नई दिल्ली: लखनऊ नगर निगम द्वारा जारी म्यूनिसिपल बॉण्ड्स को, बुधवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में लिस्ट कर दिया गया, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घंटी बजाकर लिस्टिंग का आग़ाज़ किया.
सीएम ने कहा कि 200 करोड़ रुपए का इश्यू, उत्तर भारत में किसी भी नागरिक इकाई द्वारा जारी पहला इश्यू है. इससे नगर निगम को एक जल आपूर्ति और आवास योजना को वित्त-पोषित करने में सहायता मिलेगी. इन बॉण्ड्स की मियाद 10 वर्ष की है, और इनपर 8.5 प्रतिशत सालाना का ब्याज ऑफर किया गया है.
दिप्रिंट एक नज़र डालता है कि म्यूनिसिपल बॉण्ड्स क्या होते हैं, और शहरों के निर्माण में ये कैसे सहायक होते हैं.
क्या होते हैं म्यूनिसिपल बॉण्ड्स
नगर निगम सरकारी निकाय होते हैं, जो शहरी इलाक़ों में केंद्र और राज्य सरकार के बाद, शासन की तीसरी श्रेणी होते हैं. इनके अपने ख़र्च होते हैं और आय के स्रोत होते हैं. आमतौर पर, नगर निकाय पानी, सफाई, सीवेज, और ठोस कचरा प्रबंधन जैसी सेवाएं मुहैया कराते हैं. कुछ बड़े नगर निगम स्कूल भी चलाते हैं.
इनकी आय के स्रोतों में संपत्ति कर, सरकारी अनुदान, और उपलब्ध कराई गई सेवाओं की फीस शामिल होती हैं.
नगर निकाय बॉण्ड्स जारी करके भी धन जुटा सकते हैं, जिन्हें म्यूनिसिपल बॉण्ड्स कहा जाता है. जुटाया गया ऋण पेंशन फंड्स जैसे निवेशकों से लिया जाता है.
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क्या म्यूनिसिपल बॉण्ड्स धन जुटाने का एक लोकप्रिय साधन हैं?
पिछले कुछ सालों में म्यूनिसिपल बॉण्ड्स का रिवाज बढ़ गया है, और नगर निकाय केंद्र सरकार के फ्लैगशिप स्मार्ट सिटी मिशन, और अटल मिशन ऑफ़ रेजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत) के तहत, बढ़ती हुई ज़रूरतों के लिए धन जुटाते हैं.
2017 में, केंद्र सरकार ने ऐसे नगर निकायों को प्रोत्साहन देने का ऐलान किया था, जो इन म्यूनिसिपल बॉण्ड्स के ज़रिए धन जुटाते हैं.
बॉण्ड्स कैसे सर्विस किए जाते हैं?
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के चीफ इकॉनमिस्ट ने कहा, कि नगर निकाय अपनी मासिक कर उगाही की रक़म का एक हिस्सा, ब्याज और मूल धन की वापसी के लिए अलग रख लेते हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर ब्याज की अदायगी अर्धवार्षिक होती है. उन्होंने आगे कहा कि अधिकतर म्यूनिसिपल बॉण्ड इश्यूज़ का, क़र्ज़ अदाएगी का अपना अलग संरचित पैटर्न होता है.
क्या इन बॉण्ड्स की सॉवरेन गारंटी होती है?
राज्य विकास बॉण्ड्स की तरह, इन बॉण्ड्स के पीछे सॉवरन गारंटी नहीं होती. सॉवरन गारंटी आमतौर पर केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है, जिसमें तीसरे पक्ष के भुगतान न करने की सूरत में, केंद्र सरकार उस क़र्ज़ को अदा करने का वचन देती है.
पंत ने कहा कि इसकी वजह से, म्यूनिसिपल बॉण्ड्स पर ब्याज की दरें भी, केंद्र सरकार की सिक्योरिटीज़ और स्टेट डेवलपमेंट लोन्स (एसडीएल्स) की ब्याज दरों से ज़्यादा होती हैं.
लिस्टिंग से क्या सहायता मिलती है? दूसरे लिस्टेड म्यूनिसिपल बॉण्ड इश्यूज़ कौन से हैं?
पंत ने कहा कि बॉण्ड इश्यूज़ को लिस्ट करने से, उनमें ज़्यादा पार्दर्शिता आ जाती है, और निवेशकों को जानकारी मिलते रहना सुनिश्चित हो जाता है.
लिस्टिंग की शर्तों के तहत, ख़ातों का अर्ध-वार्षिक आधार पर ऑडिट कराना होता है. इससे उनकी विश्वसनीयता बढ़ती है.
लखनऊ के अलावा, कुछ और इश्यूज़ जो लिस्ट किए गए हैं, उनमें पुणे, इंदौर, भोपाल, अहमदाबाद और हैदराबाद नगर निकायों के म्यूनिसिपल इश्यूज़ शामिल हैं.
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