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Saturday, 27 April, 2024
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पांच साल बाद भी क्यों नहीं पकड़े जा सके व्यापमं घोटाले के मास्टर माइंड?

मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले में गईं 50 से ज्यादा जानें, हजारों छात्रों के भविष्य से हुआ खिलवाड़, लेकिन आरोपियों को सज़ा की बजाय संरक्षण मिला.

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भोपाल: मध्य प्रदेश में बीतता यह साल सत्ता में बदलाव लाया मगर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले को उजागर हुए पांच बरस गुजर जाने के बाद भी मास्टर माइंट अब भी पर्दों की ओट में हैं. वहीं आरोपियों को सजा मिलने की बजाय साल-दर-साल उन्हें संरक्षण और सुरक्षा जरूर मिलने लगी है.

राज्य में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी से सत्ता छीनने के लिए व्यापमं को एक बड़ा मुद्दा बनाया क्योंकि इस मामले ने 50 से ज्यादा लोगों की जिंदगियां तो छीनी ही, साथ में हजारों प्रतिभावान छात्रों के हक पर डाका डाला. व्यापमं कांड को उजागर हुए एक और साल गुजर रहा है, मगर किसी भी बड़े आरोपी को जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाया जा सका है. कई लोग जेल गए, मगर जमानत पर रिहा होकर आ गए.

कांग्रेस ने अपने वचनपत्र में चुनाव से पहले व्यापमं के आरोपियों को सजा दिलाने का वादा किया है, मगर जो तस्वीर सामने आ रही है वह वचन के उलट है. एक आरोपी संजीव सक्सेना को पार्टी ने प्रदेश इकाई में महासचिव की जिम्मेदारी दे दी है तो दूसरी ओर सत्ता बदलते ही एक आईएएस अधिकारी, जिस पर व्यापमं के आरोपियों के साथ कारोबारी रिश्ते होने का आरोप हो, उसे एक जिले का जिलाधिकारी बना दिया गया है.


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सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता ऐश्वर्य पांडे ने आरोप लगाया है कि कमलनाथ ने जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाली थी तब व्यापमं के आरोपियों को सजा दिलाने का वादा किया था मगर मुख्यमंत्री बनते ही आरोपियों के साथियों को पुरस्कृत करने लगे हैं.

कांग्रेस की मीडिया विभाग अध्यक्ष शोभा ओझा का कहना है कि चुनाव से पहले कमलनाथ ने जन आयोग बनाने की बात कही और कहा कि व्यापमं के आरोपियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. यह गंभीर मुद्दा है, इस पर कांग्रेस का रुख गंभीर था, है और रहेगा.

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व्यापमं में गड़बड़ी का बड़ा खुलासा सात जुलाई, 2013 को पहली बार पीएमटी परीक्षा के दौरान तब हुआ, जब एक गिरोह इंदौर की अपराध शाखा की गिरफ्त में आया. यह गिरोह पीएमटी परीक्षा में फर्जी विद्यार्थियों को बैठाने का काम करता था. मुख्यमंत्री चौहान ने इस मामले को अगस्त 2013 में एसटीएफ को सौंप दिया.

उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया और उसने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल 2014 में एसआईटी गठित की, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच करता रहा. नौ जुलाई, 2015 को मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला हुआ और 15 जुलाई से सीबीआई ने जांच शुरू की.


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सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी रहे ओपी शुक्ला, भाजपा नेता सुधीर शर्मा, राज्यपाल के ओएसडी रहे धनंजय यादव, व्यापमं के नियंत्रक रहे पंकज त्रिवेदी, कंप्यूटर एनालिस्ट नितिन मोहिद्रा जेल जा चुके हैं.

ज्ञात हो कि इस मामले में दो हजार से अधिक लोग जेल जा चुके हैं, और चार सौ से अधिक अब भी फरार हैं. वहीं 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

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