर को ज्यादा तरजीह नहीं देते’ हैं, क्योंकि जिन्हें अपने राज्य में ही बेहतर अवसर मिलेंगे वह केंद्र में नहीं जाना चाहेंगे.
2007 बैच के एक आईएएस अधिकारी ने कहा कि इससे अधिकारियों के मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि हमेशा ही यह संभावना रहती है कि राज्य सरकार उन्हें प्रतिनियुक्ति के लिए मुक्त न करें.
अधिकारी ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर पश्चिम बंगाल में सरकार केंद्र में जाने के लिए अधिकारियों को कभी मुक्त नहीं करती है. यदि मैं संयुक्त सचिव के स्तर पर जाना चाहूं तो इसका मतलब है कि सेवा में 16 साल पूरा करने से पहले मैं अगले तीन साल के लिए उप सचिव/निदेशक के स्तर पर सेवाएं दूं. अगर मेरी राज्य सरकार अनुमति न दे तो? क्या इसका मतलब है कि मैं कभी भी केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव या सचिव नहीं बन सकता?’
2007 बैच के अधिकारी ने आगे कहा, ‘अगर मैं अगले तीन साल नहीं जाता और इसके बाद पांच साल निदेशक के तौर पर सेवाएं देने को बाध्य हूं तो मेरा कैरियर ग्राफ तो बेवजह दो साल पीछे हो जाएगा. और फिर मुझे संभवत: अपने ही अधिकारी के अंडर में सेवाएं देनी पड़ सकती हैं जो तब तक संयुक्त सचिव बन चुका होगा, क्योंकि उसके राज्य ने निदेशक के स्तर पर जाने की मंजूरी दे दी होगी…यह बहुत ही जटिल और पक्षपातपूर्ण है.’
आसानी से कर सकते हैं समाधान
यद्यिप पूर्व आईएएस अधिकारी और केंद्रीय सचिव अनिल स्वरूप ने माना कि आईएएस अधिकारियों को निदेशक और उप सचिव रैंक पर भेजने से राज्यों के इनकार का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. लेकिन साथ ही कहा कि इसका समाधान आसानी से निकाला जा सकता है.
स्वरूप ने कहा, टयह सच्चाई है कि अक्सर राज्य सरकारें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकारियों को मुक्त नहीं करती हैं, और यह गलत होगा कि इसका खामियाजा अफसरों को चुकाना पड़े. लेकिन यह दुरूह समस्या नहीं है. केंद्र सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि यदि किसी अधिकारी ने निदेशक/उपसचिव पद के लिए आवेदन किया है, और उनकी राज्य सरकार ने जाने की मंजूरी नहीं दी तो वह संयुक्त सचिव पद के लिए ब्लैकलिस्ट में न आए.’
हालांकि, पूर्व में उद्धृत 2007 के अधिकारी ने एक और समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया.
उनके मुताबिक, ‘आईएएस अधिकारी मुख्य रूप से राज्य सरकार के तहत आते हैं…लेकिन ऐसा लग रहा है कि पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार यह व्यवस्था बदलने की कोशिश में लगी है.’
अधिकारी ने कहा, ‘सबसे पहले तो आपने यह सुनिश्चित किया कि नए आईएएस अधिकारी अपने राज्य में नियुक्ति के बजाय पहले केंद्र में सहायक सचिवों के तौर पर सेवाएं दें…अब आप इसके रास्ते तलाश रहे हैं कि अधिकारी लंबे समय तक केंद्र में सेवारत रहें. यह अधिकारियों को एक राह विशेष की तरफ उन्मुख करने का प्रयास लगता है.’
निरंतर कोशिशें कर रहा केंद्र
केंद्र सरकार राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों की कमी की समस्या से जूझ रही है, और यही वजह है कि वह अधिकारियों को मुक्त करने के लिए लगातार टोक रही है.
उदाहरण के तौर पर पिछले साल राज्य सरकारों को लिखे एक पत्र में डीओपीटी ने कहा था कि राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) के लिए निर्धारित संख्या में अपेक्षित आईएएस अधिकारियों को भेजने में विफल रहे हैं. सीडीआर भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति में भेजे जाने वाले अधिकारियों की सीमा तय करता है.
डीओपीटी ने पत्र में कहा, ‘इस रिजर्व के समुचित इस्तेमाल न होने, खासकर उपसचिव/निदेशक स्तर पर, से कैडर प्रबंधन का आनुपातिक संतुलन बिगड़ता है.’
इसमें आगे कहा गया था, ‘विभिन्न स्तरों पर केंद्रीय स्टाफिंग स्कीम के लिए पर्याप्त नाम नहीं भेजने वाले कैडर को इसके बदले में आने वाले समय में अतिरिक्त वरिष्ठ जिम्मेदारी वाले पदों की कम संख्या का सामना करना पड़ सकता है. इस संदर्भ में हाल में सचिव के द्वारा की गई बैठकों में कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटीज को संबंधित तथ्यों से अवगत करा दिया गया है.’
2104 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से राज्य की तरफ से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाने वाले आईएएस अधिकारियों की संख्या में 20 फीसदी की कमी आई है. जैसा कि दिप्रिंट ने पिछले साल जानकारी दी थी 2019 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आईएएस अधिकारियों की संख्या 492 थी, जो 2014 के 643 की तुलना में कम है. यह संख्या 2017 और 2018 में क्रमश: 558 और 514 थी.
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