scorecardresearch
Monday, 13 May, 2024
होमदेशलॉकडाउन की वजह से पंजाब के 3 लाख़ ड्रग एडिक्ट्स में बढ़ा ओवरडोज, बीमारी और इंफेक्शन का खतरा

लॉकडाउन की वजह से पंजाब के 3 लाख़ ड्रग एडिक्ट्स में बढ़ा ओवरडोज, बीमारी और इंफेक्शन का खतरा

क्लीनिक कुछ ही देर के लिए खुलते हैं जिससे भीड़ इकट्ठा हो जाती है और सरकार ने इन्हें दो हफ्ते का डोज़ एक साथ देने का जो हल दिया है उसकी अपनी दिक्कते हैं.

Text Size:

चंडीगढ़: केंद्र सरकार द्वारा 23 मार्च को लॉकडाउन से दो दिन पहले पंजाब ने राज्य में लॉकडाउन कर दिया था. इसकी वजह से राज्य के 3.6 लाख़ रजिस्टर्ड ड्रग एडिक्ट मरीज़ों में अफरा-तफरी का माहौल है. ये वो लोग हैं जिनका दवाओं के जरिए इलाज चल रहा है और इन्हें ड्रग्स की आदत छुड़ानी वाले इलाज के लिए रोज़ाना अपनी दवा के लिए डि-एडिक्शन सेंटर जाना होता है.

इन लोगों का 250 सरकारी एवं प्राइवेट डि-एडिक्शन सेंटरों में इलाज चल रहा है. इलाज से जुड़े डॉक्टरों का कहना है कि सफर पर पाबंदी की वजह से मरीज़ों को आने-जाने में दिक्कत हो रही है. उन्होंने ये भी कहा कि डि-एडिक्शन सेंटर हर सुबह बस कुछ ही घंटों के लिए खुले रहते हैं. इसकी वजह से काफ़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती है जिससे कोविड-19 फ़ैलने का भय है.

जब ऐसी समस्याओं को उजागर किया गया तो राज्य सरकार ने कदम उठाते हुए घोषणा की कि मरीज़ों को एक साथ दो हफ्ते का डोज़ दे दिया जाए. हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि ये समस्या को और बढ़ा सकता है. ऐसे मरीज़ों के इलाज के दौरान हेरोइन जैसे ड्रग्स को शरीर से बाहर करने के लिए मरीज़ों को इस ड्रग्स जितनी ही प्रभावी दवा दी जाती है. इससे उनके दिमाग पर ड्रग्स जितना ही असर पड़ता है. हालांकि, दवा का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता.

पंजाब के सेंटर बुप्रेनोरफिन और नैलोक्ज़ोन जैसी दवाओं के मिश्रण को अलग-अलग मात्रा में इस्तेमाल करते हैं. इलाज से जुड़े ड्रग्स की सप्लाई सिर्फ एक सप्लाई लाइन से होती है. इस पर राज्य के स्वास्थ्य विभाग की नज़र बनी रहती है. ये दवा इन्हीं सेंटरों पर उपलब्ध होती है और केमिस्ट शॉप द्वारा इन्हें बेचे जाने पर बैन है.

वैकल्पिक थेरेपी यानी इस इलाज के दौरान ड्रग एडिक्ट व्यक्ति को ड्रग्स से दूर किया जाता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

रोज़ की आवाजाही प्रभावित

दवा की सप्लाई पूरी तरह से (सरकार के) कंट्रोल में होने की वजह से जो भी मरीज़ इन सेंटरों में रजिस्टर्ड हैं उन्हें रोज़ के डोज़ के लिए क्लीनिक जाना होता है. डॉक्टरों और स्वास्थ्य से जुड़े लोगों का कहना है कि कर्फ्यू की वजह से हालात और मुश्किल हो गए हैं.

हालांकि, सरकार ने इन मरीज़ों को वो मान्य ओपीडी कार्ड दिया है जिसके साथ ये कर्फ्यू के दौरान सफर कर सकते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि कुछ मरीज़ों में उन रिपोर्ट्स की वजह से भय का माहौल है जिसमें कर्फ्यू के दौरान पुलिसिया हिंसा की बात है. उन्होंने कहा कि जिस बात ने मुश्किल को सबसे ज़्यादा बढ़ा दिया है वो क्लीनिक का हर सुबह महज़ कुछ देर के लिए खुलना है.

जलंधर में ऐसे ही एक सेंटर के प्रभारी एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, ‘इसकी वजह से सेंटरों पर बेमतलब की भीड़ लग रही है जिससे कर्फ्यू के पूरे उद्देश्य पर पानी फिर सकता है. सरकार ने फ़ैसला किया है कि इन मरीज़ों को दो हफ्ते का डोज़ एक साथ दे दिया जाए. फिर ऐसे हज़ारों हैं जो क्लीनिक जा रहे हैं और सेंटरों के बाहर कतार में खड़े हो रहे हैं.’

डॉक्टर को इस बात की भी चिंता है कि दो हफ्ते का डोज़ एक साथ दिए जाने पर एडिक्ट व्यक्ति इसका ग़लत इस्तेमाल कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘इसमें दवा को ऐसे व्यक्ति के साथ साझा किया जाने का डर है जिसे इसकी ज़रूरत न हो. इसका भी डर है कि कोई ओवरडोज़ न ले ले. लेकिन सरकार के पास डि-एडिक्शन सेंटरों को चलाने से जुड़े बेहद सीमित विकल्प मौजूद हैं, वो भी ऐसी स्थिति में जबकि स्वास्थ्य विभाग कोरोना माहामारी से पैदा हुए हालात से जूझ रहा है.’

डि-एडिक्शन सेंटर से जुड़े एक कर्मचारी ने बताया कि कुछ महीने पहले सरकार ने ऐसी व्यवस्था लागू कि जिसमें इन लोगों को एक हफ्ते का डोज़ घर ले जाने को दे दिया जाता था. इसे अभी लागू ही किया जा रहा था तब तक कर्फ्यू लगा दिया गया. मोहाली के एक प्राइवेट सेंटर के इंचार्ज ने कहा, ‘ये एक अनोखी परिस्थिति है… देखना होगा कि कर्फ्यू का इन मरीज़ों पर क्या असर पड़ता है. उनके ऊपर से थेरेपी का असर पूरी तरह से ख़त्म हो सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि वो एक कदम आगे और चार कदम पीछे की ओर ले रहे हों.’

डॉक्टर पीडी गर्ग अमृतसर स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभाग के प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआत में सिर्फ सरकारी क्लीनिक ही दो हफ्तों का डोज़ दे सकते थे. इससे प्राइवेट सेंटरों में जा रहे मरीज़ों को दिक्कत हो रही थी. हालांकि, अब सरकार ने निजी सेंटरों को भी दो हफ्तों का डोज़ देने की इजाज़त दे दी है.

मरीज़ों की मदद के लिए सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों से जुड़े सवाल के जवाब में ड्रग डि-एडिक्शन मामले में पंजाब सरकार के नोडल ऑफ़िसर डॉक्टर अनु चोपड़ा ने कहा कि सरकार ने फ़ैसला किया है कि मरीज़ों को दो हफ्ते का डोज़ एक साथ बांटा जाएगा.

ड्रग्स की आदत छुड़ाने वाली वैकल्पिक थेरेपी

2017 में कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह जब राज्य के मुख्यमंत्री बने तो पंजाब में व्याप्त ड्रग्स की लत से निपटने के लिए वैकल्पिक ड्रग थेरेपी को पूरे ज़ोर-शोर से पेश किया गया. स्पेशल ओरल ओपिओइड ऑल्टरनेटिव ट्रीटमेंट (ओओएटी) क्लीनिकों की स्थापना की गई. ओओएटी ने पहले से काम कर रहे डि-एडिक्शन और पुनर्वास केंद्रों को और मज़बूत करने का काम किया.

ओओएटी (आउट-पेशेंट ओपिओइड एसिस्टेड थेरेपी) क्लीनिक ओपीडी के सेट अप में मरीज़ों को वैकल्पिक थेरेपी देते हैं. डि-एडिक्शन सेंटर में मरीज़ों को एडमिट करने की भी व्यवस्था होती है. यहां पहले मरीज़ों को डिटॉक्सिफिकेशन के लिए एडमिट किया जाता है और बाद में ओपीडी में इनका इलाज होता है.

पुनर्वास केंद्रों का माहौल हॉस्पिटल जैसा नहीं होता है. यहां ड्रग एडिक्ट की काउंसिलिंग होती है और मनोवैज्ञानिक तौर पर उनका इलाज किया जाता है. इन सबके सहारे उन्हें ड्रग्स से दूर किया जाता है.

सरकार द्वारा 7 मार्च को साझा किए गए डेटा के मुताबिक, ऐसे 1.15 लाख़ मरीज़ों को इलाज ओओएटी सेंटरों में किया जा रहा है. डि-एडिक्शन सेंटरों में ऐसे 2.15 लाख़ और पुनर्वास केंद्रों में ऐसे 30,000 मरीज़ हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments